चरण 62

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व्यवस्थाविवरण 23:15-25

15 जो दास अपने स्वामी के पास से भागकर तेरी शरण ले उसको उसके स्वामी के हाथ न पकड़ा देना;

16 वह तेरे बीच जो नगर उसे अच्छा लगे उसी में तेरे संग रहने पाए; और तू उस पर अन्धेर न करना॥

17 इस्राएली स्त्रियों में से कोई देवदासी न हो, और न इस्राएलियों में से कोई पुरूष ऐसा बुरा काम करने वाला हो।

18 तू वेश्यापन की कमाई वा कुत्ते की कमाई किसी मन्नत को पूरी करने के लिये अपने परमेश्वर यहोवा के घर में न लाना; क्योंकि तेरे परमेश्वर यहोवा के समीप ये दोनों की दोनों कमाई घृणित कर्म है॥

19 अपने किसी भाई को ब्याज पर ऋण न देना, चाहे रूपया हो, चाहे भोजन-वस्तु हो, चाहे कोई वस्तु हो जो ब्याज पर दी जाति है, उसे ब्याज न देना।

20 तू परदेशी को ब्याज पर ऋण तो दे, परन्तु अपने किसी भाई से ऐसा न करना, ताकि जिस देश का अधिकारी होने को तू जा रहा है, वहां जिस जिस काम में अपना हाथ लगाए, उन सभों को तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे आशीष दे॥

21 जब तू अपने परमेश्वर यहोवा के लिये मन्नत माने, तो उसके पूरी करने में विलम्ब न करना; क्योंकि तेरा परमेश्वर यहोवा उसे निश्चय तुझ से ले लेगा, और विलम्ब करने से तू पापी ठहरेगा।

22 परन्तु यदि तू मन्नत न माने, तो तेरा कोई पाप नहीं।

23 जो कुछ तेरे मुंह से निकले उसके पूरा करने में चौकसी करना; तू अपने मुंह से वचन देकर अपनी इच्छा से अपने परमेश्वर यहोवा की जैसी मन्नत माने, वैसा ही स्वतंत्रता पूर्वक उसे पूरा करना।

24 जब तू किसी दूसरे की दाख की बारी में जाए, तब पेट भर मनमाने दाख खा तो खा, परन्तु अपने पात्र में कुछ न रखना।

25 और जब तू किसी दूसरे के खड़े खेत में जाए, तब तू हाथ से बालें तोड़ सकता है, परन्तु किसी दूसरे के खड़े खेत पर हंसुआ न लगाना॥

व्यवस्थाविवरण 24

1 यदि कोई पुरूष किसी स्त्री को ब्याह ले, और उसके बाद उसमें लज्जा की बात पाकर उस से अप्रसन्न हो, तो वह उसके लिये त्यागपत्र लिखकर और उसके हाथ में देकर उसको अपने घर से निकाल दे।

2 और जब वह उसके घर से निकल जाए, तब दूसरे पुरूष की हो सकती है।

3 परन्तु यदि वह उस दूसरे पुरूष को भी अप्रिय लगे, और वह उसके लिये त्यागपत्र लिखकर उसके हाथ में देकर उसे अपने घर से निकाल दे, वा वह दूसरा पुरूष जिसने उसको अपनी स्त्री कर लिया हो मर जाए,

4 तो उसका पहिला पति, जिसने उसको निकाल दिया हो, उसके अशुद्ध होने के बाद उसे अपनी पत्नी न बनाने पाए क्योंकि यह यहोवा के सम्मुख घृणित बात है। इस प्रकार तू उस देश को जिसे तेरा परमेश्वर यहोवा तेरा भाग करके तुझे देता है पापी न बनाना॥

5 जो पुरूष हाल का ब्याहा हुआ हो, वह सेना के साथ न जाए और न किसी काम का भार उस पर डाला जाए; वह वर्ष भर अपने घर में स्वतंत्रता से रहकर अपनी ब्याही हुई स्त्री को प्रसन्न करता रहे।

6 कोई मनुष्य चक्की को वा उसके ऊपर के पाट को बन्धक न रखे; क्योंकि वह तो मानों प्राण ही को बन्धक रखना है॥

7 यदि कोई अपने किसी इस्राएली भाई को दास बनाने वा बेच डालने की मनसा से चुराता हुआ पकड़ा जाए, तो ऐसा चोर मार डाला जाए; ऐसी बुराई को अपने मध्य में से दूर करना॥

8 कोढ़ की ब्याधि के विषय में चौकस रहना, और जो कुछ लेवीय याजक तुम्हें सिखाएं उसी के अनुसार यत्न से करने में चौकसी करना; जैसी आज्ञा मैं ने उन को दी है वैसा करने में चौकसी करना।

