चरण 338

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2 कुरिन्थियों 1

1 पौलुस की ओर से जो परमेश्वर की इच्छा से मसीह यीशु का प्रेरित है, और भाई तीमुथियुस की ओर से परमेश्वर की उस कलीसिया के नाम जो कुरिन्थुस में है; और सारे अखया के सब पवित्र लोगों के नाम॥

2 हमारे पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह की ओर से तुम्हें अनुग्रह और शान्ति मिलती रहे॥

3 हमारे प्रभु यीशु मसीह के परमेश्वर, और पिता का धन्यवाद हो, जो दया का पिता, और सब प्रकार की शान्ति का परमेश्वर है।

4 वह हमारे सब क्लेशों में शान्ति देता है; ताकि हम उस शान्ति के कारण जो परमेश्वर हमें देता है, उन्हें भी शान्ति दे सकें, जो किसी प्रकार के क्लेश में हों।

5 क्योंकि जैसे मसीह के दुख हम को अधिक होते हैं, वैसे ही हमारी शान्ति भी मसीह के द्वारा अधिक होती है।

6 यदि हम क्लेश पाते हैं, तो यह तुम्हारी शान्ति और उद्धार के लिये है और यदि शान्ति पाते हैं, तो यह तुम्हारी शान्ति के लिये है; जिस के प्रभाव से तुम धीरज के साथ उन क्लेशों को सह लेते हो, जिन्हें हम भी सहते हैं।

7 और हमारी आशा तुम्हारे विषय में दृढ़ है; क्योंकि हम जानते हैं, कि तुम जैसे दुखों के वैसे ही शान्ति के भी सहभागी हो।

8 हे भाइयों, हम नहीं चाहते कि तुम हमारे उस क्लेश से अनजान रहो, जो आसिया में हम पर पड़ा, कि ऐसे भारी बोझ से दब गए थे, जो हमारी सामर्थ से बाहर था, यहां तक कि हम जीवन से भी हाथ धो बैठे थे।

9 वरन हम ने अपने मन में समझ लिया था, कि हम पर मृत्यु की आज्ञा हो चुकी है कि हम अपना भरोसा न रखें, वरन परमेश्वर का जो मरे हुओं को जिलाता है।

10 उसी ने हमें ऐसी बड़ी मृत्यु से बचाया, और बचाएगा; और उस से हमारी यह आशा है, कि वह आगे को भी बचाता रहेगा।

11 और तुम भी मिलकर प्रार्थना के द्वारा हमारी सहायता करोगे, कि जो वरदान बहुतों के द्वारा हमें मिला, उसके कारण बहुत लोग हमारी ओर से धन्यवाद करें॥

12 क्योंकि हम अपने विवेक की इस गवाही पर घमण्ड करते हैं, कि जगत में और विशेष करके तुम्हारे बीच हमारा चरित्र परमेश्वर के योग्य ऐसी पवित्रता और सच्चाई सहित था, जो शारीरिक ज्ञान से नहीं, परन्तु परमेश्वर के अनुग्रह के साथ था।

13 हम तुम्हें और कुछ नहीं लिखते, केवल वह जो तुम पढ़ते या मानते भी हो, और मुझे आशा है, कि अन्त तक भी मानते रहोगे।

14 जैसा तुम में से कितनों ने मान लिया है, कि हम तुम्हारे घमण्ड का कारण है; वैसे तुम भी प्रभु यीशु के दिन हमारे लिये घमण्ड का कारण ठहरोगे॥

15 और इस भरोसे से मैं चाहता था कि पहिले तुम्हारे पास आऊं; कि तुम्हें एक और दान मिले।

16 और तुम्हारे पास से होकर मकिदुनिया को जाऊं और फिर मकिदूनिया से तुम्हारे पास आऊँ, और तुम मुझे यहूदिया की ओर कुछ दूर तक पहुंचाओ।

17 इसलिये मैं ने जो यह इच्छा की थी तो क्या मैं ने चंचलता दिखाई? या जो करना चाहता हूं क्या शरीर के अनुसार करना चाहता हूं, कि मैं बात में हां, हां भी करूं; और नहीं, नहीं भी करूं?

