9
उन्होंने उससे पूछा, तेरी पत्नी सारा कहां है? उसने कहा, वह तो तम्बू में है।
10
उसने कहा मैं वसन्त ऋतु में निश्चय तेरे पास फिर आऊंगा; और तब तेरी पत्नी सारा के एक पुत्र उत्पन्न होगा। और सारा तम्बू के द्वार पर जो इब्राहीम के पीछे था सुन रही थी।
11
इब्राहीम और सारा दोनो बहुत बूढ़े थे; और सारा का स्त्रीधर्म बन्द हो गया था
12
सो सारा मन में हंस कर कहने लगी, मैं तो बूढ़ी हूं, और मेरा पति भी बूढ़ा है, तो क्या मुझे यह सुख होगा?
13
तब यहोवा ने इब्राहीम से कहा, सारा यह कहकर क्योंहंसी, कि क्या मेरे, जो ऐसी बुढिय़ा हो गई हूं, सचमुच एक पुत्र उत्पन्न होगा?
14
क्या यहोवा के लिये कोई काम कठिन है? नियत समय में, अर्थात वसन्त ऋतु में, मैं तेरे पास फिर आऊंगा, और सारा के पुत्र उत्पन्न होगा।
15
तब सारा डर के मारे यह कह कर मुकर गई, कि मैं नहीं हंसी। उसने कहा, नहीं; तू हंसी तो थी॥
16
फिर वे पुरूष वहां से चल कर, सदोम की ओर ताकने लगे: और इब्राहीम उन्हें विदा करने के लिये उनके संग संग चला।
17
तब यहोवा ने कहा, यह जो मैं करता हूं सो क्या इब्राहीम से छिपा रखूं?
18
इब्राहीम से तो निश्चय एक बड़ी और सामर्थी जाति उपजेगी, और पृथ्वी की सारी जातियां उसके द्वारा आशीष पाएंगी।
19
क्योंकि मैं जानता हूं, कि वह अपने पुत्रों और परिवार को जो उसके पीछे रह जाएंगे आज्ञा देगा कि वे यहोवा के मार्ग में अटल बने रहें, और धर्म और न्याय करते रहें, इसलिये कि जो कुछ यहोवा ने इब्राहीम के विषय में कहा है उसे पूरा करें।
20
फिर यहोवा ने कहा सदोम और अमोरा की चिल्लाहट बढ़ गई है, और उनका पाप बहुत भारी हो गया है;
21
इसलिये मैं उतरकर देखूंगा, कि उसकी जैसी चिल्लाहट मेरे कान तक पहुंची है, उन्होंने ठीक वैसा ही काम किया है कि नहीं: और न किया हो तो मैं उसे जान लूंगा।
22
सो वे पुरूष वहां से मुड़ के सदोम की ओर जाने लगे: पर इब्राहीम यहोवा के आगे खड़ा रह गया।
23
तब इब्राहीम उसके समीप जा कर कहने लगा, क्या सचमुच दुष्ट के संग धर्मी को भी नाश करेगा?
24
कदाचित उस नगर में पचास धर्मी हों: तो क्या तू सचमुच उस स्थान को नाश करेगा और उन पचास धर्मियों के कारण जो उस में हो न छोड़ेगा?
25
इस प्रकार का काम करना तुझ से दूर रहे कि दुष्ट के संग धर्मी को भी मार डाले और धर्मी और दुष्ट दोनों की एक ही दशा हो। यह तुझ से दूर रहे: क्या सारी पृथ्वी का न्यायी न्याय न करे?
26
यहोवा ने कहा यदि मुझे सदोम में पचास धर्मी मिलें, तो उनके कारण उस सारे स्थान को छोडूंगा।
27
फिर इब्राहीम ने कहा, हे प्रभु, सुन मैं तो मिट्टी और राख हूं; तौभी मैं ने इतनी ढिठाई की कि तुझ से बातें करूं।
28
कदाचित उन पचास धर्मियों में पांच घट जाए: तो क्या तू पांच ही के घटने के कारण उस सारे नगर का नाश करेगा? उसने कहा, यदि मुझे उस में पैंतालीस भी मिलें, तौभी उसका नाश न करूंगा।
29
फिर उसने उससे यह भी कहा, कदाचित वहां चालीस मिलें। उसने कहा, तो मैं चालीस के कारण भी ऐसा ने करूंगा।
30
फिर उसने कहा, हे प्रभु, क्रोध न कर, तो मैं कुछ और कहूं: कदाचित वहां तीस मिलें। उसने कहा यदि मुझे वहां तीस भी मिलें, तौभी ऐसा न करूंगा।
31
फिर उसने कहा, हे प्रभु, सुन, मैं ने इतनी ढिठाई तो की है कि तुझ से बातें करूं: कदाचित उस में बीस मिलें। उसने कहा, मैं बीस के कारण भी उसका नाश न करूंगा।
32
फिर उसने कहा, हे प्रभु, क्रोध न कर, मैं एक ही बार और कहूंगा: कदाचित उस में दस मिलें। उसने कहा, तो मैं दस के कारण भी उसका नाश न करूंगा।
33
जब यहोवा इब्राहीम से बातें कर चुका, तब चला गया: और इब्राहीम अपने घर को लौट गया॥