Étape 8: Esau

Étudier

     

उत्पत्ति 36

1 ऐसाव जो एदोम भी कहलाता है, उसकी यह वंशावली है।

2 ऐसाव ने तो कनानी लड़कियां ब्याह लीं; अर्थात हित्ती एलोन की बेटी आदा को, और अहोलीबामा को जो अना की बेटी, और हिव्वी सिबोन की नतिनी थी।

3 फिर उसने इश्माएल की बेटी बासमत को भी, जो नबायोत की बहिन थी, ब्याह लिया।

4 आदा ने तो ऐसाव के जन्माए एलीपज को, और बासमत ने रूएल को उत्पन्न किया।

5 और ओहोलीबामा ने यूश, और यालाम, और को रह को उत्पन्न किया, ऐसाव के ये ही पुत्र कनान देश में उत्पन्न हुए।

6 और ऐसाव अपनी पत्नियों, और बेटे-बेटियों, और घर के सब प्राणियों, और अपनी भेड़-बकरी, और गाय-बैल आदि सब पशुओं, निदान अपनी सारी सम्पत्ति को, जो उसने कनान देश में संचय की थी, ले कर अपने भाई याकूब के पास से दूसरे देश को चला गया।

7 क्योंकि उनकी सम्पत्ति इतनी हो गई थी, कि वे इकट्ठे न रह सके; और पशुओं की बहुतायत के मारे उस देश में, जहां वे परदेशी हो कर रहते थे, उनकी समाई न रही।

8 ऐसाव जो एदोम भी कहलाता है: सो सेईर नाम पहाड़ी देश में रहने लगा।

9 सेईर नाम पहाड़ी देश में रहनेहारे एदोमियों के मूल पुरूष ऐसाव की वंशावली यह है:

10 ऐसाव के पुत्रों के नाम ये हैं; अर्थात ऐसाव की पत्नी आदा का पुत्र एलीपज, और उसी ऐसाव की पत्नी बासमत का पुत्र रूएल।

11 और एलीपज के ये पुत्र हुए; अर्थात तेमान, ओमार, सपो, गाताम, और कनज।

12 और ऐसाव के पुत्र एलीपज के तिम्ना नाम एक सुरैतिन थी, जिसने एलीपज के जन्माए अमालेक को जन्म दिया: ऐसाव की पत्नी आदा के वंश में ये ही हुए।

13 और रूएल के ये पुत्र हुए; अर्थात नहत, जेरह, शम्मा, और मिज्जा: ऐसाव की पत्नी बासमत के वंश में ये ही हुए।

14 और ओहोलीबामा जो ऐसाव की पत्नी, और सिबोन की नतिनी और अना की बेटी थी, उसके ये पुत्र हुए: अर्थात उसने ऐसाव के जन्माए यूश, यालाम और कोरह को जन्म दिया।

15 ऐसाववंशियों के अधिपति ये हुए: अर्थात ऐसाव के जेठे एलीपज के वंश में से तो तेमान अधिपति, ओमार अधिपति, सपो अधिपति, कनज अधिपति,

16 को रह अधिपति, गाताम अधिपति, अमालेख अधिपति: एलीपज वंशियों में से, एदोम देश में ये ही अधिपति हुए: और ये ही आदा के वंश में हुए।

17 और ऐसाव के पुत्र रूएल के वंश में ये हुए; अर्थात नहत अधिपति, जेरह अधिपति, शम्मा अधिपति, मिज्जा अधिपति: रूएलवंशियों में से, एदोम देश में ये ही अधिपति हुए; और ये ही ऐसाव की पत्नी बासमत के वंश में हुए।

18 और ऐसाव की पत्नी ओहोलीबामा के वंश में थे हुए; अर्थात यूश अधिपति, यालाम अधिपति, कोरह अधिपति, अना की बेटी ओहोलीबामा जो ऐसाव की पत्नी थी उसके वंश में ये ही हुए।

19 ऐसाव जो एदोम भी कहलाता है, उसके वंश ये ही हैं, और उनके अधिपति भी ये ही हुए॥

20 सेईर जो होरी नाम जाति का था उसके ये पुत्र उस देश में पहिले से रहते थे; अर्थात लोतान, शोबाल, शिबोन, अना,

