Question to Consider:
How can we get better at recognizing when we are turned to or away from the Lord in our spirits? What does it feel like mentally to be turned from the Lord? To be turned toward Him?
How can we get better at recognizing when we are turned to or away from the Lord in our spirits? What does it feel like mentally to be turned from the Lord? To be turned toward Him?
117. यदापि इस जगत का सूर्य स्वर्ग में दृष्टि नहीं आता और न कोई वस्तु है जो उस सूर्य से पैदा होती है तो भी वहां एक सूर्य है और ज्योति और गरमी भी है। और अन्य सब वस्तुएं भी जो जगत में पाई जाती हैं वहां हैं। उन से अतिरिक्त अन्य अन्य असंख्य वस्तुएं हैं परंतु उन का कोई दूसरा मूल है। क्योंकि जो कुछ स्वर्ग में है आत्मीय है पर जो कुछ जगत में है प्राकृतिक है। स्वर्ग का सूर्य प्रभु है और स्वर्ग की ज्योति ईश्वरीय सचाई है। उस की गरमी ईश्वरीय भलाई है और ये दोनों प्रभु से निकलते हैं कि मानों एक सूर्य से निकलें। उस आदि से सब कुछ जो स्वर्ग में है पैदा होता है और दृष्टि आता है। परंतु ज्योति और गरमी के विषय में और जो वस्तुएं कि उन से पैदा होती हैं उन के विषय में कुछ अधिक बयान आगामी बाबों में होगा। यहां पर हम केवल स्वर्गीय सूर्य के विषय कुछ बयान करेंगे। प्रभु स्वर्ग में सूर्य के समान दिखाई देता है क्योकि सब आत्मीय वस्तुएं ईश्वरीय प्रेम से पैदा होती हैं। और इस जगत का सूर्य बिच. वैया बनकर सब प्राकृतिक वस्तुएं भी ईश्वरीय प्रेम से पैदा होती हैं। क्योंकि स्वर्ग में ईश्वरीय प्रेम सूर्य के समान चमकता है ।