Passo 14: Step 14

Estude

     

उत्पत्ति 40:9-23

9 तब पिलानेहारों का प्रधान अपना स्वपन यूसुफ को यों बताने लगा: किमैंने स्वपन में देखा, कि मेरे सामने दाखलता है;

10 और उस दाखलता में तीन डालियां हैं: और उसमें मानो कलियां लगी हैं, और वे फूलीं और उसके गुच्छों में दाक लगकर पक गई:

11 और फिरौन का कटोरा मेरे हाथ में था : सो मैंने उन दाखों को लेकर फिरौन के कटोरे में निचोड़ा, और कटोरे को फिरौन के हाथ में दिया।

12 यूसुफ ने उस से कहा, इसका फल यह है; कि तीन डालियों का अर्थ तीन दिन है :

13 सो अब से तीन दिन के भीतर तेरा सर ऊँचा करेगा, और फिर से तेरे पद पर तुझे नियुक्त करेगा, और तू पहले की नाईं फिरौन का पिलानेहारा होकर उसका कटोरा उसके हाथ में फिर दिया करेगा

14 सो जब तेरा भला हो जाए तब मुझे स्मरण करना, और मुझ पर कृपा करके फिरौन से मेरी चर्चा चलाना, अर इस घर से मुझे छुड़वा देना।

15 क्योंकि सचमुच इब्रानियों के देश से मुझे चुरा कर ले आए हैं, और यहां भी मैंने कोई ऐसा काम नहीं किया, जिसके कारण मैं इस कारागार में डाला जाऊं।

16 यह देखकर, कि उसके स्वपन का फल अच्छा निकला, पकानेहारों के प्रधान ने यूसुफ से कहा, मैंने भी स्वपन देखा है, वह यह है : मैंने देखा, कि मेरे सिर पर सफेद रोटी की तीन टोकरियां हैं :

17 और ऊपर की टोकरी में फिरौन के लिए सब प्रकार की पकी पकाई वस्तुएं हैं; और पक्षी मेरे सिर पर की टोकरी में से उन वस्तुओं को खा रहे हैं।

18 यूसुफ ने कहा, इसका फल यह है; तीन टोकरियों का अर्थ तीन दिन है।

19 सो अब से तीन दिन के भीतर फिरौन तेरा सिर कटवाकर तुझे एक वृक्ष पर टंगवा देगा, और पक्षी तेरे मांस को नोच नोच कर खाएंगे।

20 और तीसरे दिन फिरौन का जन्मदिन था, उसने अपने सब कर्मचारियों की जेवनार की, और उसने पिलानेहारों के प्रधान, और पकानेहारों के प्रधान दोनों को बन्दीगृह से निकलवाया।

21 और पिलानेहारों के प्रधान को तो पिलानेहारे के पद पर फिर से नियुक्त किया, और वह फिरौन के हाथ में कटोरा देने लगा।

22 पर पकानेहारों के प्रधान को उस ने टंगवा दिया, जैसा कि यूसुफ ने उनके स्वपनों का फल उअन्से कहा था।

23 फिर भी पिलानेहारों के प्रधान ने यूसुफ को स्मरण ना रखा; परन्तु उसे भूल गया ॥

उत्पत्ति 41

1 पूरे दो बरस के बीतने पर फिरौन ने यह स्वप्न देखा, कि वह नील नदी के किनारे पर खड़ा है।

2 और उस नदी में से सात सुन्दर और मोटी मोटी गायें निकल कर कछार की घास चरने लगीं।

3 और, क्या देखा, कि उनके पीछे और सात गायें, जो कुरूप और दुर्बल हैं, नदी से निकली; और दूसरी गायों के निकट नदी के तट पर जा खड़ी हुई।

4 तब ये कुरूप और दुर्बल गायें उन सात सुन्दर और मोटी मोटी गायों को खा गईं। तब फिरौन जाग उठा।

5 और वह फिर सो गया और दूसरा स्वप्न देखा, कि एक डंठी में से सात मोटी और अच्छी अच्छी बालें निकलीं।