21 दीशोन, एसेर, और दीशान; एदोम देश में सेईर के ये ही होरी जातिवाले अधिपति हुए।

22 और लोतान के पुत्र, होरी, और हेमाम हुए; और लोतान की बहिन तिम्ना थी।

23 और शोबाल के ये पुत्र हुए; अर्थात आल्वान, मानहत, एबाल, शपो, और ओनाम।

24 और सिदोन के थे पुत्र हुए; अर्थात अय्या, और अना; यह वही अना है जिस को जंगल में अपने पिता सिबोन के गदहों को चराते चराते गरम पानी के झरने मिले।

25 और अना के दीशोन नाम पुत्र हुआ, और उसी अना के ओहोलीबामा नाम बेटी हुई।

26 और दीशोन के ये पुत्र हुए; अर्थात हेमदान, एश्बान, यित्रान, और करान।

27 एसेर के ये पुत्र हुए; अर्थात बिल्हान, जावान, और अकान।

28 दीशान के ये पुत्र हुए; अर्थात ऊस, और अकान।

29 होरियों के अधिपति ये हुए; अर्थात लोतान अधिपति, शोबाल अधिपति, शिबोन अधिपति,

30 अना अधिपति, दीशोन अधिपति, एसेर अधिपति, दीशान अधिपति, सेईर देश में होरी जाति वाले ये ही अधिपति हुए।

31 फिर जब इस्राएलियों पर किसी राजा ने राज्य न किया था, तब भी एदोम के देश में ये राजा हुए;

32 अर्थात बोर के पुत्र बेला ने एदोम में राज्य किया, और उसकी राजधानी का नाम दिन्हाबा है।

33 बेला के मरने पर, बोस्रानिवासी जेरह का पुत्र योबाब उसके स्थान पर राजा हुआ।

34 और योबाब के मरने पर, तेमानियों के देश का निवासी हूशाम उसके स्थान पर राजा हुआ।

35 और हूशाम के मरने पर, बदद का पुत्र हदद उसके स्थान पर राजा हुआ: यह वही है जिसने मिद्यानियों को मोआब के देश में मार लिया, और उसकी राजधानी का नाम अबीत है।

36 और हदद के मरने पर, मस्रेकावासी सम्ला उसके स्थान पर राजा हुआ।

37 फिर सम्ला के मरने पर, शाऊल जो महानद के तट वाले रहोबोत नगर का था, सो उसके स्थान पर राजा हुआ।

38 और शाऊल के मरने पर, अकबोर का पुत्र बाल्हानान उसके स्थान पर राजा हुआ।

39 और अकबोर के पुत्र बाल्हानान के मरने पर, हदर उसके स्थान पर राजा हुआ: और उसकी राजधानी का नाम पाऊ है; और उसकी पत्नी का नाम महेतबेल है, जो मेजाहब की नतिनी और मत्रेद की बेटी थी।

40 फिर ऐसाववंशियों के अधिपतियों के कुलों, और स्थानों के अनुसार उनके नाम ये हैं; अर्थात तिम्ना अधिपति, अल्बा अधिपति, यतेत अधिपति,

41 ओहोलीबामा अधिपति, एला अधिपति, पीनोन अधिपति,

42 कनज अधिपति, तेमान अधिपति, मिबसार अधिपति,

43 मग्दीएल अधिपति, ईराम अधिपति: एदोमवंशियों ने जो देश अपना कर लिया था, उसके निवास स्थानों में उनके ये ही अधिपति हुए। और एदोमी जाति का मूलपुरूष ऐसाव है॥

उत्पत्ति 37

1 याकूब तो कनान देश में रहता था, जहां उसका पिता परदेशी हो कर रहा था।

2 और याकूब के वंश का वृत्तान्त यह है: कि यूसुफ सतरह वर्ष का हो कर भाइयों के संग भेड़-बकरियों को चराता था; और वह लड़का अपने पिता की पत्नी बिल्हा, और जिल्पा के पुत्रों के संग रहा करता था: और उनकी बुराईयों का समाचार अपने पिता के पास पहुंचाया करता था:

