चरण 64

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व्यवस्थाविवरण 29

1 इस्त्राएलियों से जिस वाचा के बान्धने की आज्ञा यहोवा ने मूसा को मोआब के देश में दी उसके ये ही वचन हैं, और जो वाचा उसने उन से होरेब पहाड़ पर बान्धी थी यह उस से अलग है।

2 फिर मूसा ने सब इस्त्राएलियों को बुलाकर कहा, जो कुछ यहोवा ने मिस्र देश में तुम्हारे देखते फिरौन और उसके सब कर्मचारियों, और उसके सारे देश से किया वह तुम ने देखा है;

3 वे बड़े बड़े परीक्षा के काम, और चिन्ह, और बड़े बड़े चमत्कार तेरी आंखों के साम्हने हुए;

4 परन्तु यहोवा ने आज तक तुम को न तो समझने की बुद्धि, और न देखने की आंखें, और न सुनने के कान दिए हैं।

5 मैं तो तुम को जंगल में चालीस वर्ष लिए फिरा; और न तुम्हारे तन पर वस्त्र पुराने हुए, और न तेरी जूतियां तेरे पैरों में पुरानी हुई;

6 रोटी जो तुम नहीं खाने पाए, और दाखमधु और मदिरा जो तुम नहीं पीने पाए, वह इसलिये हुआ कि तुम जानो कि मैं यहोवा तुम्हारा परमेश्वर हूं।

7 और जब तुम इस स्थान पर आए, तब हेशबोन का राजा सीहोन और बाशान का राजा ओग, ये दोनों युद्ध के लिये हमारा साम्हना करने को निकल आए, और हम ने उन को जीत कर उनका देश ले लिया;

8 और रूबेनियों, गादियों, और मनश्शे के आधे गोत्र के लोगों को निज भाग करके दे दिया।

9 इसलिये इस वाचा की बातों का पालन करो, ताकि जो कुछ करो वह सफल हो॥

10 आज क्या वृद्ध लोग, क्या सरदार, तुम्हारे मुख्य मुख्य पुरूष, क्या गोत्र गोत्र के तुम सब इस्राएली पुरूष,

11 क्या तुम्हारे बालबच्चे और स्त्रियां, क्या लकड़हारे, क्या पनभरे, क्या तेरी छावनी में रहने वाले परदेशी, तुम सब के सब अपने परमेश्वर यहोवा के साम्हने इसलिये खड़े हुए हो,

12 कि जो वाचा तेरा परमेश्वर यहोवा आज तुझ से बान्धता है, और जो शपथ वह आज तुझ को खिलाता है, उस में तू साझी हो जाए;

13 इसलिये कि उस वचन के अनुसार जो उसने तुझ को दिया, और उस शपथ के अनुसार जो उसने इब्राहीम, इसहाक, और याकूब, तेरे पूर्वजों से खाई थी, वह आज तुझ को अपनी प्रजा ठहराए, और आप तेरा परमेश्वर ठहरे।

14 फिर मैं इस वाचा और इस शपथ में केवल तुम को नहीं,

15 परन्तु उन को भी, जो आज हमारे संग यहां हमारे परमेश्वर यहोवा के साम्हने खड़े हैं, और जो आज यहां हमारे संग नहीं हैं, साझी करता हूं।

16 तुम जानते हो कि जब हम मिस्र देश में रहते थे, और जब मार्ग में की जातियों के बीचोंबीच हो कर आ रहे थे,

17 तब तुम ने उनकी कैसी कैसी घिनौनी वस्तुएं, और काठ, पत्थर, चांदी, सोने की कैसी मूरतें देखीं।

18 इसलिये ऐसा न हो, कि तुम लोगों में ऐसा कोई पुरूष, वा स्त्री, वा कुल, वा गोत्र के लोग हों जिनका मन आज हमारे परमेश्वर यहोवा से फिर जाए, और वे जा कर उन जातियों के देवताओं की उपासना करें; फिर ऐसा न हो कि तुम्हारे मध्य ऐसी कोई जड़ हो, जिस से विष वा कडुआ बीज उगा हो,

