Passo 7: Jacob

Estude

     

उत्पत्ति 31

1 फिर लाबान के पुत्रों की ये बातें याकूब के सुनने में आई, कि याकूब ने हमारे पिता का सब कुछ छीन लिया है, और हमारे पिता के धन के कारण उसकी यह प्रतिष्ठा है।

2 और याकूब ने लाबान के मुखड़े पर दृष्टि की और ताड़ लिया, कि वह उसके प्रति पहले के समान नहीं है।

3 तब यहोवा ने याकूब से कहा, अपने पितरों के देश और अपनी जन्मभूमि को लौट जा, और मैं तेरे संग रहूंगा।

4 तब याकूब ने राहेल और लिआ: को, मैदान में अपनी भेड़-बकरियों के पास, बुलवा कर कहा,

5 तुम्हारे पिता के मुखड़े से मुझे समझ पड़ता है, कि वह तो मुझे पहिले की नाईं अब नहीं देखता; पर मेरे पिता का परमेश्वर मेरे संग है।

6 और तुम भी जानती हो, कि मैं ने तुम्हारे पिता की सेवा शक्ति भर की है।

7 और तुम्हारे पिता ने मुझ से छल करके मेरी मजदूरी को दस बार बदल दिया; परन्तु परमेश्वर ने उसको मेरी हानि करने नहीं दिया।

8 जब उसने कहा, कि चित्तीवाले बच्चे तेरी मजदूरी ठहरेंगे, तब सब भेड़-बकरियां चित्तीवाले ही जनने लगीं, और जब उसने कहा, कि धारीवाले बच्चे तेरी मजदूरी ठहरेंगे, तब सब भेड़-बकरियां धारीवाले जनने लगीं।

9 इस रीति से परमेश्वर ने तुम्हारे पिता के पशु ले कर मुझ को दे दिए।

10 भेड़-बकरियोंके गाभिन होने के समय मैं ने स्वप्न में क्या देखा, कि जो बकरे बकरियों पर चढ़ रहे हैं, सो धारीवाले, चित्तीवाले, और धब्बेवाले है।

11 और परमेश्वर के दूत ने स्वप्न में मुझ से कहा, हे याकूब: मैं ने कहा, क्या आज्ञा।

12 उसने कहा, आंखे उठा कर उन सब बकरों को, जो बकरियों पर चढ़ रहे हैं, देख, कि वे धारीवाले, चित्तीवाले, और धब्बेवाले हैं; क्योंकि जो कुछ लाबान तुझ से करता है, सो मैं ने देखा है।

13 मैं उस बेतेल का ईश्वर हूं, जहां तू ने एक खम्भे पर तेल डाल दिया, और मेरी मन्नत मानी थी: अब चल, इस देश से निकल कर अपनी जन्मभूमि को लौट जा।

14 तब राहेल और लिआ: ने उससे कहा, क्या हमारे पिता के घर में अब भी हमारा कुछ भाग वा अंश बचा है?

15 क्या हम उसकी दृष्टि में पराये न ठहरीं? देख, उसने हम को तो बेच डाला, और हमारे रूपे को खा बैठा है।

16 सो परमेश्वर ने हमारे पिता का जितना धन ले लिया है, सो हमारा, और हमारे लड़केबालों का है: अब जो कुछ परमेश्वर ने तुझ से कहा सो कर।

17 तब याकूब ने अपने लड़के बालों और स्त्रियों को ऊंटों पर चढ़ाया;

18 और जितने पशुओं को वह पद्दनराम में इकट्ठा करके धनाढय हो गया था, सब को कनान में अपने पिता इसहाक के पास जाने की मनसा से, साथ ले गया।

19 लाबान तो अपनी भेड़ों का ऊन कतरने के लिये चला गया था। और राहेल अपने पिता के गृहदेवताओं को चुरा ले गई।

20 सो याकूब लाबान अरामी के पास से चोरी से चला गया, उसको न बताया कि मैं भागा जाता हूं।

21 वह अपना सब कुछ ले कर भागा: और महानद के पार उतर कर अपना मुंह गिलाद के पहाड़ी देश की ओर किया॥

22 तीसरे दिन लाबान को समाचार मिला, कि याकूब भाग गया है।

23 सो उसने अपने भाइयों को साथ ले कर उसका सात दिन तक पीछा किया, और गिलाद के पहाड़ी देश में उसको जा पकड़ा।