3 और इस्राएल अपने सब पुत्रों से बढ़के यूसुफ से प्रीति रखता था, क्योंकि वह उसके बुढ़ापे का पुत्र था: और उसने उसके लिये रंग बिरंगा अंगरखा बनवाया।

4 सो जब उसके भाईयों ने देखा, कि हमारा पिता हम सब भाइयों से अधिक उसी से प्रीति रखता है, तब वे उससे बैर करने लगे और उसके साथ ठीक तौर से बात भी नहीं करते थे।

5 और यूसुफ ने एक स्वप्न देखा, और अपने भाइयों से उसका वर्णन किया: तब वे उससे और भी द्वेष करने लगे।

6 और उसने उन से कहा, जो स्वप्न मैं ने देखा है, सो सुनो:

7 हम लोग खेत में पूले बान्ध रहे हैं, और क्या देखता हूं कि मेरा पूला उठ कर सीधा खड़ा हो गया; तब तुम्हारे पूलों ने मेरे पूले को चारों तरफ से घेर लिया और उसे दण्डवत किया।

8 तब उसके भाइयों ने उससे कहा, क्या सचमुच तू हमारे ऊपर राज्य करेगा? वा सचमुच तू हम पर प्रभुता करेगा? सो वे उसके स्वप्नों और उसकी बातों के कारण उससे और भी अधिक बैर करने लगे।

9 फिर उसने एक और स्वप्न देखा, और अपने भाइयों से उसका भी यों वर्णन किया, कि सुनो, मैं ने एक और स्वप्न देखा है, कि सूर्य और चन्द्रमा, और ग्यारह तारे मुझे दण्डवत कर रहे हैं।

10 यह स्वप्न उसने अपने पिता, और भाइयों से वर्णन किया: तब उसके पिता ने उसको दपट के कहा, यह कैसा स्वप्न है जो तू ने देखा है? क्या सचमुच मैं और तेरी माता और तेरे भाई सब जा कर तेरे आगे भूमि पर गिरके दण्डवत करेंगे?

11 उसके भाई तो उससे डाह करते थे; पर उसके पिता ने उसके उस वचन को स्मरण रखा।

12 और उसके भाई अपने पिता की भेड़-बकरियों को चराने के लिये शकेम को गए।

13 तब इस्राएल ने यूसुफ से कहा, तेरे भाई तो शकेम ही में भेड़-बकरी चरा रहें होंगे, सो जा, मैं तुझे उनके पास भेजता हूं। उसने उससे कहा जो आज्ञा मैं हाजिर हूं।

14 उसने उससे कहा, जा, अपने भाइयों और भेड़-बकरियों का हाल देख आ कि वे कुशल से तो हैं, फिर मेरे पास समाचार ले आ। सो उसने उसको हेब्रोन की तराई में विदा कर दिया, और वह शकेम में आया।

15 और किसी मनुष्य ने उसको मैदान में इधर उधर भटकते हुए पाकर उससे पूछा, तू क्या ढूंढता है?

16 उसने कहा, मैं तो अपने भाइयों को ढूंढता हूं: कृपा कर मुझे बता, कि वे भेड़-बकरियों को कहां चरा रहे हैं?

17 उस मनुष्य ने कहा, वे तो यहां से चले गए हैं: और मैं ने उन को यह कहते सुना, कि आओ, हम दोतान को चलें। सो यूसुफ अपने भाइयों के पास चला, और उन्हें दोतान में पाया।

18 और ज्योंही उन्होंने उसे दूर से आते देखा, तो उसके निकट आने के पहिले ही उसे मार डालने की युक्ति की।

19 और वे आपस में कहने लगे, देखो, वह स्वप्न देखनेहारा आ रहा है।

20 सो आओ, हम उसको घात करके किसी गड़हे में डाल दें, और यह कह देंगे, कि कोई दुष्ट पशु उसको खा गया। फिर हम देखेंगे कि उसके स्वप्नों का क्या फल होगा।