6 और, क्या देखा, कि उनके पीछे सात बालें पतली और पुरवाई से मुरझाई हुई निकलीं।

7 और इन पतली बालों ने उन सातों मोटी और अन्न से भरी हुई बालों को निगल लिया। तब फिरौन जागा, और उसे मालूम हुआ कि यह स्वप्न ही था।

8 भोर को फिरौन का मन व्याकुल हुआ; और उसने मिस्र के सब ज्योतिषियों, और पण्डितों को बुलवा भेजा; और उन को अपने स्वप्न बताएं; पर उन में से कोई भी उनका फल फिरौन से न कह सहा।

9 तब पिलानेहारों का प्रधान फिरौन से बोल उठा, कि मेरे अपराध आज मुझे स्मरण आए:

10 जब फिरौन अपने दासों से क्रोधित हुआ था, और मुझे और पकानेहारों के प्रधान को कैद करा के जल्लादों के प्रधान के घर के बन्दीगृह में डाल दिया था;

11 तब हम दोनों ने, एक ही रात में, अपने अपने होनहार के अनुसार स्वप्न देखा;

12 और वहां हमारे साथ एक इब्री जवान था, जो जल्लादों के प्रधान का दास था; सो हम ने उसको बताया, और उसने हमारे स्वप्नों का फल हम से कहा, हम में से एक एक के स्वप्न का फल उसने बता दिया।

13 और जैसा जैसा फल उसने हम से कहा था, वैसा ही हुआ भी, अर्थात मुझ को तो मेरा पद फिर मिला, पर वह फांसी पर लटकाया गया।

14 तब फिरौन ने यूसुफ को बुलवा भेजा। और वह झटपट बन्दीगृह से बाहर निकाला गया, और बाल बनवाकर, और वस्त्र बदलकर फिरौन के साम्हने आया।

15 फिरौन ने यूसुफ से कहा, मैं ने एक स्वप्न देखा है, और उसके फल का बताने वाला कोई भी नहीं; और मैं ने तेरे विषय में सुना है, कि तू स्वप्न सुनते ही उसका फल बता सकता है।

16 यूसुफ ने फिरौन से कहा, मैं तो कुछ नहीं जानता: परमेश्वर ही फिरौन के लिये शुभ वचन देगा।

17 फिर फिरौन यूसुफ से कहने लगा, मैं ने अपने स्वप्न में देखा, कि मैं नील नदी के किनारे पर खड़ा हूं

18 फिर, क्या देखा, कि नदी में से सात मोटी और सुन्दर सुन्दर गायें निकल कर कछार की घास चरने लगी।

19 फिर, क्या देखा, कि उनके पीछे सात और गायें निकली, जो दुबली, और बहुत कुरूप, और दुर्बल हैं; मैं ने तो सारे मिस्र देश में ऐसी कुडौल गायें कभी नहीं देखीं।

20 और इन दुर्बल और कुडौल गायों ने उन पहली सातों मोटी मोटी गायों को खा लिया।

21 और जब वे उन को खा गई तब यह मालूम नहीं होता था कि वे उन को खा गई हैं, क्योंकि वे पहिले की नाईं जैसी की तैसी कुडौल रहीं। तब मैं जाग उठा।

22 फिर मैं ने दूसरा स्वप्न देखा, कि एक ही डंठी में सात अच्छी अच्छी और अन्न से भरी हुई बालें निकलीं।

23 फिर, क्या देखता हूं, कि उनके पीछे और सात बालें छूछी छूछी और पतली और पुरवाई से मुरझाई हुई निकलीं।

24 और इन पतली बालोंने उन सात अच्छी अच्छी बालों को निगल लिया। इसे मैं ने ज्योतिषियों को बताया, पर इस का समझानेहारा कोई नहीं मिला।

25 तब यूसुफ ने फिरौन से कहा, फिरौन का स्वप्न एक ही है, परमेश्वर जो काम किया चाहता है, उसको उसने फिरौन को जताया है।

26 वे सात अच्छी अच्छी गायें सात वर्ष हैं; और वे सात अच्छी अच्छी बालें भी सात वर्ष हैं; स्वप्न एक ही है।