19 और ऐसा मनुष्य इस शाप के वचन सुनकर अपने को आशीर्वाद के योग्य माने, और यह सोचे कि चाहे मैं अपने मन के हठ पर चलूं, और तृप्त हो कर प्यास को मिटा डालूं, तौभी मेरा कुशल होगा।

20 यहोवा उसका पाप क्षमा नहीं करेगा, वरन यहोवा के कोप और जलन का धुंआ उसको छा लेगा, और जितने शाप इस पुस्तक में लिखें हैं वे सब उस पर आ पड़ेंगे, और यहोवा उसका नाम धरती पर से मिटा देगा।

21 और व्यवस्था की इस पुस्तक में जिस वाचा की चर्चा है उसके सब शापों के अनुसार यहोवा उसको इस्राएल के सब गोत्रों में से हानि के लिये अलग करेगा।

22 और आने वाली पीढिय़ों में तुम्हारे वंश के लोग जो तुम्हारे बाद उत्पन्न होंगे, और परदेशी मनुष्य भी जो दूर देश से आएंगे, वे उस देश की विपत्तियों और उस में यहोवा के फैलाए हुए रोग देखकर,

23 और यह भी देखकर कि इसकी सब भूमि गन्धक और लोन से भर गई है, और यहां तक जल गई है कि इस में न कुछ बोया जाता, और न कुछ जम सकता, और न घास उगती है, वरन सदोम और अमोरा, अदमा और सबोयीम के समान हो गया है जिन्हें यहोवा ने अपने कोप और जलजलाहट में उलट दिया था;

24 और सब जातियों के लोग पूछेंगे, कि यहोवा ने इस देश से ऐसा क्यों किया? और इस बड़े कोप के भड़कने का क्या कारण है?

25 तब लोग यह उत्तर देंगे, कि उनके पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा ने जो वाचा उनके साथ मिस्र देश से निकालने के समय बान्धी थी उसको उन्होंने तोड़ा है।

26 और पराए देवताओं की उपासना की है जिन्हें वे पहिले नहीं जानते थे, और यहोवा ने उन को नहीं दिया था;

27 इसलिये यहोवा का कोप इस देश पर भड़क उठा है, कि पुस्तक मे लिखे हुए सब शाप इस पर आ पड़ें;

28 और यहोवा ने कोप, और जलजलाहट, और बड़ा ही क्रोध करके उन्हें उनके देश में से उखाड़ कर दूसरे देश में फेंक दिया, जैसा कि आज प्रगट है॥

29 गुप्त बातें हमारे परमेश्वर यहोवा के वश में हैं; परन्तु जो प्रगट की गई हैं वे सदा के लिये हमारे और हमारे वंश में रहेंगी, इसलिये कि इस व्यवस्था की सब बातें पूरी ही जाएं॥

व्यवस्थाविवरण 30

1 फिर जब आशीष और शाप की ये सब बातें जो मैं ने तुझ को कह सुनाईं हैं तुझ पर घटें, और तू उन सब जातियों के मध्य में रहकर, जहां तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ को बरबस पहुंचाएगा, इन बातों को स्मरण करे,

2 और अपनी सन्तान सहित अपने सारे मन और सारे प्राण से अपने परमेश्वर यहोवा की ओर फिर कर उसके पास लौट आए, और इन सब आज्ञाओं के अनुसार जो मैं आज तुझे सुनाता हूं उसकी बातें माने;

3 तब तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ को बन्धुआई से लौटा ले आएगा, और तुझ पर दया करके उन सब देशों के लोगों में से जिनके मध्य में वह तुझ को तित्तर बित्तर कर देगा फिर इकट्ठा करेगा।