21 यह सुनके रूबेन ने उसको उनके हाथ से बचाने की मनसा से कहा, हम उसको प्राण से तो न मारें।

22 फिर रूबेन ने उन से कहा, लोहू मत बहाओ, उसको जंगल के इस गड़हे में डाल दो, और उस पर हाथ मत उठाओ। वह उसको उनके हाथ से छुड़ाकर पिता के पास फिर पहुंचाना चाहता था।

23 सो ऐसा हुआ, कि जब यूसुफ अपने भाइयों के पास पहुंचा तब उन्हों ने उसका रंगबिरंगा अंगरखा, जिसे वह पहिने हुए था, उतार लिया।

24 और यूसुफ को उठा कर गड़हे में डाल दिया: वह गड़हा तो सूखा था और उस में कुछ जल न था।

25 तब वे रोटी खाने को बैठ गए: और आंखे उठा कर क्या देखा, कि इश्माएलियों का एक दल ऊंटो पर सुगन्धद्रव्य, बलसान, और गन्धरस लादे हुए, गिलाद से मिस्र को चला जा रहा है।

26 तब यहूदा ने अपने भाइयों से कहा, अपने भाई को घात करने और उसका खून छिपाने से क्या लाभ होगा?

27 आओ, हम उसे इश्माएलियों के हाथ बेच डालें, और अपना हाथ उस पर न उठाएं, क्योंकि वह हमारा भाई और हमारी हड्डी और मांस है, सो उसके भाइयों ने उसकी बात मान ली। तब मिद्यानी व्यापारी उधर से होकर उनके पास पहुंचे:

28 सो यूसुफ के भाइयों ने उसको उस गड़हे में से खींच के बाहर निकाला, और इश्माएलियों के हाथ चांदी के बीस टुकड़ों में बेच दिया: और वे यूसुफ को मिस्र में ले गए।

29 और रूबेन ने गड़हे पर लौटकर क्या देखा, कि यूसुफ गड़हे में नहीं हैं; सो उसने अपने वस्त्र फाड़े।

30 और अपने भाइयों के पास लौटकर कहने लगा, कि लड़का तो नहीं हैं; अब मैं किधर जाऊं?

31 और तब उन्होंने यूसुफ का अंगरखा लिया, और एक बकरे को मार के उसके लोहू में उसे डुबा दिया।

32 और उन्होंने उस रंग बिरंगे अंगरखे को अपने पिता के पास भेज कर कहला दिया; कि यह हम को मिला है, सो देखकर पहिचान ले, कि यह तेरे पुत्र का अंगरखा है कि नहीं।

33 उसने उसको पहिचान लिया, और कहा, हां यह मेरे ही पुत्र का अंगरखा है; किसी दुष्ट पशु ने उसको खा लिया है; नि:सन्देह यूसुफ फाड़ डाला गया है।

34 तब याकूब ने अपने वस्त्र फाड़े और कमर में टाट लपेटा, और अपने पुत्र के लिये बहुत दिनों तक विलाप करता रहा।

35 और उसके सब बेटे-बेटियों ने उसको शान्ति देने का यत्न किया; पर उसको शान्ति न मिली; और वह यही कहता रहा, मैं तो विलाप करता हुआ अपने पुत्र के पास अधोलोक में उतर जाऊंगा। इस प्रकार उसका पिता उसके लिये रोता ही रहा।

36 और मिद्यानियों ने यूसुफ को मिस्र में ले जा कर पोतीपर नाम, फिरौन के एक हाकिम, और जल्लादों के प्रधान, के हाथ बेच डाला॥

उत्पत्ति 38

1 उन्हीं दिनों में ऐसा हुआ, कि यहूदा अपने भाईयों के पास से चला गया, और हीरा नाम एक अदुल्लामवासी पुरूष के पास डेरा किया।

2 वहां यहूदा ने शूआ नाम एक कनानी पुरूष की बेटी को देखा; और उसको ब्याह कर उसके पास गया।

3 वह गर्भवती हुई, और उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ; और यहूदा ने उसका नाम एर रखा।