24 तब परमेश्वर ने रात के स्वप्न में आरामी लाबान के पास आकर कहा, सावधान रह, तू याकूब से न तो भला कहना और न बुरा।

25 और लाबान याकूब के पास पहुंच गया, याकूब तो अपना तम्बू गिलाद नाम पहाड़ी देश में खड़ा किए पड़ा था: और लाबान ने भी अपने भाइयों के साथ अपना तम्बू उसी पहाड़ी देश में खड़ा किया।

26 तब लाबान याकूब से कहने लगा, तू ने यह क्या किया, कि मेरे पास से चोरी से चला आया, और मेरी बेटियों को ऐसा ले आया, जैसा कोई तलवार के बल से बन्दी बनाए गए?

27 तू क्यों चुपके से भाग आया, और मुझ से बिना कुछ कहे मेरे पास से चोरी से चला आया; नहीं तो मैं तुझे आनन्द के साथ मृदंग और वीणा बजवाते, और गीत गवाते विदा करता?

28 तू ने तो मुझे अपने बेटे बेटियों को चूमने तक न दिया? तू ने मूर्खता की है।

29 तुम लोगों की हानि करने की शक्ति मेरे हाथ में तो है; पर तुम्हारे पिता के परमेश्वर ने मुझ से बीती हुई रात में कहा, सावधान रह, याकूब से न तो भला कहना और न बुरा।

30 भला अब तू अपने पिता के घर का बड़ा अभिलाषी हो कर चला आया तो चला आया, पर मेरे देवताओं को तू क्यों चुरा ले आया है?

31 याकूब ने लाबान को उत्तर दिया, मैं यह सोचकर डर गया था: कि कहीं तू अपनी बेटियों को मुझ से छीन न ले।

32 जिस किसी के पास तू अपने देवताओं को पाए, सो जीता न बचेगा। मेरे पास तेरा जो कुछ निकले, सो भाई-बन्धुओं के साम्हने पहिचान कर ले ले। क्योंकि याकूब न जानता था कि राहेल गृहदेवताओं को चुरा ले आई है।

33 यह सुनकर लाबान, याकूब और लिआ: और दोनों दासियों के तम्बुओं मे गया; और कुछ न मिला। तब लिआ: के तम्बू में से निकल कर राहेल के तम्बू में गया।

34 राहेल तो गृहदेवताओं को ऊंट की काठी में रखके उन पर बैठी थी। सो लाबान ने उसके सारे तम्बू में टटोलने पर भी उन्हें न पाया।

35 राहेल ने अपने पिता से कहा, हे मेरे प्रभु; इस से अप्रसन्न न हो, कि मैं तेरे साम्हने नहीं उठी; क्योंकि मैं स्त्रीधर्म से हूं। सो उसके ढूंढ़ ढांढ़ करने पर भी गृहदेवता उसको न मिले।

36 तब याकूब क्रोधित हो कर लाबान से झगड़ने लगा, और कहा, मेरा क्या अपराध है? मेरा क्या पाप है, कि तू ने इतना क्रोधित हो कर मेरा पीछा किया है?

37 तू ने जो मेरी सारी सामग्री को टटोल कर देखा, सो तुझ को सारी सामग्री में से क्या मिला? कुछ मिला हो तो उसको यहां अपने और मेरे भाइयों के सामहने रख दे, और वे हम दोनों के बीच न्याय करें।

38 इन बीस वर्षों से मैं तेरे पास रहा; उन में न तो तेरी भेड़-बकरियों के गर्भ गिरे, और न तेरे मेढ़ों का मांस मैं ने कभी खाया।

39 जिसे बनैले जन्तुओं ने फाड़ डाला उसको मैं तेरे पास न लाता था, उसकी हानि मैं ही उठाता था; चाहे दिन को चोरी जाता चाहे रात को, तू मुझ ही से उसको ले लेता था।

40 मेरी तो यह दशा थी, कि दिन को तो घाम और रात को पाला मुझे खा गया; और नीन्द मेरी आंखों से भाग जाती थी।

41 बीस वर्ष तक मैं तेरे घर में रहो; चौदह वर्ष तो मैं ने तेरी दोनो बेटियों के लिये, और छ: वर्ष तेरी भेड़-बकरियों के लिये सेवा की: और तू ने मेरी मजदूरी को दस बार बदल डाला।

42 मेरे पिता का परमेश्वर अर्थात इब्राहीम का परमेश्वर, जिसका भय इसहाक भी मानता है, यदि मेरी ओर न होता, तो निश्चय तू अब मुझे छूछे हाथ जाने देता। मेरे दु:ख और मेरे हाथों के परिश्रम को देखकर परमेश्वर ने बीती हुई रात में तुझे डपटा।

43 लाबान ले याकूब से कहा, ये बेटियों तो मेरी ही हैं, और ये पुत्र भी मेरे ही हैं, और ये भेड़-बकरियां भी मेरी ही हैं, और जो कुछ तुझे देख पड़ता है सो सब मेरा ही है: और अब मैं अपनी इन बेटियों वा इनके सन्तान से क्या कर सकता हूं?