27 फिर उनके पीछे जो दुर्बल और कुडौल गायें निकलीं, और जो सात छूछी और पुरवाई से मुरझाई हुई बालें निकाली, वे अकाल के सात वर्ष होंगे।

28 यह वही बात है, जो मैं फिरौन से कह चुका हूं, कि परमेश्वर जो काम किया चाहता है, उसे उसने फिरौन को दिखाया है।

29 सुन, सारे मिस्र देश में सात वर्ष तो बहुतायत की उपज के होंगे।

30 उनके पश्चात सात वर्ष अकाल के आयेंगे, और सारे मिस्र देश में लोग इस सारी उपज को भूल जायेंगे; और अकाल से देश का नाश होगा।

31 और सुकाल (बहुतायत की उपज) देश में फिर स्मरण न रहेगा क्योंकि अकाल अत्यन्त भयंकर होगा।

32 और फिरौन ने जो यह स्वप्न दो बार देखा है इसका भेद यही है, कि यह बात परमेश्वर की ओर से नियुक्त हो चुकी है, और परमेश्वर इसे शीघ्र ही पूरा करेगा।

33 इसलिये अब फिरौन किसी समझदार और बुद्धिमान् पुरूष को ढूंढ़ करके उसे मिस्र देश पर प्रधानमंत्री ठहराए।

34 फिरौन यह करे, कि देश पर अधिकारियों को नियुक्त करे, और जब तक सुकाल के सात वर्ष रहें तब तक वह मिस्र देश की उपज का पंचमांश लिया करे।

35 और वे इन अच्छे वर्षों में सब प्रकार की भोजन वस्तु इकट्ठा करें, और नगर नगर में भण्डार घर भोजन के लिये फिरौन के वश में करके उसकी रक्षा करें।

36 और वह भोजनवस्तु अकाल के उन सात वर्षों के लिये, जो मिस्र देश में आएंगे, देश के भोजन के निमित्त रखी रहे, जिस से देश उस अकाल से स्त्यानाश न हो जाए।

37 यह बात फिरौन और उसके सारे कर्मचारियों को अच्छी लगी।

38 सो फिरौन ने अपने कर्मचारियोंसे कहा, कि क्या हम को ऐसा पुरूष जैसा यह है, जिस में परमेश्वर का आत्मा रहता है, मिल सकता है?

39 फिर फिरौन ने यूसुफ से कहा, परमेश्वर ने जो तुझे इतना ज्ञान दिया है, कि तेरे तुल्य कोई समझदार और बुद्धिमान् नहीं;

40 इस कारण तू मेरे घर का अधिकारी होगा, और तेरी आज्ञा के अनुसार मेरी सारी प्रजा चलेगी, केवल राजगद्दी के विषय मैं तुझ से बड़ा ठहरूंगा।

41 फिर फिरौन ने यूसुफ से कहा, सुन, मैं तुझ को मिस्र के सारे देश के ऊपर अधिकारी ठहरा देता हूं

42 तब फिरौन ने अपने हाथ से अंगूठी निकाल के यूसुफ के हाथ में पहिना दी; और उसको बढिय़ा मलमल के वस्त्र पहिनवा दिए, और उसके गले में सोने की जंजीर डाल दी;

43 और उसको अपने दूसरे रथ पर चढ़वाया; और लोग उसके आगे आगे यह प्रचार करते चले, कि घुटने टेककर दण्डवत करो और उसने उसको मिस्र के सारे देश के ऊपर प्रधान मंत्री ठहराया।

44 फिर फिरौन ने यूसुफ से कहा, फिरौन तो मैं हूं, और सारे मिस्र देश में कोई भी तेरी आज्ञा के बिना हाथ पांव न हिलाएगा।

45 और फिरौन ने यूसुफ का नाम सापन त्पानेह रखा। और ओन नगर के याजक पोतीपेरा की बेटी आसनत से उसका ब्याह करा दिया। और यूसुफ मिस्र के सारे देश में दौरा करने लगा।

46 जब यूसुफ मिस्र के राजा फिरौन के सम्मुख खड़ा हुआ, तब वह तीस वर्ष का था। सो वह फिरौन के सम्मुख से निकलकर मिस्र के सारे देश में दौरा करने लगा।