4 और वह फिर गर्भवती हुई, और उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ; और उसका नाम ओनान रखा गया।

5 फिर उसके एक पुत्र और उत्पन्न हुआ, और उसका नाम शेला रखा गया: और जिस समय इसका जन्म हुआ उस समय यहूदा कजीब में रहता था।

6 और यहूदा ने तामार नाम एक स्त्री से अपने जेठे एर का विवाह कर दिया।

7 परन्तु यहूदा का वह जेठा एर यहोवा के लेखे में दुष्ट था, इसलिये यहोवा ने उसको मार डाला।

8 तब यहूदा ने ओनान से कहा, अपनी भौजाई के पास जा, और उसके साथ देवर का धर्म पूरा करके अपने भाई के लिये सन्तान उत्पन्न कर।

9 ओनान तो जानता था कि सन्तान तो मेरी न ठहरेगी: सो ऐसा हुआ, कि जब वह अपनी भौजाई के पास गया, तब उसने भूमि पर वीर्य गिराकर नाश किया, जिस से ऐसा न हो कि उसके भाई के नाम से वंश चले।

10 यह काम जो उसने किया उसे यहोवा अप्रसन्न हुआ: और उसने उसको भी मार डाला।

11 तब यहूदा ने इस डर के मारे, कि कहीं ऐसा न हो कि अपने भाइयों की नाईं शेला भी मरे, अपनी बहू तामार से कहा, जब तक मेरा पुत्र शेला सियाना न हो तब तक अपने पिता के घर में विधवा की बैठी रह, सो तामार अपने पिता के घर में जा कर रहने लगी।

12 बहुत समय के बीतने पर यहूदा की पत्नी जो शूआ की बेटी थी सो मर गई; फिर यहूदा शोक से छूटकर अपने मित्र हीरा अदुल्लामवासी समेत अपनी भेड़-बकरियों का ऊन कतराने के लिये तिम्नाथ को गया।

13 और तामार को यह समाचार मिला, कि तेरा ससुर अपनी भेड़-बकरियों का ऊन कतराने के लिये तिम्नाथ को जा रहा है।

14 तब उसने यह सोच कर, कि शेला सियाना तो हो गया पर मैं उसकी स्त्री नहीं होने पाई; अपना विधवापन का पहिरावा उतारा, और घूंघट डाल कर अपने को ढांप लिया, और एनैम नगर के फाटक के पास, जो तिम्नाथ के मार्ग में है, जा बैठी:

15 जब यहूदा ने उसको देखा, उसने उसको वेश्या समझा; क्योंकि वह अपना मुंह ढ़ापे हुए थी।

16 और वह मार्ग से उसकी ओर फिरा और उससे कहने लगा, मुझे अपने पास आने दे, (क्योंकि उसे यह मालूम न था कि वह उसकी बहू है)। और वह कहने लगी, कि यदि मैं तुझे अपने पास आने दूं, तो तू मुझे क्या देगा?

17 उसने कहा, मैं अपनी बकरियों में से बकरी का एक बच्चा तेरे पास भेज दूंगा। तब उसने कहा, भला उस के भेजने तक क्या तू हमारे पास कुछ रेहन रख जाएगा?

18 उस ने पूछा, मैं तेरे पास क्या रेहन रख जाऊं? उस ने कहा, अपनी मुहर, और बाजूबन्द, और अपने हाथ की छड़ी। तब उसने उसको वे वसतुएं दे दीं, और उसके पास गया, और वह उससे गर्भवती हुई।

19 तब वह उठ कर चली गई, और अपना घूंघट उतार के अपना विधवापन का पहिरावा फिर पहिन लिया।

20 तब यहूदा ने बकरी का बच्चा अपने मित्र उस अदुल्लामवासी के हाथ भेज दिया, कि वह रेहन रखी हुई वस्तुएं उस स्त्री के हाथ से छुड़ा ले आए; पर वह स्त्री उसको न मिली।

21 तब उसने वहां के लोगों से पूछा, कि वह देवदासी जो एनैम में मार्ग की एक और बैठी थी, कहां है? उन्होंने कहा, यहां तो कोई देवदासी न थी।

