चरण 163

पढाई करना

     

भजन संहिता 35:22-28

22 हे यहोवा, तू ने तो देखा है; चुप न रह! हे प्रभु, मुझ से दूर न रह!

23 उठ, मेरे न्याय के लिये जाग, हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे प्रभु, मेरे मुकद्दमा निपटाने के लिये आ!

24 हे मेरे परमेश्वर यहोवा, तू अपने धर्म के अनुसार मेरा न्याय चुका; और उन्हें मेरे विरुद्ध आनन्द करने न दे!

25 वे मन में न कहने पाएं, कि आहा! हमारी तो इच्छा पूरी हुई! वह यह न कहें कि हम उसे निगल गए हैं॥

26 जो मेरी हानि से आनन्दित होते हैं उनके मुंह लज्जा के मारे एक साथ काले हों! जो मेरे विरुद्ध बड़ाई मारते हैं वह लज्जा और अनादर से ढ़ंप जाएं!

27 जो मेरे धर्म से प्रसन्न रहते हैं, वह जयजयकार और आनन्द करें, और निरन्तर कहते रहें, यहोवा की बड़ाई हो, जो अपने दास के कुशल से प्रसन्न होता है!

28 तब मेरे मुंह से तेरे धर्म की चर्चा होगी, और दिन भर तेरी स्तुति निकलेगी॥

भजन संहिता 36

1 दुष्ट जन का अपराध मेरे हृदय के भीतर यह कहता है कि परमेश्वर का भय उसकी दृष्टि में नहीं है।

2 वह अपने अधर्म के प्रगट होने और घृणित ठहरने के विषय अपने मन में चिकनी चुपड़ी बातें विचारता है।

3 उसकी बातें अनर्थ और छल की हैं; उसने बुद्धि और भलाई के काम करने से हाथ उठाया है।

4 वह अपने बिछौने पर पड़े पड़े अनर्थ की कल्पना करता है; वह अपने कुमार्ग पर दृढ़ता से बना रहता है; बुराई से वह हाथ नहीं उठाता॥

5 हे यहोवा तेरी करूणा स्वर्ग में है, तेरी सच्चाई आकाश मण्डल तक पहुंची है।

6 तेरा धर्म ऊंचे पर्वतों के समान है, तेरे नियम अथाह सागर ठहरे हैं; हे यहोवा तू मनुष्य और पशु दोनों की रक्षा करता है॥

7 हे परमेश्वर तेरी करूणा, कैसी अनमोल है! मनुष्य तेरे पंखो के तले शरण लेते हैं।

8 वे तेरे भवन के चिकने भोजन से तृप्त होंगे, और तू अपनी सुख की नदी में से उन्हें पिलाएगा।

9 क्योंकि जीवन का सोता तेरे ही पास है; तेरे प्रकाश के द्वारा हम प्रकाश पाएंगे॥

10 अपने जानने वालों पर करूणा करता रह, और अपने धर्म के काम सीधे मन वालों में करता रह!

11 अहंकारी मुझ पर लात उठाने न पाए, और न दुष्ट अपने हाथ के बल से मुझे भगाने पाए।

12 वहां अनर्थकारी गिर पड़े हैं; वे ढकेल दिए गए, और फिर उठ न सकेंगे॥

भजन संहिता 37:1-26

1 कुकर्मियों के कारण मत कुढ़, कुटिल काम करने वालों के विषय डाह न कर!

2 क्योंकि वे घास की नाईं झट कट जाएंगे, और हरी घास की नाईं मुर्झा जाएंगे।

3 यहोवा पर भरोसा रख, और भला कर; देश में बसा रह, और सच्चाई में मन लगाए रह।

4 यहोवा को अपने सुख का मूल जान, और वह तेरे मनोरथों को पूरा करेगा॥

5 अपने मार्ग की चिन्ता यहोवा पर छोड़; और उस पर भरोसा रख, वही पूरा करेगा।

6 और वह तेरा धर्म ज्योति की नाईं, और तेरा न्याय दोपहर के उजियाले की नाईं प्रगट करेगा॥

7 यहोवा के साम्हने चुपचाप रह, और धीरज से उसका आसरा रख; उस मनुष्य के कारण न कुढ़, जिसके काम सुफल होते हैं, और वह बुरी युक्तियों को निकालता है!

8 क्रोध से परे रह, और जलजलाहट को छोड़ दे! मत कुढ़, उससे बुराई ही निकलेगी।

9 क्योंकि कुकर्मी लोग काट डाले जाएंगे; और जो यहोवा की बाट जोहते हैं, वही पृथ्वी के अधिकारी होंगे।

10 थोड़े दिन के बीतने पर दुष्ट रहेगा ही नहीं; और तू उसके स्थान को भलीं भांति देखने पर भी उसको न पाएगा।

11 परन्तु नम्र लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और बड़ी शान्ति के कारण आनन्द मनाएंगे।

12 दुष्ट धर्मी के विरुद्ध बुरी युक्ति निकालता है, और उस पर दांत पीसता है;

13 परन्तु प्रभु उस पर हंसेगा, क्योंकि वह देखता है कि उसका दिन आने वाला है॥

14 दुष्ट लोग तलवार खींचे और धनुष बढ़ाए हुए हैं, ताकि दीन दरिद्र को गिरा दें, और सीधी चाल चलने वालों को वध करें।

15 उनकी तलवारों से उन्हीं के हृदय छिदेंगे, और उनके धनुष तोड़े जाएंगे॥

16 धर्मी का थोड़ा से माल दुष्टों के बहुत से धन से उत्तम है।

17 क्योंकि दुष्टोंकी भुजाएं तो तोड़ी जाएंगी; परन्तु यहोवा धर्मियों को सम्भालता है॥

18 यहोवा खरे लोगों की आयु की सुधि रखता है, और उनका भाग सदैव बना रहेगा।

19 विपत्ति के समय, उनकी आशा न टूटेगी और न वे लज्जित होंगे, और अकाल के दिनों में वे तृप्त रहेंगे॥

20 दुष्ट लोग नाश हो जाएंगे; और यहोवा के शत्रु खेत की सुथरी घास की नाईं नाश होंगे, वे धूएं की नाईं बिलाय जाएंगे॥

21 दुष्ट ऋण लेता है, और भरता नहीं परन्तु धर्मीं अनुग्रह करके दान देता है;

22 क्योंकि जो उससे आशीष पाते हैं वे तो पृथ्वी के अधिकारी होंगे, परन्तु जो उससे शापित होते हैं, वे नाश को जाएंगे॥

23 मनुष्य की गति यहोवा की ओर से दृढ़ होती है, और उसके चलन से वह प्रसन्न रहता है;

24 चाहे वह गिरे तौभी पड़ा न रह जाएगा, क्योंकि यहोवा उसका हाथ थामे रहता है॥

25 मैं लड़कपन से लेकर बुढ़ापे तक देखता आया हूं; परन्तु न तो कभी धर्मी को त्यागा हुआ, और न उसके वंश को टुकड़े मांगते देखा है।

26 वह तो दिन भर अनुग्रह कर करके ऋण देता है, और उसके वंश पर आशीष फलती रहती है॥