44 अब आ मैं और तू दोनों आपस में वाचा बान्धें, और वह मेरे और तेरे बीच साक्षी ठहरी रहे।

45 तब याकूब ने एक पत्थर ले कर उसका खम्भा खड़ा किया।

46 तब याकूब ने अपने भाई-बन्धुओं से कहा, पत्थर इकट्ठा करो; यह सुन कर उन्होंने पत्थर इकट्ठा करके एक ढेर लगाया और वहीं ढेर के पास उन्होंने भोजन किया।

47 उस ढेर का नाम लाबान ने तो यज्र सहादुया, पर याकूब ने जिलियाद रखा।

48 लाबान ने कहा, कि यह ढेर आज से मेरे और तेरे बीच साक्षी रहेगा। इस कारण उसका नाम जिलियाद रखा गया,

49 और मिजपा भी; क्योंकि उसने कहा, कि जब हम उस दूसरे से दूर रहें तब यहोवा मेरी और तेरी देखभाल करता रहे।

50 यदि तू मेरी बेटियों को दु:ख दे, वा उनके सिवाय और स्त्रियां ब्याह ले, तो हमारे साथ कोई मनुष्य तो न रहेगा; पर देख मेरे तेरे बीच में परमेश्वर साक्षी रहेगा।

51 फिर लाबान ने याकूब से कहा, इस ढेर को देख और इस खम्भे को भी देख, जिन को मैं ने अपने और तेरे बीच में खड़ा किया है।

52 यह ढेर और यह खम्भा दोनों इस बात के साक्षी रहें, कि हानि करने की मनसा से न तो मैं इस ढेर को लांघ कर तेरे पास जाऊंगा, न तू इस ढेर और इस खम्भे को लांघ कर मेरे पास आएगा।

53 इब्राहीम और नाहोर और उनके पिता; तीनों का जो परमेश्वर है, सो हम दोनो के बीच न्याय करे। तब याकूब ने उसकी शपथ खाई जिसका भय उसका पिता इसहाक मानता था।

54 और याकूब ने उस पहाड़ पर मेलबलि चढ़ाया, और अपने भाई-बन्धुओं को भोजन करने के लिये बुलाया, सो उन्होंने भोजन करके पहाड़ पर रात बिताई।

55 बिहान को लाबान तड़के उठा, और अपने बेटे बेटियों को चूम कर और आशीर्वाद देकर चल दिया, और अपने स्थान को लौट गया।

उत्पत्ति 32

1 और याकूब ने भी अपना मार्ग लिया और परमेश्वर के दूत उसे आ मिले।

2 उन को देखते ही याकूब ने कहा, यह तो परमेश्वर का दल है सो उसने उस स्थान का नाम महनैम रखा॥

3 तब याकूब ने सेईर देश में, अर्थात एदोम देश में, अपने भाई ऐसाव के पास अपने आगे दूत भेज दिए।

4 और उसने उन्हें यह आज्ञा दी, कि मेरे प्रभु ऐसाव से यों कहना; कि तेरा दास याकूब तुझ से यों कहता है, कि मैं लाबान के यहां परदेशी हो कर अब तक रहा;

5 और मेरे पास गाय-बैल, गदहे, भेड़-बकरियां, और दास-दासियां है: सो मैं ने अपने प्रभु के पास इसलिये संदेशा भेजा है, कि तेरी अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर हो।

6 वे दूत याकूब के पास लौट के कहने लगे, हम तेरे भाई ऐसाव के पास गए थे, और वह भी तुझ से भेंट करने को चार सौ पुरूष संग लिये हुए चला आता है।

7 तब याकूब निपट डर गया, और संकट में पड़ा: और यह सोच कर, अपने संग वालों के, और भेड़-बकरियों, और गाय-बैलों, और ऊंटो के भी अलग अलग दो दल कर लिये,

