चरण 131

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2 इतिहास 24:15-27

15 परन्तु यहोयादा बूढ़ा हो गया और दीर्घायु हो कर मर गया। जब वह मर गया तब एक सौ तीस वर्ष का था।

16 और दाऊदपुर में राजाओं के बीच उसको मिट्टी दी गई, क्योंकि उसने इस्राएल में और परमेश्वर के और उसके भवन के विषय में भला किया था।

17 यहोयादा के मरने के बाद यहूदा के हाकिमों ने राजा के पास जा कर उसे दण्डवत की, और राजा ने उनकी मानी।

18 तब वे अपने पितरों के परमेश्वर यहोवा का भवन छोड़कर अशेरों और मूरतों की उपासना करने लगे। सो उनके ऐसे दोषी होने के कारण परमेश्वर का क्रोध यहूदा और यरूशलेम पर भड़का।

19 तौभी उसने उनके पास नबी भेजे कि उन को यहोवा के पास फेर लाएं; और इन्होंने उन्हें चिता दिया, परन्तु उन्होंने कान न लगाया।

20 और परमेश्वर का आत्मा यहोयादा याजक के पुत्र जकर्याह में समा गया, और वह ऊंचे स्थान पर खड़ा हो कर लोगों से कहने लगा, परमेश्वर यों कहता है, कि तुम यहोवा की आज्ञाओं को क्यों टालते हो? ऐसा कर के तुम भाग्यवान नहीं हो सकते, देखो, तुम ने तो यहोवा को त्याग दिया है, इस कारण उसने भी तुम को त्याग दिया।

21 तब लोगों ने उस से द्रोह की गोष्ठी कर के, राजा की आज्ञा से यहोवा के भवन के आंगन में उसको पत्थरवाह किया।

22 यों राजा योआश ने वह प्रीति भूल कर जो यहोयादा ने उस से की थी, उसके पुत्र को घात किया। और मरते समय उसने कहा यहोवा इस पर दृष्टि कर के इसका लेखा ले।

23 नए वर्ष के लगते अरामियों की सेना ने उस पर चढ़ाई की, और यहूदा ओर यरूशलेम आकर प्रजा में से सब हाकिमों को नाश किया और उनका सब धन लूट कर दमिश्क के राजा के पास भेजा।

24 अरामियों की सेना थोड़े ही पुरुषों की तो आई, पन्तु यहोवा ने एक बहुत बड़ी सेना उनके हाथ कर दी, क्योंकि उन्होंने अपने पितरो के परमेश्वर को त्याग दिया था। और योआश को भी उन्होंने दण्ड दिया।

25 और जब वे उसे बहुत ही रोगी छोड़ गए, तब उसके कर्मचारियों ने यहोयादा याजक के पुत्रों के खून के कारण उस से द्रोह की गोष्ठी कर के, उसे उसके बिछौने पर ही ऐसा मारा, कि वह मर गया; और उन्होंने उसको दाऊद पुर में मिट्टी दी, परन्तु राजाओं के कब्रिस्तान में नहीं।

26 जिन्होंने उस से राजद्रोह की गोष्ठी की, वे ये थे, अर्थात अम्मोनिन, शिमात का पुत्र जाबाद और शिम्रित, मोआबिन का पुत्र यहोजाबाद।

27 उसके बेटों के विषय और उसके विरुद्ध, जो बड़े दण्ड की नबूवत हुई, उसके और परमेश्वर के भवन के बनने के विषय ये सब बातें राजाओं के वृत्तान्त की पुस्तक में लिखी हैं। और उसका पुत्र अमस्याह उसके स्थान पर राजा हुआ।

2 इतिहास 25

1 जब अमस्याह राज्य करने लगा तब वह पच्चीस वर्ष का था, और यरूशलेम में उनतीस वर्ष तक राज्य करता रहा; और उसकी माता का नाम यहोअद्दान था, जो यरूशलेम की थी।

2 उसने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है, परन्तु खरे मन से न किया।

3 जब राज्य उसके हाथ में स्थिर हो गया, तब उसने अपने उन कर्मचारियों को मार डाला जिन्होंने उसके पिता राजा को मार डाला था।

4 परन्तु उसने उनके लड़के वालों को न मारा क्योंकि उसने यहोवा की उस आज्ञा के अनुसार किया, जो मूसा की व्यवस्था की पुस्तक में लिखी है, कि पुत्र के कारण पिता न मार डाला जाए, और न पिता के कारण पुत्र मार डाला जाए, जिसने पाप किया हो वही उस पाप के कारण मार डाला जाए।

