चरण 45

पढाई करना

     

गिनती 10:11-36

11 और दूसरे वर्ष के दूसरे महीने के बीसवें दिन को बादल साक्षी के निवास पर से उठ गया,

12 तब इस्त्राएली सीनै के जंगल में से निकलकर प्रस्थान करके निकले; और बादल पारान नाम जंगल में ठहर गया।

13 उनका प्रस्थान यहोवा की उस आज्ञा के अनुसार जो उसने मूसा को दी थी आरम्भ हुआ।

14 और सब से पहले तो यहूदियों की छावनी के झंडे का प्रस्थान हुआ, और वे दल बान्धकर चले; और उन का सेनापति अम्मीनादाब का पुत्र नहशोन था।

15 और इस्साकारियों के गोत्र का सेनापति सूआर का पुत्र नतनेल था।

16 और जबूलूनियों के गोत्र का सेनापति हेलोन का पुत्र एलीआब था।

17 तब निवास उतारा गया, और गेर्शोनियोंऔर मरारियों ने जो निवास को उठाते थे प्रस्थान किया।

18 फिर रूबेन की छावनी झंडे का कूच हुआ, और वे भी दल बनाकर चले; और उनका सेनापति शदेऊर का पुत्र एलीशूर था।

19 और शिमोनियों के गोत्र का सेनापति सूरीशद्दै का पुत्र शलूमीएल था।

20 और गादियों के गोत्र का सेनापति दूएल का पुत्र एल्यासाप था।

21 तब कहातियों ने पवित्र वस्तुओं को उठाए हुए प्रस्थान किया, और उनके पहुंचने तक गेर्शोनियोंऔर मरारियों ने निवास को खड़ा कर दिया।

22 फिर एप्रैमियों की छावनी के झंडे का कूच हुआ, और वे भी दल बनाकर चले; और उनका सेनापति अम्मीहूद का पुत्र एलीशामा था।

23 और मनश्शेइयों के गोत्र को सेनापति पदासूर का पुत्र गम्लीएल था।

24 और बिन्यामीनियों के गोत्र का सेनापति गिदोनी का पुत्र अबीदान था।

25 फिर दानियों की छावनी जो सब छावनियों के पीछे थी, उसके झंडे का प्रस्थान हुआ, और वे भी दल बना कर चले; और उनका सेनापति अम्मीशद्दै का पुत्र अहीएजेर था।

26 और आशेरियों के गोत्र का सेनापति ओक्रान का पुत्र पक्कीएल था।

27 और नप्तालियों के गोत्र का सेनापति एनान का पुत्र अहीरा था।

28 इस्त्राएली इसी प्रकार अपने अपने दलों के अनुसार प्रस्थान करते, और आगे बढ़ा करते थे।

29 और मूसा ने अपने ससुर रूएल मिद्यानी के पुत्र होबाब से कहा, हम लोग उस स्थान की यात्रा करते हैं जिसके विषय में यहोवा ने कहा है, कि मैं उसे तुम को दूंगा; सो तू भी हमारे संग चल, और हम तेरी भलाई करेंगे; क्योंकि यहोवा ने इस्त्राएल के विषय में भला ही कहा है।

30 होबाब ने उसे उत्तर दिया, कि मैं नहीं जाऊंगा; मैं अपने देश और कुटुम्बियों में लौट जाऊंगा।

31 फिर मूसा ने कहा, हम को न छोड़, क्योंकि जंगल में कहां कहां डेरा खड़ा करना चाहिये, यह तुझे ही मालूम है, तू हमारे लिये आंखों का काम देना।

32 और यदि तू हमारे संग चले, तो निश्चय जो भलाई यहोवा हम से करेगा उसी के अनुसार हम भी तुझ से वैसा ही करेंगे॥

33 फिर इस्त्राएलियों ने यहोवा के पर्वत से प्रस्थान करके तीन दिन की यात्रा की; और उन तीनों दिनों के मार्ग में यहोवा की वाचा का सन्दूक उनके लिये विश्राम का स्थान ढूंढ़ता हुआ उनके आगे आगे चलता रहा।

34 और जब वे छावनी के स्थान से प्रस्थान करते थे तब दिन भर यहोवा का बादल उनके ऊपर छाया रहता था।

35 और जब जब सन्दूक का प्रस्थान होता था तब तब मूसा यह कहा करता था, कि हे यहोवा, उठ, और तेरे शत्रु तित्तर बित्तर हो जाएं, और तेरे बैरी तेरे साम्हने से भाग जाएं।