4 चाहे धरती के छोर तक तेरा बरबस पहुंचाया जाना हो, तौभी तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ को वहां से ले आकर इकट्ठा करेगा।

5 और तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे उसी देश में पहुंचाएगा जिसके तेरे पुरखा अधिकारी हुए थे, और तू फिर उसका अधिकारी होगा; और वह तेरी भलाई करेगा, और तुझ को तेरे पुरखाओं से भी गिनती में अधिक बढ़ाएगा।

6 और तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे और तेरे वंश के मन का खतना करेगा, कि तू अपने परमेश्वर यहोवा से अपने सारे मन और सारे प्राण के साथ प्रेम करे, जिस से तू जीवित रहे।

7 और तेरा परमेश्वर यहोवा ये सब शाप की बातें तेरे शत्रुओं पर जो तुझ से बैर करके तेरे पीछे पड़ेंगे भेजेगा।

8 और तू फिरेगा और यहोवा की सुनेगा, और इन सब आज्ञाओं को मानेगा जो मैं आज तुझ को सुनाता हूं।

9 और यहोवा तेरी भलाई के लिये तेरे सब कामों में, और तेरी सन्तान, और पशुओं के बच्चों, और भूमि की उपज में तेरी बढ़ती करेगा; क्योंकि यहोवा फिर तेरे ऊपर भलाई के लिये वैसा ही आनन्द करेगा, जैसा उसने तेरे पूर्वजों के ऊपर किया था;

10 क्योंकि तू अपने परमेश्वर यहोवा की सुनकर उसकी आज्ञाओं और विधियों को जो इस व्यवस्था की पुस्तक में लिखी हैं माना करेगा, और अपने परमेश्वर यहोवा की ओर अपने सारे मन और सारे प्राण से मन फिराएगा॥

11 देखो, यह जो आज्ञा मैं आज तुझे सुनाता हूं, वह न तो तेरे लिये अनोखी, और न दूर है।

12 और न तो यह आकाश में है, कि तू कहे, कि कौन हमारे लिये आकाश में चढ़कर उसे हमारे पास ले आए, और हम को सुनाए कि हम उसे मानें?

13 और न यह समुद्र पार है, कि तू कहे, कौन हमारे लिये समुद्र पार जाए, और उसे हमारे पास ले आए, और हम को सुनाए कि हम उसे मानें?

14 परन्तु यह वचन तेरे बहुत निकट, वरन तेरे मुंह और मन ही में है ताकि तू इस पर चले॥

15 सुन, आज मैं ने तुझ को जीवन और मरण, हानि और लाभ दिखाया है।

16 क्योंकि मैं आज तुझे आज्ञा देता हूं, कि अपने परमेश्वर यहोवा से प्रेम करना, और उसके मार्गों पर चलना, और उसकी आज्ञाओं, विधियों, और नियमों को मानना, जिस से तू जीवित रहे, और बढ़ता जाए, और तेरा परमेश्वर यहोवा उस देश में जिसका अधिकारी होने को तू जा रहा है, तुझे आशीष दे।

17 परन्तु यदि तेरा मन भटक जाए, और तू न सुने, और भटककर पराए देवताओं को दण्डवत करे और उनकी उपासना करने लगे,

18 तो मैं तुम्हें आज यह चितौनी दिए देता हूं कि तुम नि:सन्देह नष्ट हो जाओगे; और जिस देश का अधिकारी होने के लिये तू यरदन पार जा रहा है, उस देश में तुम बहुत दिनों के लिये रहने न पाओगे।

19 मैं आज आकाश और पृथ्वी दोनों को तुम्हारे साम्हने इस बात की साक्षी बनाता हूं, कि मैं ने जीवन और मरण, आशीष और शाप को तुम्हारे आगे रखा है; इसलिये तू जीवन ही को अपना ले, कि तू और तेरा वंश दोनों जीवित रहें;