9 स्मरण रख कि तेरे परमेश्वर यहोवा ने, जब तुम मिस्र से निकलकर आ रहे थे, तब मार्ग में मरियम से क्या किया।

10 जब तू अपने किसी भाई को कुछ उधार दे, तब बन्धक की वस्तु लेने के लिये उसके घर के भीतर न घुसना।

11 तू बाहर खड़ा रहना, और जिस को तू उधार दे वही बन्धक की वस्तु को तेरे पास बाहर ले आए।

12 और यदि वह मनुष्य कंगाल हो, तो उसका बन्धक अपने पास रखे हुए न सोना;

13 सूर्य अस्त होते होते उसे वह बन्धक अवश्य फेर देना, इसलिये कि वह अपना ओढ़ना ओढ़कर सो सके और तुझे आशीर्वाद दे; और यह तेरे परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में धर्म का काम ठहरेगा॥

14 कोई मजदूर जो दीन और कंगाल हो, चाहे वह तेरे भाइयों में से हो चाहे तेरे देश के फाटकों के भीतर रहने वाले परदेशियों में से हो, उस पर अन्धेर न करना;

15 यह जानकर, कि वह दीन है और उसका मन मजदूरी में लगा रहता है, मजदूरी करने ही के दिन सूर्यास्त से पहिले तू उसकी मजदूरी देना; ऐसा न हो कि वह तेरे कारण यहोवा की दोहाई दे, और तू पापी ठहरे॥

16 पुत्र के कारण पिता न मार डाला जाए, और न पिता के कारण पुत्र मार डाला जाए; जिसने पाप किया हो वही उस पाप के कारण मार डाला जाए॥

17 किसी परदेशी मनुष्य वा अनाथ बालक का न्याय न बिगाड़ना, और न किसी विधवा के कपड़े को बन्धक रखना;

18 और इस को स्मरण रखना कि तू मिस्र में दास था, और तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे वहां से छुड़ा लाया है; इस कारण मैं तुझे यह आज्ञा देता हूं॥

19 जब तू अपने पक्के खेत को काटे, और एक पूला खेत में भूल से छूट जाए, तो उसे लेने को फिर न लौट जाना; वह परदेशी, अनाथ, और विधवा के लिये पड़ा रहे; इसलिये कि परमेश्वर यहोवा तेरे सब कामों में तुझ को आशीष दे।

20 जब तू अपने जलपाई के वृक्ष को झाड़े, तब डालियों को दूसरी बार न झाड़ना; वह परदेशी, अनाथ, और विधवा के लिये रह जाए।

21 जब तू अपनी दाख की बारी के फल तोड़े, तो उसका दाना दाना न तोड़ लेना; वह परदेशी, अनाथ और विधवा के लिये रह जाए।

22 और इस को स्मरण रखना कि तू मिस्र देश में दास था; इस कारण मैं तुझे यह आज्ञा देता हूं॥

व्यवस्थाविवरण 25

1 यदि मनुष्यों के बीच कोई झगड़ा हो, और वे न्याय करवाने के लिये न्यायियों के पास जाएं, और वे उनका न्याय करें, तो निर्दोष को निर्दोष और दोषी को दोषी ठहराएं।

2 और यदि दोषी मार खाने के योग्य ठहरे, तो न्यायी उसको गिरवाकर अपने साम्हने जैसा उसका दोष हो उसके अनुसार कोड़े गिन गिनकर लगवाए।

3 वह उसे चालीस कोड़े तक लगवा सकता है, इस से अधिक नहीं लगवा सकता; ऐसा न हो कि इस से अधिक बहुत मार खिलवाने से तेरा भाई तेरी दृष्टि में तुच्छ ठहरे॥

4 दांवते समय चलते हुए बैल का मुंह न बान्धना।

5 जब कोई भाई संग रहते हों, और उन में से एक निपुत्र मर जाए, तो उसकी स्त्री का ब्याह पर गोत्री से न किया जाए; उसके पति का भाई उसके पास जा कर उसे अपनी पत्नी कर ले, और उस से पति के भाई का धर्म पालन करे।

6 और जो पहिला बेटा उस स्त्री से उत्पन्न हो वह उस मरे हुए भाई के नाम का ठहरे, जिस से कि उसका नाम इस्राएल में से मिट न जाए।

7 यदि उस स्त्री के पति के भाई को उसे ब्याहना न भाए, तो वह स्त्री नगर के फाटक पर वृद्ध लोगों के पास जा कर कहे, कि मेरे पति के भाई ने अपने भाई का नाम इस्त्राएल में बनाए रखने से नकार दिया है, और मुझ से पति के भाई का धर्म पालन करना नहीं चाहता।