8 कि यदि ऐसाव आकर पहिले दल को मारने लगे, तो दूसरा दल भाग कर बच जाएगा।

9 फिर याकूब ने कहा, हे यहोवा, हे मेरे दादा इब्राहीम के परमेश्वर, तू ने तो मुझ से कहा, कि अपने देश और जन्म भूमि में लौट जा, और मैं तेरी भलाई करूंगा:

10 तू ने जो जो काम अपनी करूणा और सच्चाई से अपने दास के साथ किए हैं, कि मैं जो अपनी छड़ी ही ले कर इस यरदन नदी के पार उतर आया, सो अब मेरे दो दल हो गए हैं, तेरे ऐसे ऐसे कामों में से मैं एक के भी योग्य तो नहीं हूं।

11 मेरी विनती सुन कर मुझे मेरे भाई ऐसाव के हाथ से बचा: मैं तो उससे डरता हूं, कहीं ऐसा ने हो कि वह आकर मुझे और मां समेत लड़कों को भी मार डाले।

12 तू ने तो कहा है, कि मैं निश्चय तेरी भलाई करूंगा, और तेरे वंश को समुद्र की बालू के किनकों के समान बहुत करूंगा, जो बहुतायत के मारे गिने नहीं जो सकते।

13 और उसने उस दिन की रात वहीं बिताई; और जो कुछ उसके पास था उस में से अपने भाई ऐसाव की भेंट के लिये छांट छांट कर निकाला;

14 अर्थात दो सौ बकरियां, और बीस बकरे, और दो सौ भेड़ें, और बीस मेढ़े,

15 और बच्चों समेत दूध देने वाली तीस ऊंटनियां, और चालीस गायें, और दस बैल, और बीस गदहियां और उनके दस बच्चे।

16 इन को उसने झुण्ड झुण्ड करके, अपने दासों को सौंप कर उन से कहा, मेरे आगे बढ़ जाओ; और झुण्डों के बीच बीच में अन्तर रखो।

17 फिर उसने अगले झुण्ड के रखवाले को यह आज्ञा दी, कि जब मेरा भाई ऐसाव तुझे मिले, और पूछने लगे, कि तू किस का दास है, और कहां जाता है, और ये जो तेरे आगे आगे हैं, सो किस के हैं?

18 तब कहना, कि यह तेरे दास याकूब के हैं। हे मेरे प्रभु ऐसाव, ये भेंट के लिये तेरे पास भेजे गए हैं, और वह आप भी हमारे पीछे पीछे आ रहा है।

19 और उसने दूसरे और तीसरे रखवालों को भी, वरन उस सभों को जो झुण्डों के पीछे पीछे थे ऐसी ही आज्ञा दी, कि जब ऐसाव तुम को मिले तब इसी प्रकार उससे कहना।

20 और यह भी कहना, कि तेरा दास याकूब हमारे पीछे पीछे आ रहा है। क्योंकि उसने यह सोचा, कि यह भेंट जो मेरे आगे आगे जाती है, इसके द्वारा मैं उसके क्रोध को शान्त करके तब उसका दर्शन करूंगा; हो सकता है वह मुझ से प्रसन्न हो जाए।

21 सो वह भेंट याकूब से पहिले पार उतर गई, और वह आप उस रात को छावनी में रहा॥

22 उसी रात को वह उठा और अपनी दोनों स्त्रियों, और दोनों लौंडियों, और ग्यारहों लड़कों को संग ले कर घाट से यब्बोक नदी के पार उतर गया।

23 और उसने उन्हें उस नदी के पार उतार दिया वरन अपना सब कुछ पार उतार दिया।

24 और याकूब आप अकेला रह गया; तब कोई पुरूष आकर पह फटने तक उससे मल्लयुद्ध करता रहा।

25 जब उसने देखा, कि मैं याकूब पर प्रबल नहीं होता, तब उसकी जांघ की नस को छूआ; सो याकूब की जांघ की नस उससे मल्लयुद्ध करते ही करते चढ़ गई।

26 तब उसने कहा, मुझे जाने दे, क्योंकि भोर हुआ चाहता है; याकूब ने कहा जब तक तू मुझे आशीर्वाद न दे, तब तक मैं तुझे जाने न दूंगा।

27 और उसने याकूब से पूछा, तेरा नाम क्या है? उसने कहा याकूब।

28 उसने कहा तेरा नाम अब याकूब नहीं, परन्तु इस्राएल होगा, क्योंकि तू परमेश्वर से और मनुष्यों से भी युद्ध कर के प्रबल हुआ है।