36 और जब जब वह ठहर जाता था तब तब मूसा कहा करता था, कि हे यहोवा, हजारों-हज़ार इस्त्राएलियों में लौटकर आ जा॥

गिनती 11

1 फिर वे लोग बुड़बुड़ाने और यहोवा के सुनते बुरा कहने लगे; निदान यहोवा ने सुना, और उसका कोप भड़क उठा, और यहोवा की आग उनके मध्य जल उठी, और छावनी के एक किनारे से भस्म करने लगी।

2 तब मूसा के पास आकर चिल्लाए; और मूसा ने यहोवा से प्रार्थना की, तब वह आग बुझ गई,

3 और उस स्थान का नाम तबेरा पड़ा, क्योंकि यहोवा की आग उन में जल उठी थी॥

4 फिर जो मिली-जुली भीड़ उनके साथ थी वह कामुकता करने लगी; और इस्त्राएली भी फिर रोने और कहने लगे, कि हमें मांस खाने को कौन देगा।

5 हमें वे मछलियां स्मरण हैं जो हम मिस्र में सेंतमेंत खाया करते थे, और वे खीरे, और खरबूजे, और गन्दने, और प्याज, और लहसुन भी;

6 परन्तु अब हमारा जी घबरा गया है, यहां पर इस मन्ना को छोड़ और कुछ भी देख नहीं पड़ता।

7 मन्ना तो धनिये के समान था, और उसका रंग रूप मोती का सा था।

8 लोग इधर उधर जा कर उसे बटोरते, और चक्की में पीसते वा ओखली में कूटते थे, फिर तसले में पकाते, और उसके फुलके बनाते थे; और उसका स्वाद तेल में बने हुए पुए का सा था।

9 और रात को छावनी में ओस पड़ती थी तब उसके साथ मन्ना भी गिरता था।

10 और मूसा ने सब घरानों के आदमियों को अपने अपने डेरे के द्वार पर रोते सुना; और यहोवा का कोप अत्यन्त भड़का, और मूसा को भी बुरा मालूम हुआ।

11 तब मूसा ने यहोवा से कहा, तू अपने दास से यह बुरा व्यवहार क्यों करता है? और क्या कारण है कि मैं ने तेरी दृष्टि में अनुग्रह नहीं पाया, कि तू ने इन सब लोगों का भार मुझ पर डाला है?

12 क्या ये सब लोग मेरे ही कोख में पड़े थे? क्या मैं ही ने उन को उत्पन्न किया, जो तू मुझ से कहता है, कि जैसे पिता दूध पीते बालक को अपनी गोद में उठाए उठाए फिरता है, वैसे ही मैं इन लोगों को अपनी गोद में उठा कर उस देश में ले जाऊं, जिसके देने की शपथ तू ने उनके पूर्वजों से खाई है?

13 मुझे इतना मांस कहां से मिले कि इन सब लोगों को दूं? ये तो यह कह कहकर मेरे पास रो रहे हैं, कि तू हमे मांस खाने को दे।

14 मैं अकेला इन सब लोगों का भार नहीं सम्भाल सकता, क्योंकि यह मेरी शक्ति के बाहर है।

15 और जो तुझे मेरे साथ यही व्यवहार करना है, तो मुझ पर तेरा इतना अनुग्रह हो, कि तू मेरे प्राण एकदम ले ले, जिस से मैं अपनी दुर्दशा न देखने पाऊं॥

16 यहोवा ने मूसा से कहा, इस्त्राएली पुरनियों में से सत्तर ऐसे पुरूष मेरे पास इकट्ठे कर, जिन को तू जानता है कि वे प्रजा के पुरनिये और उनके सरदार हैं; और मिलापवाले तम्बू के पास ले आ, कि वे तेरे साथ यहां खड़े हों।

17 तब मैं उतरकर तुझ से वहां बातें करूंगा; और जो आत्मा तुझ में है उस में से कुछ ले कर उन में समवाऊंगा; और वे इन लोगों का भार तेरे संग उठाए रहेंगे, और तुझे उसको अकेले उठाना न पड़ेगा।

18 और लोगों से कह, कल के लिये अपने को पवित्र करो, तब तुम्हें मांस खाने को मिलेगा; क्योंकि तुम यहोवा के सुनते हुए यह कह कहकर रोए हो, कि हमें मांस खाने को कौन देगा? हम मिस्र ही में भले थे। सो यहोवा तुम को मांस खाने को देगा, और तुम खाना।

19 फिर तुम एक दिन, वा दो, वा पांच, वा दस, वा बीस दिन ही नहीं,

20 परन्तु महीने भर उसे खाते रहोगे, जब तक वह तुम्हारे नथनों से निकलने न लगे और तुम को उससे घृणा न हो जाए, क्योंकि तुम लोगों ने यहोवा को जो तुम्हारे मध्य में है तुच्छ जाना है, और उसके साम्हने यह कहकर रोए हो, कि हम मिस्र से क्यों निकल आए?