5 और अमस्याह ने यहूदा को वरन सारे यहूदियों और बिन्यामीनियों को इकट्ठा कर के उन को, पितरों के घरानों के अनुसार सहस्रपतियों और शतपतियों के अधिकार में ठहराया; और उन में से जितनों की अवस्था बीस वर्ष की अथवा उस से अधिक थी, उनकी गिनती कर के तीन लाख भाला चलाने वाले और ढाल उठाने वाले बड़े बड़े योद्धा पाए।

6 फिर उसने एक लाख इस्राएली शूरवीरों को भी एक सौ किक्कार चान्दी देकर बुलवा रखा।

7 परन्तु परमेश्वर के एक जन ने उसके पास आकर कहा, हे राजा इस्राएल की सेना तेरे साथ जाने न पाए; क्योंकि यहोवा इस्राएल अर्थात एप्रैम की कुल सन्तान के संग नहीं रहता।

8 यदि तू जा कर पुरुषार्थ करे; और युद्ध के लिये हियाव वान्धे, तौभी परमेश्वर तुझे शत्रुओं के साम्हने गिराएगा, क्योंकि सहायता करने और गिरा देने दोनों में परमेश्वर सामथीं है।

9 अमस्याह ने परमेश्वर के भक्त से पूछा, फिर जो सौ किक्कार चान्दी मैं इस्राएली दल को दे चुका हूँ, उसके विषय क्या करूं? परमेश्वर के भक्त ने उत्तर दिया, यहोवा तुझे इस से भी बहुत अधिक दे सकता है।

10 तब अमस्याह ने उन्हें अर्थात उस दल को जो एप्रैम की ओर से उसके पास आया था, अलग कर दिया, कि वे अपने स्थान को लौट जाएं। तब उनका क्रोध यहूदियो पर बहुत भड़क उठा, और वे अत्यन्त क्रोधित हो कर अपने स्थान को लौट गए।

11 परन्तु अमस्याह हियाव बान्ध कर अपने लोगों को ले चला, और लोन की तराई में जा कर, दस हजार सेईरियों को मार डाला।

12 और यहूदियों ने दस हजार को बन्धुआ कर के चट्टान की चोटी पर ले गए, और चट्टान की चोटी पर से गिरा दिया, सो वे सब चूर चूर हो गए।

13 परन्तु उस दल के पुरुष जिसे अमस्याह ने लौटा दिया कि वे उसके साथ युद्ध करने को न जाएं, शेमरोन से बेथोरोन तक यहूदा के सब नगरों पर टूट पड़े, और उनके तीन हजार निवासी मार डाले और बहुत लूट ले ली।

14 जब अमस्याह एदोनियों का संहार कर के लौट आया, तब उसने सेईरियों के देवताओं को ले आकर अपने देवता कर के खड़ा किया, और उन्हीं के साम्हने दण्डवत करने, और उन्हीं के लिये धूप जलाने लगा।

15 तब यहोवा का क्रोध अमस्याह पर भड़क उठा और उसने उसके पास एक नबी भेजा जिसने उस से कहा, जो देवता अपने लोगों को तेरे हाथ से बचा न सके, उनकी खोज में तू क्यों लगा है?

16 वह उस से कह ही रहा था कि उसने उस से पूछा, क्या हम ने तुझे राजमन्त्री ठहरा दिया है? चुप रह! क्या तू मार खाना चाहता है? तब वह नबी यह कह कर चुप हो गया, कि मुझे मालूम है कि परमेश्वर ने तुझे नाश करने को ठाना है, क्योंकि तू ने ऐसा किया है और मेरी सम्मति नहीं मानी।

17 तब यहूदा के राजा अमस्याह ने सम्मति ले कर, इस्राएल के राजा योआश के पास, जो येहू का पोता और यहोआहाज का पुत्र था, यों कहला भेजा, कि आ हम एक दूसरे का साम्हना करें।

18 इस्राएल के राजा योआश ने यहूदा के राजा अमस्याह के पास यों कहला भेजा, कि लबानोन पर की एक झड़बेरी ने लबानोन के एक देवदार के पास कहला भेजा, कि अपनी बेटी मेरे बेटे को ब्याह दे; इतने में लबानोन का कोई वन पशु पास से चला गया और उस झड़बेरी को रौंद डाला।