8 तब उस नगर के वृद्ध उस पुरूष को बुलवाकर उसे समझाएं; और यदि वह अपनी बात पर अड़ा रहे, और कहे, कि मुझे इस को ब्याहना नहीं भावता,

9 तो उसके भाई की पत्नी उन वृद्ध लोगों के साम्हने उसके पास जा कर उसके पांव से जूती उतारे, और उसके मूंह पर थूक दे; और कहे, जो पुरूष अपने भाई के वंश को चलाना न चाहे उस से इसी प्रकार व्यवहार किया जाएगा।

10 तब इस्राएल में उस पुरूष का यह नाम पड़ेगा, अर्थात जूती उतारे हुए पुरूष का घराना॥

11 यदि दो पुरूष आपस में मारपीट करते हों, और उन में से एक की पत्नी अपने पति को मारने वाले के हाथ से छुड़ाने के लिये पास जाए, और अपना हाथ बढ़ाकर उसके गुप्त अंग को पकड़े,

12 तो उस स्त्री का हाथ काट डालना; उस पर तरस न खाना॥

13 अपनी थैली में भांति भांति के अर्थात घटती-बढ़ती बटखरे न रखना।

14 अपने घर में भांति भांति के, अर्थात घटती-बढ़ती नपुए न रखना।

15 तेरे बटखरे और नपुए पूरे पूरे और धर्म के हों; इसलिये कि जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है उस में तेरी आयु बहुत हो।

16 क्योंकि ऐसे कामों में जितने कुटिलता करते हैं वे सब तेरे परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में घृणित हैं॥

17 स्मरण रख कि जब तू मिस्र से निकलकर आ रहा था तब अमालेक ने तुझ से मार्ग में क्या किया,

18 अर्थात उन को परमेश्वर का भय न था; इस कारण उसने जब तू मार्ग में थका मांदा था, तब तुझ पर चढ़ाई करके जितने निर्बल होने के कारण सब से पीछे थे उन सभों को मारा।

19 इसलिये जब तेरा परमेश्वर यहोवा उस देश में, जो वह तेरा भाग करके तेरे अधिकार में कर देता है, तुझे चारों ओर के सब शत्रुओं से विश्राम दे, तब अमालेक का नाम धरती पर से मिटा डालना; और तुम इस बात को न भूलना॥

व्यवस्थाविवरण 26

1 फिर जब तू उस देश में जिसे तेरा परमेश्वर यहोवा तेरा निज भाग करके तुझे देता है पहुंचे, और उसका अधिकारी हो कर उन में बस जाए,

2 तब जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है, उसकी भूमि की भांति भांति की जो पहिली उपज तू अपने घर लाएगा, उस में से कुछ टोकरी में ले कर उस स्थान पर जाना, जिसे तेरा परमेश्वर यहोवा अपने नाम का निवास करने को चुन ले।

3 और उन दिनों के याजक के पास जा कर यह कहना, कि मैं आज तेरे परमेश्वर यहोवा के साम्हने निवेदन करता हूं, कि यहोवा ने हम लोगों को जिस देश के देने की हमारे पूर्वजों से शपथ खाई थी उस में मैं आ गया हूं।

4 तब याजक तेरे हाथ से वह टोकरी ले कर तेरे परमेश्वर यहोवा की वेदी के साम्हने धर दे।

5 तब तू अपने परमेश्वर यहोवा से इस प्रकार कहना, कि मेरा मूलपुरूष एक अरामी मनुष्य था जो मरने पर था; और वह अपने छोटे से परिवार समेत मिस्र को गया, और वहां परदेशी हो कर रहा; और वहाँ उस से एक बड़ी, और सामर्थी, और बहुत मनुष्यों से भरी हुई जाति उत्पन्न हुई।

6 और मिस्रियों ने हम लोगों से बुरा बर्ताव किया, और हमें दु:ख दिया, और हम से कठिन सेवा लीं।

7 परन्तु हम ने अपने पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा की दोहाई दी, और यहोवा ने हमारी सुनकर हमारे दुख-श्रम और अन्धेर पर दृष्टि की;

8 और यहोवा ने बलवन्त हाथ और बढ़ाई हुई भुजा से अति भयानक चिन्ह और चमत्कार दिखलाकर हम को मिस्र से निकाल लाया;

9 और हमें इस स्थान पर पहुंचाकर यह देश जिस में दूध और मधु की धाराएं बहती हैं हमें दे दिया है।