29 याकूब ने कहा, मैं बिनती करता हूं, मुझे अपना नाम बता। उसने कहा, तू मेरा नाम क्यों पूछता है? तब उसने उसको वहीं आशीर्वाद दिया।

30 तब याकूब ने यह कह कर उस स्थान का नाम पनीएल रखा: कि परमेश्वर को आम्हने साम्हने देखने पर भी मेरा प्राण बच गया है।

31 पनूएल के पास से चलते चलते सूर्य उदय हो गया, और वह जांघ से लंगड़ाता था।

32 इस्राएली जो पशुओं की जांघ की जोड़ वाले जंघानस को आज के दिन तक नहीं खाते, इसका कारण यही है, कि उस पुरूष ने याकूब की जांघ की जोड़ में जंघानस को छूआ था॥

उत्पत्ति 33

1 और याकूब ने आंखें उठा कर यह देखा, कि ऐसाव चार सौ पुरूष संग लिये हुए चला जाता है। तब उसने लड़के बालों को अलग अलग बांट कर लिआ, और राहेल, और दोनों लौंडियों को सौंप दिया।

2 और उसने सब के आगे लड़कों समेत लौंडियों को उसके पीछे लड़कों समेत लिआ: को, और सब के पीछे राहेल और यूसुफ को रखा,

3 और आप उन सब के आगे बढ़ा, और सात बार भूमि पर गिर के दण्डवत की, और अपने भाई के पास पहुंचा।

4 तब ऐसाव उससे भेंट करने को दौड़ा, और उसको हृदय से लगा कर, गले से लिपट कर चूमा: फिर वे दोनों रो पड़े।

5 तब उसने आंखे उठा कर स्त्रियों और लड़के बालों को देखा; और पूछा, ये जो तेरे साथ हैं सो कौन हैं? उसने कहा, ये तेरे दास के लड़के हैं, जिन्हें परमेश्वर ने अनुग्रह कर के मुझ को दिया है।

6 तब लड़कों समेत लौंडियों ने निकट आकर दण्डवत की।

7 फिर लड़कों समेत लिआ: निकट आई, और उन्होंने भी दण्डवत की: पीछे यूसुफ और राहेल ने भी निकट आकर दण्डवत की।

8 तब उसने पूछा, तेरा यह बड़ा दल जो मुझ को मिला, उसका क्या प्रयोजन है? उसने कहा, यह कि मेरे प्रभु की अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर हो।

9 ऐसाव ने कहा, हे मेरे भाई, मेरे पास तो बहुत है; जो कुछ तेरा है सो तेरा ही रहे।

10 याकूब ने कहा, नहीं नहीं, यदि तेरा अनुग्रह मुझ पर हो, तो मेरी भेंट ग्रहण कर: क्योंकि मैं ने तेरा दर्शन पाकर, मानो परमेश्वर का दर्शन पाया है, और तू मुझ से प्रसन्न हुआ है।

11 सो यह भेंट, जो तुझे भेजी गई है, ग्रहण कर: क्योंकि परमेश्वर ने मुझ पर अनुग्रह किया है, और मेरे पास बहुत है। जब उसने उस को दबाया, तब उस ने भेंट को ग्रहण किया।

12 फिर ऐसाव ने कहा, आ, हम बढ़ चलें: और मैं तेरे आगे आगे चलूंगा।

13 याकूब ने कहा, हे मेरे प्रभु, तू जानता ही है कि मेरे साथ सुकुमार लड़के, और दूध देने हारी भेड़-बकरियां और गायें है; यदि ऐसे पशु एक दिन भी अधिक हांके जाएं, तो सब के सब मर जाएंगे।

14 सो मेरा प्रभु अपने दास के आगे बढ़ जाए, और मैं इन पशुओं की गति के अनुसार, जो मेरे आगे है, और लड़के बालों की गति के अनुसार धीरे धीरे चल कर सेईर में अपने प्रभु के पास पहुंचूंगा।

15 ऐसाव ने कहा, तो अपने संग वालों में से मैं कई एक तेरे साथ छोड़ जाऊं। उसने कहा, यह क्यों? इतना ही बहुत है, कि मेरे प्रभु की अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर बनी रहे।