20 इसलिये अपने परमेश्वर यहोवा से प्रेम करो, और उसकी बात मानों, और उस से लिपटे रहो; क्योंकि तेरा जीवन और दीर्घ जीवन यही है, और ऐसा करने से जिस देश को यहोवा ने इब्राहीम, इसहाक, और याकूब, तेरे पूर्वजों को देने की शपथ खाई थी उस देश में तू बसा रहेगा॥

व्यवस्थाविवरण 31

1 और मूसा ने जा कर यह बातें सब इस्रएलियों को सुनाईं।

2 और उसने उन से यह भी कहा, कि आज मैं एक सौ बीस वर्ष का हूं; और अब मैं चल फिर नहीं सकता; क्योंकि यहोवा ने मुझ से कहा है, कि तू इस यरदन पार नहीं जाने पाएगा।

3 तेरे आगे पार जाने वाला तेरा परमेश्वर यहोवा ही है; वह उन जातियों को तेरे साम्हने से नष्ट करेगा, और तू उनके देश का अधिकारी होगा; और यहोवा के वचन के अनुसार यहोशू तेरे आगे आगे पार जाएगा।

4 और जिस प्रकार यहोवा ने एमोरियों के राजा सीहोन और ओग और उनके देश को नष्ट किया है, उसी प्रकार वह उन सब जातियों से भी करेगा।

5 और जब यहोवा उन को तुम से हरवा देगा, तब तुम उन सारी आज्ञाओं के अनुसार उन से करना जो मैं ने तुम को सुनाईं हैं।

6 तू हियाव बान्ध और दृढ़ हो, उन से न डर और न भयभीत हो; क्योंकि तेरे संग चलने वाला तेरा परमेश्वर यहोवा है; वह तुझ को धोखा न देगा और न छोड़ेगा।

7 तब मूसा ने यहोशू को बुलाकर सब इस्राएलियों के सम्मुख कहा, कि तू हियाव बान्ध और दृढ़ हो जा; क्योंकि इन लोगों के संग उस देश में जिसे यहोवा ने इनके पूर्वजों से शपथ खाकर देने को कहा था तू जाएगा; और तू इन को उसका अधिकारी कर देगा।

8 और तेरे आगे आगे चलने वाला यहोवा है; वह तेरे संग रहेगा, और न तो तुझे धोखा देगा और न छोड़ देगा; इसलिये मत डर और तेरा मन कच्चा न हो॥

9 फिर मूसा ने यही व्यवस्था लिखकर लेवीय याजकों को, जो यहोवा की वाचा के सन्दूक उठाने वाले थे, और इस्राएल के सब वृद्ध लोगों को सौंप दी।

10 तब मूसा ने उन को आज्ञा दी, कि सात सात वर्ष के बीतने पर, अर्थात उगाही न होने के वर्ष के झोपड़ी वाले पर्व्व में,

11 जब सब इस्राएली तेरे परमेश्वर यहोवा के उस स्थान पर जिसे वह चुन लेगा आकर इकट्ठे हों, तब यह व्यवस्था सब इस्राएलियों को पढ़कर सुनाना।

12 क्या पुरूष, क्या स्त्री, क्या बालक, क्या तुम्हारे फाटकों के भीतर के परदेशी, सब लोगों को इकट्ठा करना कि वे सुनकर सीखें, और तुम्हारे परमेश्वर यहोवा का भय मानकर, इस व्यवस्था के सारे वचनों के पालन करने में चौकसी करें,

13 और उनके लड़केबाले जिन्होंने ये बातें नहीं सुनीं वे भी सुनकर सींखें, कि तुम्हारे परमेश्वर यहोवा का भय उस समय तक मानते रहें, जब तक तुम उस देश में जीवित रहो जिसके अधिकारी होने को तुम यरदन पार जा रहे हो॥

