चरण 127: Everything of this world springs from and has permanent existence from the spiritual world

     

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स्वर्ग और नरक #89

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द्वारा इमानुएल स्वीडनबोर्ग

89. पहिले तो यह बयान किया जाता है कि प्रतिरूपता कौन सी वस्तु है। सारा प्राकृतिक जगत आत्मीय जगत से न कि केवल उस की समष्टि के विषय में बल्कि उस के प्रत्येक भाग के विषय में भी प्रतिरूपता रखता है। और दूस लिये जो कुछ कि आत्मीय जगत की ओर से प्राकृतिक जगत में विद्यमान है उस का कोई प्रतिरूप है कि जिस से उस का होना है। क्योंकि प्राकृतिक जगत आत्मीय जगत के द्वारा होता है और बना रहता है। जैसा कि कोई कार्य उस के कारक के द्वारा होता है। जो कुछ सूर्य के नीचे है और उस की गरमी और ज्योति पाता है प्राक्कृतिक जगत बोलते हैं। और प्राकृतिक जगत की वस्तुएं वे वस्तुएं हैं जो उस गति में रहती हैं। पर आत्मीय जगत स्वर्ग है और स्वर्ग की सब वस्तुएं उस जगत की वस्तुएं हैं ।