16 तब ऐसाव ने उसी दिन सेईर जाने को अपना मार्ग लिया।

17 और याकूब वहां से कूच कर के सुक्कोत को गया, और वहां अपने लिये एक घर, और पशुओं के लिये झोंपड़े बनाए: इसी कारण उस स्थान का नाम सुक्कोत पड़ा॥

18 और याकूब जो पद्दनराम से आया था, सो कनान देश के शकेम नगर के पास कुशल क्षेम से पहुंच कर नगर के साम्हने डेरे खड़े किए।

19 और भूमि के जिस खण्ड पर उसने अपना तम्बू खड़ा किया, उसको उसने शकेम के पिता हमोर के पुत्रों के हाथ से एक सौ कसीतों में मोल लिया।

20 और वहां उसने एक वेदी बना कर उसका नाम एलेलोहे इस्राएल रखा॥

उत्पत्ति 34

1 और लिआ: की बेटी दीना, जो याकूब से उत्पन्न हुई थी, उस देश की लड़कियों से भेंट करने को निकली।

2 तब उस देश के प्रधान हित्ती हमोर के पुत्र शकेम ने उसे देखा, और उसे ले जा कर उसके साथ कुकर्म करके उसको भ्रष्ट कर डाला।

3 तब उसका मन याकूब की बेटी दीना से लग गया, और उसने उस कन्या से प्रेम की बातें की, और उससे प्रेम करने लगा।

4 और शकेम ने अपने पिता हमोर से कहा, मुझे इस लड़की को मेरी पत्नी होने के लिये दिला दे।

5 और याकूब ने सुना, कि शकेम ने मेरी बेटी दीना को अशुद्ध कर डाला है, पर उसके पुत्र उस समय पशुओं के संग मैदान में थे, सो वह उनके आने तक चुप रहा।

6 और शकेम का पिता हमोर निकल कर याकूब से बातचीत करने के लिये उसके पास गया।

7 और याकूब के पुत्र सुनते ही मैदान से बहुत उदास और क्रोधित हो कर आए: क्योंकि शकेम ने याकूब की बेटी के साथ कुकर्म करके इस्राएल के घराने से मूर्खता का ऐसा काम किया था, जिसका करना अनुचित था।

8 हमोर ने उन सब से कहा, मेरे पुत्र शकेम का मन तुम्हारी बेटी पर बहुत लगा है, सो उसे उसकी पत्नी होने के लिये उसको दे दो।

9 और हमारे साथ ब्याह किया करो; अपनी बेटियां हम को दिया करो, और हमारी बेटियों को आप लिया करो।

10 और हमारे संग बसे रहो: और यह देश तुम्हारे सामने पड़ा है; इस में रह कर लेनदेन करो, और इसकी भूमि को अपने लिये ले लो।

11 और शकेम ने भी दीना के पिता और भाइयों से कहा, यदि मुझ पर तुम लोगों की अनुग्रह की दृष्टि हो, तो जो कुछ तुम मुझ से कहो, सो मैं दूंगा।

12 तुम मुझ से कितना ही मूल्य वा बदला क्यों न मांगो, तौभी मैं तुम्हारे कहे के अनुसार दूंगा: परन्तु उस कन्या को पत्नी होने के लिये मुझे दो।

13 तब यह सोच कर, कि शकेम ने हमारी बहिन दीना को अशुद्ध किया है, याकूब के पुत्रों ने शकेम और उसके पिता हमोर को छल के साथ यह उत्तर दिया,

14 कि हम ऐसा काम नहीं कर सकते, कि किसी खतना रहित पुरूष को अपनी बहिन दें; क्योंकि इस से हमारी नामधराई होगी:

15 इस बात पर तो हम तुम्हारी मान लेंगे, कि हमारी नाईं तुम में से हर एक पुरूष का खतना किया जाए।

16 तब हम अपनी बेटियां तुम्हें ब्याह देंगे, और तुम्हारी बेटियां ब्याह लेंगे, और तुम्हारे संग बसे भी रहेंगे, और हम दोनों एक ही समुदाय के मनुष्य हो जाएंगे।

17 पर यदि तुम हमारी बात न मान कर अपना खतना न कराओगे, तो हम अपनी लड़की को लेके यहां से चले जाएंगे।

18 उनकी इस बात पर हमोर और उसका पुत्र शकेम प्रसन्न हुए।

19 और वह जवान, जो याकूब की बेटी को बहुत चाहता था, इस काम को करने में उसने विलम्ब न किया। वह तो अपने पिता के सारे घराने में अधिक प्रतिष्ठित था।