10 अब हे यहोवा, देख, जो भूमि तू ने मुझे दी है उसकी पहली उपज मैं तेरे पास ले आया हूं।

11 तब तू उसे अपने परमेश्वर यहोवा के साम्हने रखना; और यहोवा को दण्डवत करना;

12 और जितने अच्छे पदार्थ तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे और तेरे घराने को दे, उनके कारण तू लेवीयों और अपने मध्य में रहने वाले परदेशियों सहित आनन्द करना॥

13 और तू अपने परमेश्वर यहोवा से कहना, कि मैं ने तेरी सब आज्ञाओं के अनुसार पवित्र ठहराई हुई वस्तुओं को अपने घर से निकाला, और लेवीय, परदेशी, अनाथ, और विधवा को दे दिया है; तेरी किसी आज्ञा को मैं ने न तो टाला है, और न भूला है।

14 उन वस्तुओं में से मैं ने शोक के समय नहीं खाया, और न उन में से कोई वस्तु अशुद्धता की दशा में घर से निकाली, और न कुछ शोक करने वालों को दिया; मैं ने अपने परमेश्वर यहोवा की सुन ली, मैं ने तेरी सब आज्ञाओं के अनुसार किया है।

15 तू स्वर्ग में से जो तेरा पवित्र धाम है दृष्टि करके अपनी प्रजा इस्राएल को आशीष दे, और इस दूध और मधु की धाराओं के देश की भूमि पर आशीष दे, जिसे तू ने हमारे पूर्वजों से खाई हुई शपथ के अनुसार हमें दिया है।

16 आज के दिन तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ को इन्हीं विधियों और नियमों के मानने की आज्ञा देता है; इसलिये अपने सारे मन और सारे प्राण से इनके मानने में चौकसी करना।

17 तू ने तो आज यहोवा को अपना परमेश्वर मानकर यह वचन दिया है, कि मैं तेरे बनाए हुए मार्गों पर चलूंगा, और तेरी विधियों, आज्ञाओं, और नियमों को माना करूंगा, और तेरी सुना करूंगा।

18 और यहोवा ने भी आज तुझ को अपने वचन के अनुसार अपना प्रजारूपी निज धन सम्पत्ति माना है, कि तू उसकी सब आज्ञाओं को माना करे,

19 और कि वह अपनी बनाईं हुई सब जातियों से अधिक प्रशंसा, नाम, और शोभा के विषय में तुझ को प्रतिष्ठित करे, और तू उसके वचन के अनुसार अपने परमेश्वर यहोवा की पवित्र प्रजा बना रहे।

व्यवस्थाविवरण 27:1-10

1 फिर इस्राएल के वृद्ध लोगों समेत मूसा ने प्रजा के लोगों को यह आज्ञा दी, कि जितनी आज्ञाएं मैं आज तुम्हें सुनाता हूं उन सब को मानना।

2 और जब तुम यरदन पार होके उस देश में पहुंचो, जो तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है, तब बड़े बड़े पत्थर खड़े कर लेना, और उन पर चूना पोतना;

3 और पार होने के बाद उन पर इस व्यवस्था के सारे वचनों को लिखना, इसलिये कि जो देश तेरे पूर्वजों का परमेश्वर यहोवा अपने वचन के अनुसार तुझे देता है, और जिस में दूध और मधु की धाराएं बहती हैं, उस देश में तू जाने पाए।

4 फिर जिन पत्थरों के विषय में मैं ने आज आज्ञा दी है, उन्हें तुम यरदन के पार हो कर एबाल पहाड़ पर खड़ा करना, और उन पर चूना पोतना।

5 और वहीं अपने परमेश्वर यहोवा के लिये पत्थरों की एक वेदी बनाना, उन पर कोई औजार न चलाना।

6 अपने परमेश्वर यहोवा की वेदी अनगढ़े पत्थरों की बनाकर उन पर उसके लिये होमबलि चढ़ाना;

7 और वहीं मेलबलि भी चढ़ाकर भोजन करना, और अपने परमेश्वर यहोवा के सम्मुख आनन्द करना।

8 और उन पत्थरों पर इस व्यवस्था के सब वचनों को शुद्ध रीति से लिख देना॥

9 फिर मूसा और लेवीय याजकों ने सब इस्राएलियों से यह भी कहा, कि हे इस्राएल, चुप रहकर सुन; आज के दिन तू अपने परमेश्वर यहोवा की प्रजा हो गया है।

10 इसलिये अपने परमेश्वर यहोवा की बात मानना, और उसकी जो जो आज्ञा और विधि मैं आज तुझे सुनाता हूं उनका पालन करना।