22 सो उसने यहूदा के पास लौट के कहा, मुझे वह नहीं मिली; और उस स्थान के लोगों ने कहा, कि यहां तो कोई देवदासी न थी।

23 तब यहूदा ने कहा, अच्छा, वह बन्धक उस के पास रहने दे, नहीं तो हम लोग तुच्छ गिने जाएंगे: देख, मैं ने बकरी का यह बच्चा भेज दिया, पर वह तुझे नहीं मिली।

24 और तीन महीने के पीछे यहूदा को यह समाचार मिला, कि तेरी बहू तामार ने व्यभिचार किया है; वरन वह व्यभिचार से गर्भवती भी हो गई है। तब यहूदा ने कहा, उसको बाहर ले आओ, कि वह जलाई जाए।

25 जब उसे बाहर निकाल रहे थे, तब उसने, अपने ससुर के पास यह कहला भेजा, कि जिस पुरूष की ये वस्तुएं हैं, उसी से मैं गर्भवती हूं; फिर उसने यह भी कहलाया, कि पहिचान तो सही, कि यह मुहर, और बाजूबन्द, और छड़ी किस की है।

26 यहूदा ने उन्हें पहिचान कर कहा, वह तो मुझ से कम दोषी है; क्योंकि मैं ने उसे अपने पुत्र शेला को न ब्याह दिया। और उसने उससे फिर कभी प्रसंग न किया।

27 जब उसके जनने का समय आया, तब यह जान पड़ा कि उसके गर्भ में जुड़वे बच्चे हैं।

28 और जब वह जनने लगी तब एक बालक ने अपना हाथ बढ़ाया: और धाय ने लाल सूत ले कर उसके हाथ में यह कहते हुथे बान्ध दिया, कि पहिले यही उत्पन्न हुआ।

29 जब उसने हाथ समेट लिया, तब उसका भाई उत्पन्न हो गया: तब उस धाय ने कहा, तू क्यों बरबस निकल आया है? इसलिये उसका नाम पेरेस रखा गया।

30 पीछे उसका भाई जिसके हाथ में लाल सूत बन्धा था उत्पन्न हुआ, और उसका नाम जेरह रखा गया॥

उत्पत्ति 39

1 जब यूसुफ मिस्र में पहुंचाया गया, तब पोतीपर नाम एक मिस्री, जो फिरौन का हाकिम, और जल्लादों का प्रधान था, उसने उसको इश्माएलियों के हाथ, से जो उसे वहां ले गए थे, मोल लिया।

2 और यूसुफ अपने मिस्री स्वामी के घर में रहता था, और यहोवा उसके संग था; सो वह भाग्यवान पुरूष हो गया।

3 और यूसुफ के स्वामी ने देखा, कि यहोवा उसके संग रहता है, और जो काम वह करता है उसको यहोवा उसके हाथ से सफल कर देता है।

4 तब उसकी अनुग्रह की दृष्टि उस पर हुई, और वह उसकी सेवा टहल करने के लिये नियुक्त किया गया: फिर उसने उसको अपने घर का अधिकारी बना के अपना सब कुछ उसके हाथ में सौप दिया।

5 और जब से उसने उसको अपने घर का और अपनी सारी सम्पत्ति का अधिकारी बनाया, तब से यहोवा यूसुफ के कारण उस मिस्री के घर पर आशीष देने लगा; और क्या घर में, क्या मैदान में, उसका जो कुछ था, सब पर यहोवा की आशीष होने लगी।

6 सो उसने अपना सब कुछ यूसुफ के हाथ में यहां तक छोड़ दिया: कि अपने खाने की रोटी को छोड़, वह अपनी सम्पत्ति का हाल कुछ न जानता था। और यूसुफ सुन्दर और रूपवान् था।

7 इन बातों के पश्चात ऐसा हुआ, कि उसके स्वामी की पत्नी ने यूसुफ की ओर आंख लगाई; और कहा, मेरे साथ सो।

8 पर उसने अस्वीकार करते हुए अपने स्वामी की पत्नी से कहा, सुन, जो कुछ इस घर में है मेरे हाथ में है; उसे मेरा स्वामी कुछ नहीं जानता, और उसने अपना सब कुछ मेरे हाथ में सौप दिया है।

9 इस घर में मुझ से बड़ा कोई नहीं; और उसने तुझे छोड़, जो उसकी पत्नी है; मुझ से कुछ नहीं रख छोड़ा; सो भला, मैं ऐसी बड़ी दुष्टता करके परमेश्वर का अपराधी क्योंकर बनूं?