20 सो हमोर और उसका पुत्र शकेम अपने नगर के फाटक के निकट जा कर नगरवासियों को यों समझाने लगे;

21 कि वे मनुष्य तो हमारे संग मेल से रहना चाहते हैं; सो उन्हें इस देश में रह के लेनदेन करने दो; देखो, यह देश उनके लिये भी बहुत है; फिर हम लोग उनकी बेटियों को ब्याह लें, और अपनी बेटियों को उन्हें दिया करें।

22 वे लोग केवल इस बात पर हमारे संग रहने और एक ही समुदाय के मनुष्य हो जाने को प्रसन्न हैं, कि उनकी नाईं हमारे सब पुरूषों का भी खतना किया जाए।

23 क्या उनकी भेड़-बकरियां, और गाय-बैल वरन उनके सारे पशु और धन सम्पत्ति हमारी न हो जाएगी? इतना ही करें कि हम लोग उनकी बात मान लें, तो वे हमारे संग रहेंगे।

24 सो जितने उस नगर के फाटक से निकलते थे, उन सभों ने हमोर की और उसके पुत्र शकेम की बात मानी; और हर एक पुरूष का खतना किया गया, जितने उस नगर के फाटक से निकलते थे।

25 तीसरे दिन, जब वे लोग पीड़ित पड़े थे, तब ऐसा हुआ कि शिमोन और लेवी नाम याकूब के दो पुत्रों ने, जो दीना के भाई थे, अपनी अपनी तलवार ले उस नगर में निधड़क घुस कर सब पुरूषों को घात किया।

26 और हमोर और उसके पुत्र शकेम को उन्होंने तलवार से मार डाला, और दीना को शकेम के घर से निकाल ले गए।

27 और याकूब के पुत्रों ने घात कर डालने पर भी चढ़ कर नगर को इसलिये लूट लिया, कि उस में उनकी बहिन अशुद्ध की गई थी।

28 उन्होंने भेड़-बकरी, और गाय-बैल, और गदहे, और नगर और मैदान में जितना धन था ले लिया।

29 उस सब को, और उनके बाल-बच्चों, और स्त्रियों को भी हर ले गए, वरन घर घर में जो कुछ था, उसको भी उन्होंने लूट लिया।

30 तब याकूब ने शिमोन और लेवी से कहा, तुम ने जो उस देश के निवासी कनानियोंऔर परिज्जियों के मन में मेरी ओर घृणा उत्पन्न कराई है, इस से तुम ने मुझे संकट में डाला है, क्योंकि मेरे साथ तो थोड़े की लोग हैं, सो अब वे इकट्ठे हो कर मुझ पर चढ़ेंगे, और मुझे मार डालेंगे, सो मैं अपने घराने समेत सत्यानाश हो जाऊंगा।

31 उन्होंने कहा, क्या वह हमारी बहिन के साथ वेश्या की नाईं बर्ताव करे?

उत्पत्ति 35

1 तब परमेश्वर ने याकूब से कहा, यहां से कूच करके बेतेल को जा, और वहीं रह: और वहां ईश्वर के लिये वेदी बना, जिसने तुझे उस समय दर्शन दिया, जब तू अपने भाई ऐसाव के डर से भागा जाता था।

2 तब याकूब ने अपने घराने से, और उन सब से भी जो उसके संग थे, कहा, तुम्हारे बीच में जो पराए देवता हैं, उन्हें निकाल फेंको ; और अपने अपने को शुद्ध करो, और अपने वस्त्र बदल डालो;

3 और आओ, हम यहां से कूच करके बेतेल को जाएं; वहां मैं ईश्वर के लिये एक वेदी बनाऊंगा, जिसने संकट के दिन मेरी सुन ली, और जिस मार्ग से मैं चलता था, उस में मेरे संग रहा।

4 सो जितने पराए देवता उनके पास थे, और जितने कुण्डल उनके कानोंमें थे, उन सभों को उन्होंने याकूब को दिया; और उसने उन को उस सिन्दूर वृक्ष के नीचे, जो शकेम के पास है, गाड़ दिया।

5 तब उन्होंने कूच किया: और उनके चारों ओर के नगर निवासियों के मन में परमेश्वर की ओर से ऐसा भय समा गया, कि उन्होंने याकूब के पुत्रों का पीछा न किया।

6 सो याकूब उन सब समेत, जो उसके संग थे, कनान देश के लूज नगर को आया। वह नगर बेतेल भी कहलाता है।