47 सुकाल के सातों वर्षोंमें भूमि बहुतायत से अन्न उपजाती रही।

48 और यूसुफ उन सातों वर्षों में सब प्रकार की भोजनवस्तुएं, जो मिस्र देश में होती थीं, जमा करके नगरों में रखता गया, और हर एक नगर के चारों ओर के खेतों की भोजनवस्तुओं को वह उसी नगर में इकट्ठा करता गया।

49 सो यूसुफ ने अन्न को समुद्र की बालू के समान अत्यन्त बहुतायत से राशि राशि करके रखा, यहां तक कि उसने उनका गिनना छोड़ दिया; क्योंकि वे असंख्य हो गईं।

50 अकाल के प्रथम वर्ष के आने से पहिले यूसुफ के दो पुत्र, ओन के याजक पोतीपेरा की बेटी आसनत से जन्मे।

51 और यूसुफ ने अपने जेठे का नाम यह कहके मनश्शे रखा, कि परमेश्वर ने मुझ से सारा क्लेश, और मेरे पिता का सारा घराना भुला दिया है।

52 और दूसरे का नाम उसने यह कहकर एप्रैम रखा, कि मुझे दु:ख भोगने के देश में परमेश्वर ने फुलाया फलाया है।

53 और मिस्र देश के सुकाल के वे सात वर्ष समाप्त हो गए।

54 और यूसुफ के कहने के अनुसार सात वर्षों के लिये अकाल आरम्भ हो गया। और सब देशों में अकाल पड़ने लगा; परन्तु सारे मिस्र देश में अन्न था।

55 जब मिस्र का सारा देश भूखों मरने लगा; तब प्रजा फिरोन से चिल्ला चिल्लाकर रोटी मांगने लगी: और वह सब मिस्रियों से कहा करता था, यूसुफ के पास जाओ: और जो कुछ वह तुम से कहे, वही करो।

56 सो जब अकाल सारी पृथ्वी पर फैल गया, और मिस्र देश में काल का भयंकर रूप हो गया, तब यूसुफ सब भण्डारों को खोल खोल के मिस्रियों के हाथ अन्न बेचने लगा।

57 सो सारी पृथ्वी के लोग मिस्र में अन्न मोल लेने के लिये यूसुफ के पास आने लगे, क्योंकि सारी पृथ्वी पर भयंकर अकाल था।

उत्पत्ति 42:1-28

1 जब याकूब ने सुना कि मिस्र में अन्न है, तब उसने अपने पुत्रों से कहा, तुम एक दूसरे का मुंह क्यों देख रहे हो।

2 फिर उसने कहा, मैं ने सुना है कि मिस्र में अन्न है; इसलिये तुम लोग वहां जा कर हमारे लिये अन्न मोल ले आओ, जिस से हम न मरें, वरन जीवित रहें।

3 सो यूसुफ के दस भाई अन्न मोल लेने के लिये मिस्र को गए।

4 पर यूसुफ के भाई बिन्यामीन को याकूब ने यह सोचकर भाइयों के साथ न भेजा, कि कहीं ऐसा न हो कि उस पर कोई विपत्ति आ पड़े।

5 सो जो लोग अन्न मोल लेने आए उनके साथ इस्राएल के पुत्र भी आए; क्योंकि कनान देश में भी भारी अकाल था।

6 यूसुफ तो मिस्र देश का अधिकारी था, और उस देश के सब लोगों के हाथ वही अन्न बेचता था; इसलिये जब यूसुफ के भाई आए तब भूमि पर मुंह के बल गिर के दण्डवत किया।

7 उन को देखकर यूसुफ ने पहिचान तो लिया, परन्तु उनके साम्हने भोला बनके कठोरता के साथ उन से पूछा, तुम कहां से आते हो? उन्होंने कहा, हम तो कनान देश से अन्न मोल लेने के लिये आए हैं।

8 यूसुफ ने तो अपने भाइयों को पहिचान लिया, परन्तु उन्होंने उसको न पहिचाना।

9 तब यूसुफ अपने उन स्वप्नों को स्मरण करके जो उसने उनके विषय में देखे थे, उन से कहने लगा, तुम भेदिए हो; इस देश की दुर्दशा को देखने के लिये आए हो।