10 और ऐसा हुआ, कि वह प्रति दिन यूसुफ से बातें करती रही, पर उसने उसकी न मानी, कि उसके पास लेटे वा उसके संग रहे।

11 एक दिन क्या हुआ, कि यूसुफ अपना काम काज करने के लिये घर में गया, और घर के सेवकों में से कोई भी घर के अन्दर न था।

12 तब उस स्त्री ने उसका वस्त्र पकड़कर कहा, मेरे साथ सो, पर वह अपना वस्त्र उसके हाथ में छोड़कर भागा, और बाहर निकल गया।

13 यह देखकर, कि वह अपना वस्त्र मेरे हाथ में छोड़कर बाहर भाग गया,

14 उस स्त्री ने अपने घर के सेवकों को बुलाकर कहा, देखो, वह एक इब्री मनुष्य को हमारा तिरस्कार करने के लिये हमारे पास ले आया है। वह तो मेरे साथ सोने के मतलब से मेरे पास अन्दर आया था और मैं ऊंचे स्वर से चिल्ला उठी।

15 और मेरी बड़ी चिल्लाहट सुनकर वह अपना वस्त्र मेरे पास छोड़कर भागा, और बाहर निकल गया।

16 और वह उसका वस्त्र उसके स्वामी के घर आने तक अपने पास रखे रही।

17 तब उसने उससे इस प्रकार की बातें कहीं, कि वह इब्री दास जिस को तू हमारे पास ले आया है, सो मुझ से हंसी करने के लिये मेरे पास आया था।

18 और जब मैं ऊंचे स्वर से चिल्ला उठी, तब वह अपना वस्त्र मेरे पास छोड़कर बाहर भाग गया।

19 अपनी पत्नी की ये बातें सुनकर, कि तेरे दास ने मुझ से ऐसा ऐसा काम किया, यूसुफ के स्वामी का कोप भड़का।

20 और यूसुफ के स्वामी ने उसको पकड़कर बन्दीगृह में, जहां राजा के कैदी बन्द थे, डलवा दिया: सो वह उस बन्दीगृह में रहने लगा।

21 पर यहोवा यूसुफ के संग संग रहा, और उस पर करूणा की, और बन्दीगृह के दरोगा के अनुग्रह की दृष्टि उस पर हुई।

22 सो बन्दीगृह के दरोगा ने उन सब बन्धुओं को, जो कारागार में थे, यूसुफ के हाथ में सौंप दिया; और जो जो काम वे वहां करते थे, वह उसी की आज्ञा से होता था।

23 बन्दीगृह के दरोगा के वश में जो कुछ था; क्योंकि उस में से उसको कोई भी वस्तु देखनी न पड़ती थी; इसलिये कि यहोवा यूसुफ के साथ था; और जो कुछ वह करता था, यहोवा उसको उस में सफलता देता था।

उत्पत्ति 40

1 इन बातों के पश्चात ऐसा हुआ के राजा के पिलानेहारे और पकानेहारे ने अपने स्वामी का कुछ अपराध किया।

2 तब फिरौन ने अपने उन दोनो हाकिमों पर, अर्थात पिलानेहारों के प्रधान, अर पकानेहारों के प्रधान पर क्रोदित होकर

3 उन्हें कैद करा के जल्लादों के प्रधान के घर के उसी बन्दीगृह में, जहां युसुफ बन्धुआ था, डलवा दिया।

4 तब जल्लादों के प्रधान ने उनको यूसुफ के हाथ सौंपा, और वह उनकी सेवा टहल करने लगा: सो वे कुछ दिन तक बन्दीगृह में रहे।

