Korak 9: Pharaoh

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उत्पत्ति 41

1 पूरे दो बरस के बीतने पर फिरौन ने यह स्वप्न देखा, कि वह नील नदी के किनारे पर खड़ा है।

2 और उस नदी में से सात सुन्दर और मोटी मोटी गायें निकल कर कछार की घास चरने लगीं।

3 और, क्या देखा, कि उनके पीछे और सात गायें, जो कुरूप और दुर्बल हैं, नदी से निकली; और दूसरी गायों के निकट नदी के तट पर जा खड़ी हुई।

4 तब ये कुरूप और दुर्बल गायें उन सात सुन्दर और मोटी मोटी गायों को खा गईं। तब फिरौन जाग उठा।

5 और वह फिर सो गया और दूसरा स्वप्न देखा, कि एक डंठी में से सात मोटी और अच्छी अच्छी बालें निकलीं।

6 और, क्या देखा, कि उनके पीछे सात बालें पतली और पुरवाई से मुरझाई हुई निकलीं।

7 और इन पतली बालों ने उन सातों मोटी और अन्न से भरी हुई बालों को निगल लिया। तब फिरौन जागा, और उसे मालूम हुआ कि यह स्वप्न ही था।

8 भोर को फिरौन का मन व्याकुल हुआ; और उसने मिस्र के सब ज्योतिषियों, और पण्डितों को बुलवा भेजा; और उन को अपने स्वप्न बताएं; पर उन में से कोई भी उनका फल फिरौन से न कह सहा।

9 तब पिलानेहारों का प्रधान फिरौन से बोल उठा, कि मेरे अपराध आज मुझे स्मरण आए:

10 जब फिरौन अपने दासों से क्रोधित हुआ था, और मुझे और पकानेहारों के प्रधान को कैद करा के जल्लादों के प्रधान के घर के बन्दीगृह में डाल दिया था;

11 तब हम दोनों ने, एक ही रात में, अपने अपने होनहार के अनुसार स्वप्न देखा;

12 और वहां हमारे साथ एक इब्री जवान था, जो जल्लादों के प्रधान का दास था; सो हम ने उसको बताया, और उसने हमारे स्वप्नों का फल हम से कहा, हम में से एक एक के स्वप्न का फल उसने बता दिया।

13 और जैसा जैसा फल उसने हम से कहा था, वैसा ही हुआ भी, अर्थात मुझ को तो मेरा पद फिर मिला, पर वह फांसी पर लटकाया गया।

14 तब फिरौन ने यूसुफ को बुलवा भेजा। और वह झटपट बन्दीगृह से बाहर निकाला गया, और बाल बनवाकर, और वस्त्र बदलकर फिरौन के साम्हने आया।

15 फिरौन ने यूसुफ से कहा, मैं ने एक स्वप्न देखा है, और उसके फल का बताने वाला कोई भी नहीं; और मैं ने तेरे विषय में सुना है, कि तू स्वप्न सुनते ही उसका फल बता सकता है।

16 यूसुफ ने फिरौन से कहा, मैं तो कुछ नहीं जानता: परमेश्वर ही फिरौन के लिये शुभ वचन देगा।

17 फिर फिरौन यूसुफ से कहने लगा, मैं ने अपने स्वप्न में देखा, कि मैं नील नदी के किनारे पर खड़ा हूं

18 फिर, क्या देखा, कि नदी में से सात मोटी और सुन्दर सुन्दर गायें निकल कर कछार की घास चरने लगी।

19 फिर, क्या देखा, कि उनके पीछे सात और गायें निकली, जो दुबली, और बहुत कुरूप, और दुर्बल हैं; मैं ने तो सारे मिस्र देश में ऐसी कुडौल गायें कभी नहीं देखीं।

20 और इन दुर्बल और कुडौल गायों ने उन पहली सातों मोटी मोटी गायों को खा लिया।

21 और जब वे उन को खा गई तब यह मालूम नहीं होता था कि वे उन को खा गई हैं, क्योंकि वे पहिले की नाईं जैसी की तैसी कुडौल रहीं। तब मैं जाग उठा।

22 फिर मैं ने दूसरा स्वप्न देखा, कि एक ही डंठी में सात अच्छी अच्छी और अन्न से भरी हुई बालें निकलीं।

23 फिर, क्या देखता हूं, कि उनके पीछे और सात बालें छूछी छूछी और पतली और पुरवाई से मुरझाई हुई निकलीं।

24 और इन पतली बालोंने उन सात अच्छी अच्छी बालों को निगल लिया। इसे मैं ने ज्योतिषियों को बताया, पर इस का समझानेहारा कोई नहीं मिला।

25 तब यूसुफ ने फिरौन से कहा, फिरौन का स्वप्न एक ही है, परमेश्वर जो काम किया चाहता है, उसको उसने फिरौन को जताया है।