10 उन्होंने उससे कहा, नहीं, नहीं, हे प्रभु, तेरे दास भोजनवस्तु मोल लेने के लिये आए हैं।

11 हम सब एक ही पिता के पुत्र हैं, हम सीधे मनुष्य हैं, तेरे दास भेदिए नहीं।

12 उसने उन से कहा, नहीं नहीं, तुम इस देश की दुर्दशा देखने ही को आए हो।

13 उन्होंने कहा, हम तेरे दास बारह भाई हैं, और कनान देशवासी एक ही पुरूष के पुत्र हैं, और छोटा इस समय हमारे पिता के पास है, और एक जाता रहा।

14 तब यूसुफ ने उन से कहा, मैं ने तो तुम से कह दिया, कि तुम भेदिए हो;

15 सो इसी रीति से तुम परखे जाओगे, फिरौन के जीवन की शपथ, जब तक तुम्हारा छोटा भाई यहां न आए तब तक तुम यहां से न निकलने पाओगे।

16 सो अपने में से एक को भेज दो, कि वह तुम्हारे भाई को ले आए, और तुम लोग बन्धुवाई में रहोगे; इस प्रकार तुम्हारी बातें परखी जाएंगी, कि तुम में सच्चाई है कि नहीं। यदि सच्चे न ठहरे तब तो फिरौन के जीवन की शपथ तुम निश्चय ही भेदिए समझे जाओगे।

17 तब उसने उन को तीन दिन तक बन्दीगृह में रखा।

18 तीसरे दिन यूसुफ ने उन से कहा, एक काम करो तब जीवित रहोगे; क्योंकि मैं परमेश्वर का भय मानता हूं;

19 यदि तुम सीधे मनुष्य हो, तो तुम सब भाइयों में से एक जन इस बन्दीगृह में बन्धुआ रहे; और तुम अपने घर वालों की भूख बुझाने के लिये अन्न ले जाओ।

20 और अपने छोटे भाई को मेरे पास ले आओ; इस प्रकार तुम्हारी बातें सच्ची ठहरेंगी, और तुम मार डाले न जाओगे। तब उन्होंने वैसा ही किया।

21 उन्होंने आपस में कहा, नि:स्न्देह हम अपने भाई के विषय में दोषी हैं, क्योंकि जब उसने हम से गिड़गिड़ा के बिनती की, तौभी हम ने यह देखकर, कि उसका जीवन कैसे संकट में पड़ा है, उसकी न सुनी; इसी कारण हम भी अब इस संकट में पड़े हैं।

22 रूबेन ने उन से कहा, क्या मैं ने तुम से न कहा था, कि लड़के के अपराधी मत बनो? परन्तु तुम ने न सुना: देखो, अब उसके लोहू का पलटा दिया जाता है।

23 यूसुफ की और उनकी बातचीत जो एक दुभाषिया के द्वारा होती थी; इस से उन को मालूम न हुआ कि वह उनकी बोली समझता है।

24 तब वह उनके पास से हटकर रोने लगा; फिर उनके पास लौटकर और उन से बातचीत करके उन में से शिमोन को छांट निकाला और उसके साम्हने बन्धुआ रखा।

25 तब यूसुफ ने आज्ञा दी, कि उनके बोरे अन्न से भरो और एक एक जन के बोरे में उसके रूपये को भी रख दो, फिर उन को मार्ग के लिये सीधा दो: सो उनके साथ ऐसा ही किया गया।

26 तब वे अपना अन्न अपने गदहों पर लादकर वहां से चल दिए।

27 सराय में जब एक ने अपने गदहे को चारा देने के लिये अपना बोरा खोला, तब उसका रूपया बोरे के मोहड़े पर रखा हुआ दिखलाई पड़ा।

28 तब उसने अपने भाइयों से कहा, मेरा रूपया तो फेर दिया गया है, देखो, वह मेरे बोरे में है; तब उनके जी में जी न रहा, और वे एक दूसरे की और भय से ताकने लगे, और बोले, परमेश्वर ने यह हम से क्या किया है?