14 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, तेरे मरने का दिन निकट है; तू यहोशू को बुलवा, और तुम दोनों मिलापवाले तम्बू में आकर उपस्थित हो कि मैं उसको आज्ञा दूं। तब मूसा और यहोशू जा कर मिलापवाले तम्बू में उपस्थित हुए।

15 तब यहोवा ने उस तम्बू में बादल के खम्भे में हो कर दर्शन दिया; और बादल का खम्भा तम्बू के द्वार पर ठहर गया।

16 तब यहोवा ने मूसा से कहा, तू तो अपने पुरखाओं के संग सो जाने पर है; और ये लोग उठ कर उस देश के पराये देवताओं के पीछे जिनके मध्य वे जा कर रहेंगे व्यभिचारी हो जाएंगे, और मुझे त्यागकर उस वाचा को जो मैं ने उन से बान्धी है तोडेंगे।

17 उस समय मेरा कोप इन पर भड़केगा, और मैं भी इन्हें त्यागकर इन से अपना मुंह छिपा लूंगा, और ये आहार हो जाएंगे; और बहुत सी विपत्तियां और क्लेश इन पर आ पड़ेंगे, यहां तक कि ये उस समय कहेंगे, क्या ये विपत्तियां हम पर इस कारण तो नहीं आ पड़ीं, क्योंकि हमारा परमेश्वर हमारे मध्य में नहीं रहा?

18 उस समय मैं उन सब बुराइयों के कारण जो ये पराये देवताओं की ओर फिर कर करेंगे नि:सन्देह उन से अपना मुंह छिपा लूंगा।

19 सो अब तुम यह गीत लिख लो, और तू उसे इस्राएलियों को सिखाकर कंठ करा देना, इसलिये कि यह गीत उनके विरुद्ध मेरा साक्षी ठहरे।

20 जब मैं इन को उस देश में पहुंचाऊंगा जिसे देने की मैं ने इनके पूर्वजों से शपथ खाईं थी, और जिस में दूध और मधु की धाराएं बहती हैं, और खाते-खाते इनका पेट भर जाए, और ये हृष्ट-पुष्ट हो जाएंगे; तब ये पराये देवताओं की ओर फिरकर उनकी उपासना करने लगेंगे, और मेरा तिरस्कार करके मेरी वाचा को तोड़ देंगे।

21 वरन अभी भी जब मैं इन्हें इस देश में जिसके विषय मैं ने शपथ खाई है पहुंचा नहीं चुका, मुझे मालूम है, कि ये क्या क्या कल्पना कर रहे हैं; इसलिये जब बहुत सी विपत्तियां और क्लेश इन पर आ पड़ेंगे, तब यह गीत इन पर साक्षी देगा, क्योंकि इनकी सन्तान इस को कभी भी नहीं भूलेगी।

22 तब मूसा ने उसी दिन यह गीत लिख कर इस्राएलियों को सिखाया।

23 और उसने नून के पुत्र यहोशू को यह आज्ञा दी, कि हियाव बान्ध और दृढ़ हो; क्योंकि इस्राएलियों को उस देश में जिसे उन्हें देने को मैं ने उन से शपथ खाई है तू पहुंचाएगा; और मैं आप तेरे संग रहूंगा॥

24 जब मूसा इस व्यवस्था के वचन को आदि से अन्त तक पुस्तक में लिख चुका,

25 तब उसने यहोवा के सन्दूक उठाने वाले लेवियों को आज्ञा दी,

26 कि व्यवस्था की इस पुस्तक को ले कर अपने परमेश्वर यहोवा की वाचा के सन्दूक के पास रख दो, कि यह वहां तुझ पर साक्षी देती रहे।

27 क्योंकि तेरा बलवा और हठ मुझे मालूम है; देखो, मेरे जीवित और संग रहते हुए भी तुम यहोवा से बलवा करते आए हो; फिर मेरे मरने के बाद भी क्यों न करोगे!