18 परमेश्वर सच्चा गवाह है, कि हमारे उस वचन में जो तुम से कहा हां और नहीं दानों पाई नहीं जातीं।

19 क्योंकि परमेश्वर का पुत्र यीशु मसीह जिसका हमारे द्वारा अर्थात मेरे और सिलवानुस और तीमुथियुस के द्वारा तुम्हारे बीच में प्रचार हुआ; उस में हां और नहीं दोनों न थीं; परन्तु, उस में हां ही हां हुई।

20 क्याकि परमेश्वर की जितनी प्रतिज्ञाएं हैं, वे सब उसी में हां के साथ हैं: इसलिये उसके द्वारा आमीन भी हुई, कि हमारे द्वारा परमेश्वर की महिमा हो।

21 और जो हमें तुम्हारे साथ मसीह में दृढ़ करता है, और जिस ने हमें अभिषेक किया वही परमेश्वर है।

22 जिस ने हम पर छाप भी कर दी है और बयाने में आत्मा को हमारे मनों में दिया॥

23 मैं परमेश्वर को गवाह करता हूं, कि मै अब तक कुरिन्थुस में इसलिये नहीं आया, कि मुझे तुम पर तरस आता था।

24 यह नहीं, कि हम विश्वास के विषय में तुम पर प्रभुता जताना चाहते हैं; परन्तु तुम्हारे आनन्द में सहायक हैं क्योंकि तुम विश्वास ही से स्थिर रहते हो।

2 कुरिन्थियों 2

1 मैंने अपने मन में यही ठान लिया था कि फिर तुम्हारे पास उदास होकर न आऊं।

2 क्योंकि यदि मैं तुम्हें उदास करूं, तो मुझे आनन्द देने वाला कौन होगा, केवल वही जिस को मैं ने उदास किया?

3 और मैं ने यही बात तुम्हें इसलिये लिखी, कि कहीं ऐसा न हो, कि मेरे आने पर जिन से आनन्द मिलना चाहिए, मैं उन से उदास होऊं; क्योंकि मुझे तुम सब पर इस बात का भरोसा है, कि जो मेरा आनन्द है, वही तुम सब का भी है।

4 बड़े क्लेश, और मन के कष्ट से, मैं ने बहुत से आंसु बहा बहाकर तुम्हें लिखा, इसलिये नहीं, कि तुम उदास हो, परन्तु इसलिये कि तुम उस बड़े प्रेम को जान लो, जो मुझे तुम से है॥

5 और यदि किसी ने उदास किया है, तो मुझे ही नहीं वरन (कि उसके साथ बहुत कड़ाई न करूं) कुछ कुछ तुम सब को भी उदास किया है।

6 ऐसे जन के लिये यह दण्ड जो भाइयों में से बहुतों ने दिया, बहुत है।

7 इसलिये इस से यह भला है कि उसका अपराध क्षमा करो; और शान्ति दो, न हो कि ऐसा मनुष्य उदासी में डूब जाए।

8 इस कारण मैं तुम से बिनती करता हूं, कि उस को अपने प्रेम का प्रमाण दो।

9 क्योंकि मैं ने इसलिये भी लिखा था, कि तुम्हें परख लूं, कि सब बातों के मानने के लिये तैयार हो, कि नहीं।

10 जिस का तुम कुछ क्षमा करते हो उस मैं भी क्षमा करता हूं, क्योंकि मैं ने भी जो कुछ क्षमा किया है, यदि किया हो, तो तुम्हारे कारण मसीह की जगह में होकर क्षमा किया है।

11 कि शैतान का हम पर दांव न चले, क्योंकि हम उस की युक्तियों से अनजान नहीं।

12 और जब मैं मसीह का सुसमाचार, सुनाने को त्रोआस में आया, और प्रभु ने मेरे लिये एक द्वार खोल दिया।

13 तो मेरे मन में चैन न मिला, इसलिये कि मैं ने अपने भाई तितुस को नहीं पाया; सो उन से विदा होकर मैं मकिदुनिया को चला गया।

14 परन्तु परमेश्वर का धन्यवाद हो, जो मसीह में सदा हम को जय के उत्सव में लिये फिरता है, और अपने ज्ञान का सुगन्ध हमारे द्वारा हर जगह फैलाता है।

15 क्योंकि हम परमेश्वर के निकट उद्धार पाने वालों, और नाश होने वालों, दोनो के लिये मसीह के सुगन्ध हैं।

16 कितनो के लिये तो मरने के निमित्त मृन्यु की गन्ध, और कितनो के लिये जीवन के निमित्त जीवन की सुगन्ध, और इन बातों के योग्य कौन है?

17 क्योंकि हम उन बहुतों के समान नहीं, जो परमेश्वर के वचन में मिलावट करते हैं; परन्तु मन की सच्चाई से, और परमेश्वर की ओर से परमेश्वर को उपस्थित जानकर मसीह में बोलते हैं॥