19 तू कहता है, कि मैं ने एदोमियों को जीत लिया है; इस कारण तू फूल उठा और बड़ाई मारता है! अपने घर में रह जा; तू अपनी हानि के लिये यहां क्यों हाथ डालता है, इस से तू क्या, वरन यहूदा भी नीचा खाएगा।

20 परन्तु अमस्याह ने न माना। यह तो परमेश्वर की ओर से हुआ, कि वह उन्हें उनके शत्रुओं के हाथ कर दे, क्योंकि वे एदोम के देवताओं की खोज में लग गए थे।

21 तब इस्राएल के राजा योआश ने चढ़ाई की और उसने और यहूदा के राजा अमस्याह ने यहूदा देश के बेतशेमेश में एक दूसरे का साम्हना किया।

22 और यहूदा इस्राएल से हार गया, और हर एक अपने अपने डेरे को भागा।

23 तब इस्राएल के राजा योआश ने यहूदा के राजा अमस्याह को, जो यहोआहाज का पोता और योआश का पुत्र था, बेतशेमेश में पकड़ा और यरूशलेम को ले गया और यरूशलेम की शहरपनाह में से एप्रैमी फाटक से कोने वाले फाटक तक चार सौ हाथ गिरा दिए।

24 और जितना सोना चान्दी और जितने पात्र परमेश्वर के भवन में ओबेदेदोम के पास मिले, और राजभवन में जितना खजाना था, उस सब को और बन्धक लोगों को भी ले कर वह शोमरोन को लौट गया।

25 यहोआहाज के पुत्र इस्राएल के राजा योआश के मरने के बाद योआश का पुत्र यहूदा का राजा अमस्याह पन्द्रह वर्ष तक जीवित रहा।

26 आदि से अन्त तक अमस्याह के और काम, क्या यहूदा और इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं?

27 जिस समय अमस्याह यहोवा के पीछे चलना छोड़ कर फिर गया था उस समय से यरूशलेम में उसके विरुद्ध द्रोह की गोष्ठी होने लगी, और वह लाकीश को भाग गया। सो दूतों ने लाकीश तक उसका पीछा कर के, उसको वहीं मार डाला।

28 तब वह घोड़ों पर रख कर पहुंचाया गया और उसे उसके पुरखाओं के बीच यहूदा के नगर में मिट्टी दी गई।

2 इतिहास 26

1 तब सब यहूदी प्रजा ने उज्जिय्याह को ले कर जो सोलह वर्ष का था, उसके पिता अमस्याह के स्थान पर राजा बनाया।

2 जब राजा अमस्याह अपने पुरखाओं के संग सो गया तब उज्जिय्याह ने एलोत नगर को दृढ़ कर के यहूदा में फिर मिला लिया।

3 जब उज्जिय्याह राज्य करने लगा, तब वह सोलह वर्ष का था। और यरूशलेम में बावन वर्ष तक राज्य करता रहा, और उसकी माता का नाम यकील्याह था, जो यरूशलेम की थी।

4 जैसे उसका पिता अमस्याह, किया करता था वैसा ही उसने भी किया जो यहोवा की दृष्टि में ठीक था।

5 और जकर्याह के दिनों में जो परमेश्वर के दर्शन के विषय समझ रखता था, वह परमेश्वर की खोज में लगा रहता था; और जब तक वह यहोवा की खोज में लगा रहा, तब तक परमेश्वर उसको भाग्यवान किए रहा।

6 तब उसने जा कर पलिश्तियों से युद्ध किया, और गत, यब्ने और अशदोद की शहरपनाहें गिरा दीं, और अशदोद के आसपास और पलिश्तियों के बीच में नगर बसाए।

7 और परमेश्वर ने पलिश्तियों और गूर्बालवासी, अरबियों और मूनियों के विरुद्ध उसकी सहायता की।

8 और अम्मोनी उज्जिय्याह को भेंट देने लगे, वरन उसकी कीर्ति मिस्र के सिवाने तक भी फैल गई्र, क्योंकि वह अत्यन्त सामथीं हो गया था।

9 फिर उज्जिय्याह ने यरूशलेम में कोने के फाटक और तराई के फाटक और शहरपनाह के मोड़ पर गुम्मट बनवा कर दृढ़ किए।