28 तुम अपने गोत्रों के सब वृद्ध लोगों को और अपने सरदारों को मेरे पास इकट्ठा करो, कि मैं उन को थे वचन सुनाकर उनके विरुद्ध आकाश और पृथ्वी दोनों को साक्षी बनाऊं।

29 क्योंकि मुझे मालूम है कि मेरी मृत्यु के बाद तुम बिलकुल बिगड़ जाओगे, और जिस मार्ग में चलने की आज्ञा मैं ने तुम को सुनाई है उसको भी तुम छोड़ दोगे; और अन्त के दिनों में जब तुम वह काम करके जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है, अपनी बनाई हुई वस्तुओं की पूजा करके उसको रिस दिलाओगे, तब तुम पर विपत्ति आ पड़ेगी॥

30 तब मूसा ने इस्राएल की सारी सभा को इस गीत के वचन आदि से अन्त तक कह सुनाए:

व्यवस्थाविवरण 32:1-14

1 हे आकाश, कान लगा, कि मैं बोलूं; और हे पृथ्वी, मेरे मुंह की बातें सुन॥

2 मेरा उपदेश मेंह की नाईं बरसेगा और मेरी बातें ओस की नाईं टपकेंगी, जैसे कि हरी घास पर झीसी, और पौधों पर झडिय़ां॥

3 मैं तो यहोवा नाम का प्रचार करूंगा। तुम अपने परमेश्वर की महिमा को मानो!

4 वह चट्टान है, उसका काम खरा है; और उसकी सारी गति न्याय की है। वह सच्चा ईश्वर है, उस में कुटिलता नहीं, वह धर्मी और सीधा है॥

5 परन्तु इसी जाति के लोग टेढ़े और तिर्छे हैं; ये बिगड़ गए, ये उसके पुत्र नहीं; यह उनका कलंक है॥

6 हे मूढ़ और निर्बुद्धि लोगों, क्या तुम यहोवा को यह बदला देते हो? क्या वह तेरा पिता नहीं है, जिसने तुम को मोल लिया है? उसने तुम को बनाया और स्थिर भी किया है॥

7 प्राचीनकाल के दिनों को स्मरण करो, पीढ़ी पीढ़ी के वर्षों को विचारो; अपने बाप से पूछो, और वह तुम को बताएगा; अपने वृद्ध लोगों से प्रश्न करो, और वे तुझ से कह देंगे॥

8 जब परमप्रधान ने एक एक जाति को निज निज भाग बांट दिया, और आदमियों को अलग अलग बसाया, तब उसने देश देश के लोगों के सिवाने इस्राएलियों की गिनती के अनुसार ठहराए॥

9 क्योंकि यहोवा का अंश उसकी प्रजा है; याकूब उसका नपा हुआ निज भाग है॥

10 उसने उसको जंगल में, और सुनसान और गरजने वालों से भरी हुई मरूभूमि में पाया; उसने उसके चंहु ओर रहकर उसकी रक्षा की, और अपनी आंख की पुतली की नाईं उसकी सुधि रखी॥

11 जैसे उकाब अपने घोंसले को हिला हिलाकर अपने बच्चों के ऊपर ऊपर मण्डलाता है, वैसे ही उसने अपने पंख फैलाकर उसको अपने परों पर उठा लिया॥

12 यहोवा अकेला ही उसकी अगुवाई करता रहा, और उसके संग कोई पराया देवता न था॥

13 उसने उसको पृथ्वी के ऊंचे ऊंचे स्थानों पर सवार कराया, और उसको खेतों की उपज खिलाई; उसने उसे चट्टान में से मधु और चकमक की चट्ठान में से तेल चुसाया॥

14 गायों का दही, और भेड़-बकरियों का दूध, मेम्नों की चर्बी, बकरे और बाशान की जाति के मेढ़े, और गेहूं का उत्तम से उत्तम आटा भी; और तू दाखरस का मधु पिया करता था॥