26 वे सात अच्छी अच्छी गायें सात वर्ष हैं; और वे सात अच्छी अच्छी बालें भी सात वर्ष हैं; स्वप्न एक ही है।

27 फिर उनके पीछे जो दुर्बल और कुडौल गायें निकलीं, और जो सात छूछी और पुरवाई से मुरझाई हुई बालें निकाली, वे अकाल के सात वर्ष होंगे।

28 यह वही बात है, जो मैं फिरौन से कह चुका हूं, कि परमेश्वर जो काम किया चाहता है, उसे उसने फिरौन को दिखाया है।

29 सुन, सारे मिस्र देश में सात वर्ष तो बहुतायत की उपज के होंगे।

30 उनके पश्चात सात वर्ष अकाल के आयेंगे, और सारे मिस्र देश में लोग इस सारी उपज को भूल जायेंगे; और अकाल से देश का नाश होगा।

31 और सुकाल (बहुतायत की उपज) देश में फिर स्मरण न रहेगा क्योंकि अकाल अत्यन्त भयंकर होगा।

32 और फिरौन ने जो यह स्वप्न दो बार देखा है इसका भेद यही है, कि यह बात परमेश्वर की ओर से नियुक्त हो चुकी है, और परमेश्वर इसे शीघ्र ही पूरा करेगा।

33 इसलिये अब फिरौन किसी समझदार और बुद्धिमान् पुरूष को ढूंढ़ करके उसे मिस्र देश पर प्रधानमंत्री ठहराए।

34 फिरौन यह करे, कि देश पर अधिकारियों को नियुक्त करे, और जब तक सुकाल के सात वर्ष रहें तब तक वह मिस्र देश की उपज का पंचमांश लिया करे।

35 और वे इन अच्छे वर्षों में सब प्रकार की भोजन वस्तु इकट्ठा करें, और नगर नगर में भण्डार घर भोजन के लिये फिरौन के वश में करके उसकी रक्षा करें।

36 और वह भोजनवस्तु अकाल के उन सात वर्षों के लिये, जो मिस्र देश में आएंगे, देश के भोजन के निमित्त रखी रहे, जिस से देश उस अकाल से स्त्यानाश न हो जाए।

37 यह बात फिरौन और उसके सारे कर्मचारियों को अच्छी लगी।

38 सो फिरौन ने अपने कर्मचारियोंसे कहा, कि क्या हम को ऐसा पुरूष जैसा यह है, जिस में परमेश्वर का आत्मा रहता है, मिल सकता है?

39 फिर फिरौन ने यूसुफ से कहा, परमेश्वर ने जो तुझे इतना ज्ञान दिया है, कि तेरे तुल्य कोई समझदार और बुद्धिमान् नहीं;

40 इस कारण तू मेरे घर का अधिकारी होगा, और तेरी आज्ञा के अनुसार मेरी सारी प्रजा चलेगी, केवल राजगद्दी के विषय मैं तुझ से बड़ा ठहरूंगा।

41 फिर फिरौन ने यूसुफ से कहा, सुन, मैं तुझ को मिस्र के सारे देश के ऊपर अधिकारी ठहरा देता हूं

42 तब फिरौन ने अपने हाथ से अंगूठी निकाल के यूसुफ के हाथ में पहिना दी; और उसको बढिय़ा मलमल के वस्त्र पहिनवा दिए, और उसके गले में सोने की जंजीर डाल दी;

43 और उसको अपने दूसरे रथ पर चढ़वाया; और लोग उसके आगे आगे यह प्रचार करते चले, कि घुटने टेककर दण्डवत करो और उसने उसको मिस्र के सारे देश के ऊपर प्रधान मंत्री ठहराया।

44 फिर फिरौन ने यूसुफ से कहा, फिरौन तो मैं हूं, और सारे मिस्र देश में कोई भी तेरी आज्ञा के बिना हाथ पांव न हिलाएगा।

45 और फिरौन ने यूसुफ का नाम सापन त्पानेह रखा। और ओन नगर के याजक पोतीपेरा की बेटी आसनत से उसका ब्याह करा दिया। और यूसुफ मिस्र के सारे देश में दौरा करने लगा।

46 जब यूसुफ मिस्र के राजा फिरौन के सम्मुख खड़ा हुआ, तब वह तीस वर्ष का था। सो वह फिरौन के सम्मुख से निकलकर मिस्र के सारे देश में दौरा करने लगा।

47 सुकाल के सातों वर्षोंमें भूमि बहुतायत से अन्न उपजाती रही।

48 और यूसुफ उन सातों वर्षों में सब प्रकार की भोजनवस्तुएं, जो मिस्र देश में होती थीं, जमा करके नगरों में रखता गया, और हर एक नगर के चारों ओर के खेतों की भोजनवस्तुओं को वह उसी नगर में इकट्ठा करता गया।