10 और उसके बहुत जानवर थे इसलिये उसने जंगल में और नीचे के देश और चौरस देश में गुम्मट बनवाए और बहुत से हौद खुदवाए, और पहाड़ों पर और कर्म्मेल में उसके किसान और दाख की बारियों के माली थे, क्योंकि वह खेती किसानी करने वाला था।

11 फिर उज्जिय्याह के योद्धाओं की एक सेना थी जिनकी गिनती यीएल मुंशी और मासेयाह सरदार, हनन्याह नामक राजा के एक हाकिम की आज्ञा से करते थे, और उसके अनुसार वह दल बान्ध कर लड़ने को जाती थी।

12 पितरों के घरानों के मुख्य मुख्य पुरुष जो शूरवीर थे, उनकी पूरी गिनती दो हजार छ: सौ थी।

13 और उनके अधिकार में तीन लाख साढ़े सात हजार की एक बड़ी बड़ी सेना थी, जो शत्रुओं के विरुद्ध राजा की सहायता करने को बड़े बल से युद्ध करने वाले थे।

14 इनके लिये अर्थात पूरी सेना के लिये उज्जिय्याह ने ढालें, भाले, टोप, झिलम, धनुष और गोफन के पत्थर तैयार किए।

15 फिर उसने यरूशलेम में गुम्मटों और कंगूरों पर रखने को चतुर पुरुषों के निकाले हुए यन्त्र भी बनवाए जिनके द्वारा तीर और बड़े बड़े पत्थर फेंके जाते थे। और उसकी कीर्ति दूर दूर तक फैल गई, क्योंकि उसे अदभुत सहायता यहां तक मिली कि वह सामथीं हो गया।

16 परन्तु जब वह सामथीं हो गया, तब उसका मन फूल उठा; और उसने बिगड़ कर अपने परमेश्वर यहोवा का विश्वासघात किया, अर्थात वह धूप की वेदी पर धूप जलाने को यहोवा के मन्दिर में घुस गया।

17 और अजर्याह याजक उसके बाद भीतर गया, और उसके संग यहोवा के अस्सी याजक भी जो वीर थे गए।

18 और उन्होंने उज्जिय्याह राजा का साम्हना कर के उस से कहा, हे उज्जिय्याह यहोवा के लिये धूप जलाना तेरा काम नहीं, हारून की सन्तान अर्थात उन याजकों ही का काम है, जो धूप जलाने को पवित्र किए गए हैं। तू पवित्र स्थान से निकल जा; तू ने विश्वासघात किया है, यहोवा परमेश्वर की ओर से यह तेरी महिमा का कारण न होगा।

19 तब उज्जिय्याह धूप जलाने को धूपदान हाथ में लिये हुए झुंझला उठा। और वह याजकों पर झुंझला रहा था, कि याजकों के देखते देखते यहोवा के भवन में धूप की वेदी के पास ही उसके माथे पर कोढ़ प्रगट हुआ।

20 और अजर्याह महायाजक और सब याजकों ने उस पर दृष्टि की, और क्या देखा कि उसके माथे पर कोढ़ निकला है! तब उन्होंने उसको वहां से झटपट निकाल दिया, वरन यह जान कर कि यहोवा ने मुझे कोढ़ी कर दिया है, उसने आप बाहर जाने को उतावली की।

21 और उज्जिय्याह राजा मरने के दिन तक कोढ़ी रहा, और कोढ़ के कारण अलग एक घर में रहता था, वह तो यहोवा के भवन में जाने न पाता था। और उसका पुत्र योताम राजघराने के काम पर नियुक्त किया गया और वह लोगों का न्याय भी करता था।

22 आदि से अन्त तक उज्जिय्याह के और कामों का वर्णन तो आमोस के पुत्र यशायाह नबी ने लिखा है।

23 निदान उज्जिय्याह अपने पुरखाओं के संग सो गया, और उसको उसके पुरखाओं के निकट राजाओं के मिट्टी देने के खेत में मिट्टी दी गई क्योंकि उन्होंने कहा, कि वह कोढ़ी है। और उसका पुत्र योताम उसके स्थान पर राज्य करने लगा।

2 इतिहास 27

1 जब योताम राज्य करने लगा तब वह पच्चीस वर्ष का था, और यरूशलेम में सोलह वर्ष तक राज्य करता रहा। और उसकी माता का नाम यरूशा था, जो सादोक की बेठी थी।