5 और मिस्त्र के राजा का पिलानेहारा और पकानेहारा जो बन्दीगृह में बन्द थे, उन दोनों ने एक ही रात में, अपने होनेहार के अनुसार, स्वपन देखा।

6 बिहान को जब यूसुफ उनके पास अन्दर गया, तब उन पर दृष्टि की, तो क्या देखा, कि वे उदास हैं।

7 सो उसने फिरौन के उन हाकिमों से, जो उसके साथ उसके स्वामी के घर के बन्दीगृह में थे, पूछा, कि आज तुम्हारे मुँह क्यों उदास हैं?

8 उन्होंने उस से कहा, हम दोनो ने स्वपन देखा है, और उनके फल का बताने वाला कोई भी नहीं। यूसुफ ने उनसे कहा, क्या स्वपनों का फल कहना परमेश्वर का काम नहीं? मुझे अपना अपना स्वपन बताओ।

9 तब पिलानेहारों का प्रधान अपना स्वपन यूसुफ को यों बताने लगा: किमैंने स्वपन में देखा, कि मेरे सामने दाखलता है;

10 और उस दाखलता में तीन डालियां हैं: और उसमें मानो कलियां लगी हैं, और वे फूलीं और उसके गुच्छों में दाक लगकर पक गई:

11 और फिरौन का कटोरा मेरे हाथ में था : सो मैंने उन दाखों को लेकर फिरौन के कटोरे में निचोड़ा, और कटोरे को फिरौन के हाथ में दिया।

12 यूसुफ ने उस से कहा, इसका फल यह है; कि तीन डालियों का अर्थ तीन दिन है :

13 सो अब से तीन दिन के भीतर तेरा सर ऊँचा करेगा, और फिर से तेरे पद पर तुझे नियुक्त करेगा, और तू पहले की नाईं फिरौन का पिलानेहारा होकर उसका कटोरा उसके हाथ में फिर दिया करेगा

14 सो जब तेरा भला हो जाए तब मुझे स्मरण करना, और मुझ पर कृपा करके फिरौन से मेरी चर्चा चलाना, अर इस घर से मुझे छुड़वा देना।

15 क्योंकि सचमुच इब्रानियों के देश से मुझे चुरा कर ले आए हैं, और यहां भी मैंने कोई ऐसा काम नहीं किया, जिसके कारण मैं इस कारागार में डाला जाऊं।

16 यह देखकर, कि उसके स्वपन का फल अच्छा निकला, पकानेहारों के प्रधान ने यूसुफ से कहा, मैंने भी स्वपन देखा है, वह यह है : मैंने देखा, कि मेरे सिर पर सफेद रोटी की तीन टोकरियां हैं :

17 और ऊपर की टोकरी में फिरौन के लिए सब प्रकार की पकी पकाई वस्तुएं हैं; और पक्षी मेरे सिर पर की टोकरी में से उन वस्तुओं को खा रहे हैं।

18 यूसुफ ने कहा, इसका फल यह है; तीन टोकरियों का अर्थ तीन दिन है।

19 सो अब से तीन दिन के भीतर फिरौन तेरा सिर कटवाकर तुझे एक वृक्ष पर टंगवा देगा, और पक्षी तेरे मांस को नोच नोच कर खाएंगे।

20 और तीसरे दिन फिरौन का जन्मदिन था, उसने अपने सब कर्मचारियों की जेवनार की, और उसने पिलानेहारों के प्रधान, और पकानेहारों के प्रधान दोनों को बन्दीगृह से निकलवाया।

21 और पिलानेहारों के प्रधान को तो पिलानेहारे के पद पर फिर से नियुक्त किया, और वह फिरौन के हाथ में कटोरा देने लगा।

22 पर पकानेहारों के प्रधान को उस ने टंगवा दिया, जैसा कि यूसुफ ने उनके स्वपनों का फल उअन्से कहा था।

23 फिर भी पिलानेहारों के प्रधान ने यूसुफ को स्मरण ना रखा; परन्तु उसे भूल गया ॥