7 वहां उसने एक वेदी बनाईं, और उस स्थान का नाम एलबेतेल रखा; क्योंकि जब वह अपने भाई के डर से भागा जाता था तब परमेश्वर उस पर वहीं प्रगट हुआ था।

8 और रिबका की दूध पिलानेहारी धाय दबोरा मर गई, और बेतेल के नीचे सिन्दूर वृक्ष के तले उसको मिट्टी दी गई, और उस सिन्दूर वृक्ष का नाम अल्लोनबक्कूत रखा गया॥

9 फिर याकूब के पद्दनराम से आने के पश्चात परमेश्वर ने दूसरी बार उसको दर्शन देकर आशीष दी।

10 और परमेश्वर ने उससे कहा, अब तक तो तेरा नाम याकूब रहा है; पर आगे को तेरा नाम याकूब न रहेगा, तू इस्राएल कहलाएगा:

11 फिर परमेश्वर ने उससे कहा, मैं सर्वशक्तिमान ईश्वर हूं: तू फूले-फले और बढ़े; और तुझ से एक जाति वरन जातियों की एक मण्डली भी उत्पन्न होगी, और तेरे वंश में राजा उत्पन्न होंगे।

12 और जो देश मैं ने इब्राहीम और इसहाक को दिया है, वही देश तुझे देता हूं, और तेरे पीछे तेरे वंश को भी दूंगा।

13 तब परमेश्वर उस स्थान में, जहां उसने याकूब से बातें की, उनके पास से ऊपर चढ़ गया।

14 और जिस स्थान में परमेश्वर ने याकूब से बातें की, वहां याकूब ने पत्थर का एक खम्बा खड़ा किया, और उस पर अर्घ देकर तेल डाल दिया।

15 और जहां परमेश्वर ने याकूब से बातें की, उस स्थान का नाम उसने बेतेल रखा।

16 फिर उन्होंने बेतेल से कूच किया; और एप्राता थोड़ी ही दूर रह गया था, कि राहेल को बच्चा जनने की बड़ी पीड़ा आने लगी।

17 जब उसको बड़ी बड़ी पीड़ा उठती थी तब धाय ने उससे कहा, मत डर; अब की भी तेरे बेटा ही होगा।

18 तब ऐसा हुआ, कि वह मर गई, और प्राण निकलते निकलते उसने उस बेटे को नाम बेनोनी रखा: पर उसके पिता ने उसका नाम बिन्यामीन रखा।

19 यों राहेल मर गई, और एप्राता, अर्थात बेतलेहेम के मार्ग में, उसको मिट्टी दी गई।

20 और याकूब ने उसकी कब्र पर एक खम्भा खड़ा किया: राहेल की कब्र का वही खम्भा आज तक बना है।

21 फिर इस्राएल ने कूच किया, और एदेर नाम गुम्मट के आगे बढ़कर अपना तम्बू खड़ा किया।

22 जब इस्राएल उस देश में बसा था, तब एक दिन ऐसा हुआ, कि रूबेन ने जा कर अपने पिता की रखेली बिल्हा के साथ कुकर्म किया: और यह बात इस्राएल को मालूम हो गई॥

23 याकूब के बारह पुत्र हुए। उन में से लिआ: के पुत्र ये थे; अर्थात याकूब का जेठा, रूबेन, फिर शिमोन, लेवी, यहूदा, इस्साकार, और जबूलून।

24 और राहेल के पुत्र ये थे; अर्थात यूसुफ, और बिन्यामीन।

25 और राहेल की लौन्डी बिल्हा के पुत्र ये थे; अर्थात दान, और नप्ताली।

26 और लिआ: की लौन्डी जिल्पा के पुत्र ये थे: अर्थात गाद, और आशेर; याकूब के ये ही पुत्र हुए, जो उससे पद्दनराम में उत्पन्न हुए॥

27 और याकूब मम्रे में, जो करियतअर्बा, अर्थात हब्रोन है, जहां इब्राहीम और इसहाक परदेशी हो कर रहे थे, अपने पिता इसहाक के पास आया।

28 इसहाक की अवस्था एक सौ अस्सी बरस की हुई।

29 और इसहाक का प्राण छूट गया, और वह मर गया, और वह बूढ़ा और पूरी आयु का हो कर अपने लोगों में जा मिला: और उसके पुत्र ऐसाव और याकूब ने उसको मिट्टी दी॥