21 फिर मूसा ने कहा, जिन लोगों के बीच मैं हूं उन में से छ: लाख तो प्यादे ही हैं; और तू ने कहा है, कि मैं उन्हें इतना मांस दूंगा, कि वे महीने भर उसे खाते ही रहेंगे।

22 क्या वे सब भेड़-बकरी गाय-बैल उनके लिये मारे जाएं, कि उन को मांस मिले? वा क्या समुद्र की सब मछलियां उनके लिये इकट्ठी की जाएं, कि उन को मांस मिले?

23 यहोवा ने मूसा से कहा, क्या यहोवा का हाथ छोटा हो गया है? अब तू देखेगा, कि मेरा वचन जो मैं ने तुझ से कहा है वह पूरा होता है कि नहीं।

24 तब मूसा ने बाहर जा कर प्रजा के लोगों को यहोवा की बातें कह सुनाईं; और उनके पुरनियों में से सत्तर पुरूष इकट्ठे करके तम्बू के चारों ओर खड़े किए।

25 तब यहोवा बादल में हो कर उतरा और उसने मूसा से बातें की, और जो आत्मा उस में थी उस में से ले कर उन सत्तर पुरनियों में समवा दिया; और जब वह आत्मा उन में आई तब वे नबूवत करने लगे। परन्तु फिर और कभी न की।

26 परन्तु दो मनुष्य छावनी में रह गए थे, जिस में से एक का नाम एलदाद और दूसरे का मेदाद था, उन में भी आत्मा आई; ये भी उन्हीं में से थे जिनके नाम लिख लिये गए थे, पर तम्बू के पास न गए थे, और वे छावनी ही में नबूवत करने लगे।

27 तब किसी जवान ने दौड़ कर मूसा को बतलाया, कि एलदाद और मेदाद छावनी में नबूवत कर रहे हैं।

28 तब नून का पुत्र यहोशू, जो मूसा का टहलुआ और उसके चुने हुए वीरों में से था, उसने मूसा से कहा, हे मेरे स्वामी मूसा, उन को रोक दे।

29 मूसा ने उन से कहा, क्या तू मेरे कारण जलता है? भला होता कि यहोवा की सारी प्रजा के लोग नबी होते, और यहोवा अपना आत्मा उन सभों में समवा देता!

30 तब फिर मूसा इस्त्राएल के पुरनियों समेत छावनी में चला गया।

31 तब यहोवा की ओर से एक बड़ी आंधी आई, और वह समुद्र से बटेरें उड़ाके छावनी पर और उसके चारों ओर इतनी ले आईं, कि वे इधर उधर एक दिन के मार्ग तक भूमि पर दो हाथ के लगभग ऊंचे तक छा गए।

32 और लोगों ने उठ कर उस दिन भर और रात भर, और दूसरे दिन भी दिन भर बटेरों को बटोरते रहे; जिसने कम से कम बटोरा उसने दस होमेर बटोरा; और उन्होंने उन्हें छावनी के चारों ओर फैला दिया।

33 मांस उनके मुंह ही में था, और वे उसे खाने न पाए थे, कि यहोवा का कोप उन पर भड़क उठा, और उसने उन को बहुत बड़ी मार से मारा।

34 और उस स्थान का नाम किब्रोथत्तावा पड़ा, क्योंकि जिन लोगों ने कामुकता की थी उन को वहां मिट्टी दी गई।

35 फिर इस्त्राएली किब्रोथत्तावा से प्रस्थान करके हसेरोत में पहुंचे, और वहीं रहे॥

गिनती 12

1 मूसा ने तो एक कूशी स्त्री के साथ ब्याह कर लिया था। सो मरियम और हारून उसकी उस ब्याहिता कूशी स्त्री के कारण उसकी निन्दा करने लगे;

2 उन्होंने कहा, क्या यहोवा ने केवल मूसा ही के साथ बातें की हैं? क्या उसने हम से भी बातें नहीं कीं? उनकी यह बात यहोवा ने सुनी।

