34
जिन लोगों के विषय यहोवा ने उन्हें आज्ञा दी थी, उन को उन्होंने सत्यानाश न किया,
35
वरन उन्हीं जातियों से हिलमिल गए और उनके व्यवहारों को सीख लिया;
36
और उनकी मूर्तियों की पूजा करने लगे, और वे उनके लिये फन्दा बन गईं।
37
वरन उन्होंने अपने बेटे- बेटियों को पिशाचों के लिये बलिदान किया;
38
और अपने निर्दोष बेटे- बेटियों का लोहू बहाया जिन्हें उन्होंने कनान की मूर्तियों पर बलि किया, इसलिये देश खून से अपवित्र हो गया।
39
और वे आप अपने कामों के द्वारा अशुद्ध हो गए, और अपने कार्यों के द्वारा व्यभिचारी भी बन गए॥
40
तब यहोवा का क्रोध अपनी प्रजा पर भड़का, और उसको अपने निज भाग से घृणा आई;
41
तब उसने उन को अन्यजातियों के वश में कर दिया, और उनके बैरियों ने उन पर प्रभुता की।
42
उन के शत्रुओं ने उन पर अन्धेर किया, और वे उनके हाथ तले दब गए।
43
बारम्बार उसने उन्हें छुड़ाया, परन्तु वे उसके विरुद्ध युक्ति करते गए, और अपने अधर्म के कारण दबते गए।
44
तौभी जब जब उनका चिल्लाना उसके कान में पड़ा, तब तब उसने उनके संकट पर दृष्टि की!
45
और उनके हित अपनी वाचा को स्मरण करके अपनी अपार करूणा के अनुसार तरस खाया,
46
और जो उन्हें बन्धुए करके ले गए थे उन सब से उन पर दया कराई॥
47
हे हमारे परमेश्वर यहोवा, हमारा उद्धार कर, और हमें अन्यजातियों में से इकट्ठा कर ले, कि हम तेरे पवित्र नाम का धन्यवाद करें, और तेरी स्तुति करते हुए तेरे विषय में बड़ाई करें॥
48
इस्राएल का परमेश्वर यहोवा अनादिकाल से अनन्तकाल तक धन्य है! और सारी प्रजा कहे आमीन! याह की स्तुति करो॥