चरण 150

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भजन संहिता 105:25-45

25 उसने मिस्त्रियों के मन को ऐसा फेर दिया, कि वे उसकी प्रजा से बैर रखने, और उसके दासों से छल करने लगे॥

26 उसने अपने दास मूसा को, और अपने चुने हुए हारून को भेजा।

27 उन्होंने उनके बीच उसकी ओर से भांति भांति के चिन्ह, और हाम के देश में चमत्कार दिखाए।

28 उसने अन्धकार कर दिया, और अन्धियारा हो गया; और उन्होंने उसकी बातों को न टाला।

29 उसने मिस्त्रियों के जल को लोहू कर डाला, और मछलियों को मार डाला।

30 मेंढक उनकी भूमि में वरन उनके राजा की कोठरियों में भी भर गए।

31 उसने आज्ञा दी, तब डांस आ गए, और उनके सारे देश में कुटकियां आ गईं।

32 उसने उनके लिये जलवृष्टि की सन्ती ओले, और उनके देश में धधकती आग बरसाई।

33 और उसने उनकी दाखलताओं और अंजीर के वृक्षों को वरन उनके देश के सब पेड़ों को तोड़ डाला।

34 उसने आज्ञा दी तब अनगिनत टिडि्डयां, और कीड़े आए,

35 और उन्होंने उनके देश के सब अन्न आदि को खा डाला; और उनकी भूमि के सब फलों को चट कर गए।

36 उसने उनके देश के सब पहिलौठों को, उनके पौरूष के सब पहिले फल को नाश किया॥

37 तब वह अपने गोत्रियों को सोना चांदी दिला कर निकाल लाया, और उन में से कोई निर्बल न था।

38 उनके जाने से मिस्त्री आनन्दित हुए, क्योंकि उनका डर उन में समा गया था।

39 उसने छाया के लिये बादल फैलाया, और रात को प्रकाश देने के लिये आग प्रगट की।

40 उन्होंने मांगा तब उसने बटेरें पहुंचाई, और उन को स्वर्गीय भोजन से तृप्त किया।

41 उसने चट्टान फाड़ी तब पानी बह निकला; और निर्जल भूमि पर नदी बहने लगी।

42 क्योंकि उसने अपने पवित्र वचन और अपने दास इब्राहीम को स्मरण किया॥

43 वह अपनी प्रजा को हर्षित करके और अपने चुने हुओं से जयजयकार कराके निकाल लाया।

44 और उन को अन्यजातियों के देश दिए; और वे और लोगों के श्रम के फल के अधिकारी किए गए,

45 कि वे उसकी विधियों को मानें, और उसकी व्यवस्था को पूरी करें। याह की स्तुति करो!

भजन संहिता 106:1-33

1 याह की स्तुति करो! यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि वह भला है; और उसकी करूणा सदा की है!

2 यहोवा के पराक्रम के कामों का वर्णन कौन कर सकता है, या उसका पूरा गुणानुवाद कौन सुना सकता?

3 क्या ही धन्य हैं वे जो न्याय पर चलते, और हर समय धर्म के काम करते हैं!

4 हे यहोवा, अपनी प्रजा पर की प्रसन्नता के अनुसार मुझे स्मरण कर, मेरे उद्धार के लिये मेरी सुधि ले,

5 कि मैं तेरे चुने हुओं का कल्याण देखूं, और तेरी प्रजा के आनन्द में आनन्दित हो जाऊं; और तेरे निज भाग के संग बड़ाई करने पाऊं॥

6 हम ने तो अपने पुरखाओं की नाईं पाप किया है; हम ने कुटिलता की, हम ने दुष्टता की है!

7 मिस्त्र में हमारे पुरखाओं ने तेरे आश्चर्यकर्मों पर मन नहीं लगाया, न तेरी अपार करूणा को स्मरण रखा; उन्होंने समुद्र के तीर पर, अर्थात लाल समुद्र के तीर पर बलवा किया।

8 तौभी उसने अपने नाम के निमित्त उनका उद्धार किया, जिस से वह अपने पराक्रम को प्रगट करे।

9 तब उसने लाल समुद्र को घुड़का और वह सूख गया; और वह उन्हें गहिरे जल के बीच से मानों जंगल में से निकाल ले गया।

10 उसने उन्हें बैरी के हाथ से उबारा, और शत्रु के हाथ से छुड़ा लिया।

11 और उन के द्रोही जल में डूब गए; उन में से एक भी न बचा।

12 तब उन्हों ने उसके वचनों का विश्वास किया; और उसकी स्तुति गाने लगे॥

13 परन्तु वे झट उसके कामों को भूल गए; और उसकी युक्ति के लिये न ठहरे।

14 उन्होंने जंगल में अति लालसा की और निर्जल स्थान में ईश्वर की परीक्षा की।

15 तब उसने उन्हें मुंह मांगा वर तो दिया, परन्तु उनके प्राण को सुखा दिया॥

16 उन्होंने छावनी में मूसा के, और यहोवा के पवित्र जन हारून के विषय में डाह की,

17 भूमि फट कर दातान को निगल गई, और अबीराम के झुण्ड को ग्रस लिया।

18 और उन के झुण्ड में आग भड़क उठी; और दुष्ट लोग लौ से भस्म हो गए॥

19 उन्होंने होरब में बछड़ा बनाया, और ढली हुई मूर्ति को दण्डवत की।

20 यों उन्होंने अपनी महिमा अर्थात ईश्वर को घास खाने वाले बैल की प्रतिमा से बदल डाला।

21 वे अपने उद्धारकर्ता ईश्वर को भूल गए, जिसने मिस्त्र में बड़े बड़े काम किए थे।

22 उसने तो हाम के देश में आश्चर्यकर्म और लाल समुद्र के तीर पर भयंकर काम किए थे।

23 इसलिये उसने कहा, कि मैं इन्हें सत्यानाश कर डालता यदि मेरा चुना हुआ मूसा जोखिम के स्थान में उनके लिये खड़ा न होता ताकि मेरी जलजलाहट को ठण्डा करे कहीं ऐसा न हो कि मैं उन्हें नाश कर डालूं॥

24 उन्होंने मनभावने देश को निकम्मा जाना, और उसके वचन की प्रतीति न की।

25 वे अपने तम्बुओं में कुड़कुड़ाए, और यहोवा का कहा न माना।

26 तब उसने उनके विषय में शपथ खाई कि मैं इन को जंगल में नाश करूंगा,

27 और इनके वंश को अन्यजातियों के सम्मुख गिरा दूंगा, और देश देश में तितर बितर करूंगा॥

28 वे पोर वाले बाल देवता को पूजने लगे और मुर्दों को चढ़ाए हुए पशुओं का मांस खाने लगे।

29 यों उन्होंने अपने कामों से उसको क्रोध दिलाया और मरी उन में फूट पड़ी।

30 तब पीनहास ने उठ कर न्यायदण्ड दिया, जिस से मरी थम गई।

31 और यह उसके लेखे पीढ़ी से पीढ़ी तक सर्वदा के लिये धर्म गिना गया॥

32 उन्होंने मरीबा के सोते के पास भी यहोवा का क्रोध भड़काया, और उनके कारण मूसा की हानि हुई;

33 क्योंकि उन्होंने उसकी आत्मा से बलवा किया, तब मूसा बिन सोचे बोल उठा।