2 उसने वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है, अर्थात जैसा उसके पिता उज्जिय्याह ने किया था, ठीक वैसा ही उसने भी किया: तौभी वह यहोवा के मन्दिर में न घुसा। और प्रजा के लोग तब भी बिगड़ी चाल चलते थे।

3 उसी ने यहोवा के भवन के ऊपर वाले फाटक को बनाया, और ओपेल की शहरपनाह पर बहुत कुछ बनवाया।

4 फिर उसने यहूदा के पहाड़ी देश में कई नगर दृढ़ किए, और जंगलों में गढ़ और गुम्मट बनाए।

5 और वह अम्मोनियों के राजा से युद्ध कर के उन पर प्रबल हो गया। उसी वर्ष अम्मोनियों ने उसको सौ किक्कार चांदी, और दस दस हजार कोर गेहूं और जव दिया। और फिर दूसरे और तीसरे वर्ष में भी उन्होंने उसे उतना ही दिया।

6 यों योताम सामथीं हो गया, क्योंकि वह अपने आप को अपने परमेश्वर यहोवा के सम्मुख जान कर सीधी चाल चलता था।

7 योताम के और काम और उसके सब युद्ध और उसकी चाल चलन, इन सब बातों का वर्णन इस्राएल और यहूदा के राजाओं के इतिहास में लिखा है।

8 जब वह राजा हुआ, तब पच्चीस वर्ष का था; और वह यरूशलेम में सोलह वर्ष तक राज्य करता रहा।

9 निदान योताम अपने पुरखाओं के संग सो गया और उसे दाऊदपुर में मिट्टी दी गई। और उसका पुत्र आहाज उसके स्थान पर राज्य करने लगा।

2 इतिहास 28

1 जब आहाज राज्य करने लगा तब वह बीस वर्ष का था, और सोलह वर्ष तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। और अपने मूलपुरुष दाऊद के समान काम नहीं किया, जो यहोवा की दृष्टि में ठीक था,

2 परन्तु वह इस्राएल के राजाओं की सी चाल चला, और बाल देवताओं की मूतिर्यां ढलवा कर बनाईं;

3 और हिन्नोम के बेटे की तराई में धूप जलाया, और उन जातियों के घिनौने कामों के अनुसार जिन्हें यहोवा ने इस्राएलियों के साम्हने से देश से निकाल दिया था, अपने लड़केबालों को आग में होम कर दिया।

4 और ऊंचे स्थानों पर, और पहाडिय़ों पर, और सब हरे वृक्षों के तले वह बलि चढ़ाया और धूप जलाया करता था।

5 इसलिये उसके परमेश्वर यहोवा ने उसको अरामियों के राजा के हाथ कर दिया, और वे उसको जीत कर, उसके बहुत से लोगों को बन्धुआ बना के दमिश्क को ले गए। और वह इस्राएल के राजा के वश में कर दिया गया, जिसने उसे बड़ी मार से मारा।

6 और रमल्याह के पुत्र पेकह ने, यहूदा में एक ही दिन में एक लाख बीस हजार लोगों को जो सब के सब वीर थे, घात किया, क्योंकि उन्होंने अपने पितरों के परमेश्वर यहोवा को त्याग दिया था।

7 और जिक्री नामक एक एप्रैमी वीर ने मासेयाह नामक एक राजपुत्र को, और राजभवन के प्रधान अज्रीकाम को, और एलकाना को, जो राजा का मंत्री था, मार डाला।

8 और इस्राएली अपने भाइयों में से स्त्रियों, बेटों और बेटियों को मिला कर दो लाख लोगों को बन्धुआ बना के, और उनकी बहुत लूट भी छीन कर शोमरोन की ओर ले चले।

9 परन्तु वहां ओदेद नामक यहोवा का एक नबी था; वह शोमरोन को आने वाली सेना से मिल कर उन से कहने लगा, सुनो, तुम्हारे पितरों के परमेश्वर यहोवा ने यहूदियों पर झुंझला कर उन को तुम्हारे हाथ कर दिया है, और तुम ने उन को ऐसा क्रोध कर के घात किया जिसकी चिल्लाहट स्वर्ग को पहुंच गई है।

10 और अब तुम ने ठाना है कि यहूदियों और यरूशलेमियों को अपने दास-दासी बना कर दबाए रखो। क्या तुम भी अपने परमेश्वर यहोवा के यहां दाषी नहीं हो?