3 मूसा तो पृथ्वी भर के रहने वाले मनुष्यों से बहुत अधिक नम्र स्वभाव का था।

4 सो यहोवा ने एकाएक मूसा और हारून और मरियम से कहा, तुम तीनों मिलापवाले तम्बू के पास निकल आओ। तब वे तीनों निकल आए।

5 तब यहोवा ने बादल के खम्भे में उतरकर तम्बू के द्वार पर खड़ा हो कर हारून और मरियम को बुलाया; सो वे दोनों उसके पास निकल आए।

6 तब यहोवा ने कहा, मेरी बातें सुनो: यदि तुम में कोई नबी हो, तो उस पर मैं यहोवा दर्शन के द्वारा अपने आप को प्रगट करूंगा, वा स्वप्न में उससे बातें करूंगा।

7 परन्तु मेरा दास मूसा ऐसा नहीं है; वह तो मेरे सब घरानों में विश्वास योग्य है।

8 उससे मैं गुप्त रीति से नहीं, परन्तु आम्हने साम्हने और प्रत्यक्ष हो कर बातें करता हूं; और वह यहोवा का स्वरूप निहारने पाता है। सो तुम मेरे दास मूसा की निन्दा करते हुए क्यों नहीं डरे?

9 तब यहोवा का कोप उन पर भड़का, और वह चला गया;

10 तब वह बादल तम्बू के ऊपर से उठ गया, और मरियम कोढ़ से हिम के समान श्वेत हो गई। और हारून ने मरियम की ओर दृष्टि की, और देखा, कि वह कोढ़िन हो गई है।

11 तब हारून मूसा से कहने लगा, हे मेरे प्रभु, हम दोनों ने जो मूर्खता की वरन पाप भी किया, यह पाप हम पर न लगने दे।

12 और मरियम को उस मरे हुए के समान न रहने दे, जिसकी देह अपनी मां के पेट से निकलते ही अधगली हो।

13 सो मूसा ने यह कहकर यहोवा की दोहाई दी, हे ईश्वर, कृपा कर, और उसको चंगा कर।

14 यहोवा ने मूसा से कहा, यदि उसका पिता उसके मुंह पर थूका ही होता, तो क्या सात दिन तक वह लज्जित न रहती? सो वह सात दिन तक छावनी से बाहर बन्द रहे, उसके बाद वह फिर भीतर आने पाए।

15 सो मरियम सात दिन तक छावनी से बाहर बन्द रही, और जब तक मरियम फिर आने न पाई तब तक लोगों ने प्रस्थान न किया।

16 उसके बाद उन्होंने हसेरोत से प्रस्थान करके पारान नाम जंगल में अपने डेरे खड़े किए॥

गिनती 13:1-16

1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा,

2 कनान देश जिसे मैं इस्त्राएलियों को देता हूं उसका भेद लेने के लिये पुरूषों को भेज; वे उनके पितरों के प्रति गोत्र का एक प्रधान पुरूष हों।

3 यहोवा से यह आज्ञा पाकर मूसा ने ऐसे पुरूषों को पारान जंगल से भेज दिया, जो सब के सब इस्त्राएलियों के प्रधान थे।

4 उनके नाम ये हैं, अर्थात रूबेन के गोत्र में से जककूर का पुत्र शम्मू;

5 शिमोन के गोत्र में से होरी का पुत्र शापात;

6 यहूदा के गोत्र में से यपुन्ने का पुत्र कालेब;

7 इस्साकार के गोत्र में से योसेप का पुत्र यिगाल;

8 एप्रैम के गोत्र में से नून का पुत्र होशे;

9 बिन्यामीन के गोत्र में से रापू का पुत्र पलती;

10 जबूलून के गोत्र में से सोदी का पुत्र गद्दीएल;

11 यूसुफ वंशियों में, मनश्शे के गोत्र में से सूसी का पुत्र गद्दी;

12 दान के गोत्र में से गमल्ली का पुत्र अम्मीएल;

13 आशेर के गोत्र में से मीकाएल का पुत्र सतूर;

14 नप्ताली के गोत्र में से वोप्सी का पुत्र नहूबी;

15 गाद के गोत्र में से माकी का पुत्र गूएल।

16 जिन पुरूषों को मूसा ने देश का भेद लेने के लिये भेजा था उनके नाम ये ही हैं। और नून के पुत्र होशे का नाम उसने यहोशू रखा।