11 इसलिये अब मेरी सुनो और इन बन्धुओं को जिन्हें तुम अपने भाइयों में से बन्धुआ बना के ले आए हो, लौटा दो, यहोवा का क्रोध तो तुम पर भड़का है।

12 तब एप्रैमियों के कितने मुख्य पुरुष अर्थात योहानान का पुत्र अजर्याह, मशिल्लेमोत का पुत्र बेरेक्याह, शल्लूम का पुत्र यहिजकिय्याह, और हदलै का पुत्र अमासा, लड़ाई से आने वालों का साम्हना कर के, उन से कहने लगे।

13 तुम इन बन्धुओं को यहां मत लाओ; क्योंकि तुम ने वह बात ठानी है जिसके कारण हम यहोवा के यहां दोषी हो जाएंगे, और उस से हमारा पाप और दोष बढ़ जाएगा, हमारा दोष तो बड़ा है और इस्राएल पर बहुत क्रोध भड़का है।

14 तब उन हथियार बन्धों ने बन्धुओं और लूट को हाकिमों और सारी सभा के साम्हने छोड़ दिया।

15 तब जिन पुरुषों के नाम ऊपर लिखे हैं, उन्होंने उठ कर बन्धुओं को ले लिया, और लूट में से सब नंगे लोगों को कपड़े, और जूतियां पहिनाईं; और खाना खिलाया, और पानी पिलाया, और तेल मला; और तब निर्बल लोगों को गदहों पर चढ़ा कर, यरीहो को जो खजूर का नगर कहलाता है, उनके भाइयों के पास पहुंचा दिया। तब वे शोमरोन को लौट आए।

16 उस समय राजा आहाज ने अश्शूर के राजाओं के पास दूत भेज कर सहायता मांगी।

17 क्योंकि एदोमियों ने यहूदा में आकर उसको मारा, और बन्धुओं को ले गए थे।

18 और पलिश्तयों ने नीचे के देश और यहूदा के दक्खिन देश के नगरों पर चढ़ाई कर के, बेतशेमेश, अय्यालोन और गदेरोत को, और अपने अपने गांवों समेत सोको, तिम्ना, और गिमजो को ले लिया; और उन में रहने लगे थे।

19 यों यहोवा ने इस्राएल के राजा आहाज के कारण यहूदा को दबा दिया, क्योंकि वह निरंकुश हो कर चला, और यहोवा से बड़ा विश्वासघात किया।

20 तब अश्शूर का राजा तिलगतपिलनेसेर उसके विरुद्ध आया, और उसको कष्ट दिया; दृढ़ नहीं किया।

21 आहाज ने तो यहोवा के भवन और राजभवन और हाकिमों के घरों में से धन निकाल कर अश्शूर के राजा को दिया, परन्तु इससे उसकी कुछ सहायता न हुई।

22 और क्लेश के समय राजा आहाज ने यहोवा से और भी विश्वासघात किया।

23 और उसने दमिश्क के देवताओं के लिये जिन्होंने उसको मारा था, बलि चढ़ाया; क्योंकि उसने यह सोचा, कि आरामी राजाओं के देवताओं ने उनकी सहायता की, तो मैं उनके लिये बलि चढ़ाऊंगा कि वे मेरी सहायता करें। परन्तु वे उसके और सारे इस्राएल के पतन का कारण हुए।

24 फिर आहाज ने परमेश्वर के भवन के पात्र बटोर कर तुड़वा डाले, और यहोवा के भवन के द्वारों को बन्द कर दिया; और यरूशलेम के सब कोनों में वेदियां बनाईं।

25 और यहूदा के एक एक नगर में उसने पराये देवताओं को धूप जलाने के लिये ऊंचे स्थान बनाए, और अपने पितरों के परमेश्वर यहोवा को रिस दिलाई।

26 और उसके और कामों, और आदि से अन्त तक उसकी पूरी चाल चलन का वर्णन यहूदा और इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में लिखा है।

27 निदान आहाज अपने पुरखाओं के संग सो गया और उसको यरूशलेम नगर में मिट्टी दी गई, परन्तु वह इस्राएल के राजाओं के कब्रिस्तान में पहुंचाया न गया। और उसका पुत्र हिजकिय्याह उसके स्थान पर राज्य करने लगा।