49 सो यूसुफ ने अन्न को समुद्र की बालू के समान अत्यन्त बहुतायत से राशि राशि करके रखा, यहां तक कि उसने उनका गिनना छोड़ दिया; क्योंकि वे असंख्य हो गईं।

50 अकाल के प्रथम वर्ष के आने से पहिले यूसुफ के दो पुत्र, ओन के याजक पोतीपेरा की बेटी आसनत से जन्मे।

51 और यूसुफ ने अपने जेठे का नाम यह कहके मनश्शे रखा, कि परमेश्वर ने मुझ से सारा क्लेश, और मेरे पिता का सारा घराना भुला दिया है।

52 और दूसरे का नाम उसने यह कहकर एप्रैम रखा, कि मुझे दु:ख भोगने के देश में परमेश्वर ने फुलाया फलाया है।

53 और मिस्र देश के सुकाल के वे सात वर्ष समाप्त हो गए।

54 और यूसुफ के कहने के अनुसार सात वर्षों के लिये अकाल आरम्भ हो गया। और सब देशों में अकाल पड़ने लगा; परन्तु सारे मिस्र देश में अन्न था।

55 जब मिस्र का सारा देश भूखों मरने लगा; तब प्रजा फिरोन से चिल्ला चिल्लाकर रोटी मांगने लगी: और वह सब मिस्रियों से कहा करता था, यूसुफ के पास जाओ: और जो कुछ वह तुम से कहे, वही करो।

56 सो जब अकाल सारी पृथ्वी पर फैल गया, और मिस्र देश में काल का भयंकर रूप हो गया, तब यूसुफ सब भण्डारों को खोल खोल के मिस्रियों के हाथ अन्न बेचने लगा।

57 सो सारी पृथ्वी के लोग मिस्र में अन्न मोल लेने के लिये यूसुफ के पास आने लगे, क्योंकि सारी पृथ्वी पर भयंकर अकाल था।

उत्पत्ति 42

1 जब याकूब ने सुना कि मिस्र में अन्न है, तब उसने अपने पुत्रों से कहा, तुम एक दूसरे का मुंह क्यों देख रहे हो।

2 फिर उसने कहा, मैं ने सुना है कि मिस्र में अन्न है; इसलिये तुम लोग वहां जा कर हमारे लिये अन्न मोल ले आओ, जिस से हम न मरें, वरन जीवित रहें।

3 सो यूसुफ के दस भाई अन्न मोल लेने के लिये मिस्र को गए।

4 पर यूसुफ के भाई बिन्यामीन को याकूब ने यह सोचकर भाइयों के साथ न भेजा, कि कहीं ऐसा न हो कि उस पर कोई विपत्ति आ पड़े।

5 सो जो लोग अन्न मोल लेने आए उनके साथ इस्राएल के पुत्र भी आए; क्योंकि कनान देश में भी भारी अकाल था।

6 यूसुफ तो मिस्र देश का अधिकारी था, और उस देश के सब लोगों के हाथ वही अन्न बेचता था; इसलिये जब यूसुफ के भाई आए तब भूमि पर मुंह के बल गिर के दण्डवत किया।

7 उन को देखकर यूसुफ ने पहिचान तो लिया, परन्तु उनके साम्हने भोला बनके कठोरता के साथ उन से पूछा, तुम कहां से आते हो? उन्होंने कहा, हम तो कनान देश से अन्न मोल लेने के लिये आए हैं।

8 यूसुफ ने तो अपने भाइयों को पहिचान लिया, परन्तु उन्होंने उसको न पहिचाना।

9 तब यूसुफ अपने उन स्वप्नों को स्मरण करके जो उसने उनके विषय में देखे थे, उन से कहने लगा, तुम भेदिए हो; इस देश की दुर्दशा को देखने के लिये आए हो।

10 उन्होंने उससे कहा, नहीं, नहीं, हे प्रभु, तेरे दास भोजनवस्तु मोल लेने के लिये आए हैं।

11 हम सब एक ही पिता के पुत्र हैं, हम सीधे मनुष्य हैं, तेरे दास भेदिए नहीं।

12 उसने उन से कहा, नहीं नहीं, तुम इस देश की दुर्दशा देखने ही को आए हो।

13 उन्होंने कहा, हम तेरे दास बारह भाई हैं, और कनान देशवासी एक ही पुरूष के पुत्र हैं, और छोटा इस समय हमारे पिता के पास है, और एक जाता रहा।

14 तब यूसुफ ने उन से कहा, मैं ने तो तुम से कह दिया, कि तुम भेदिए हो;

15 सो इसी रीति से तुम परखे जाओगे, फिरौन के जीवन की शपथ, जब तक तुम्हारा छोटा भाई यहां न आए तब तक तुम यहां से न निकलने पाओगे।

16 सो अपने में से एक को भेज दो, कि वह तुम्हारे भाई को ले आए, और तुम लोग बन्धुवाई में रहोगे; इस प्रकार तुम्हारी बातें परखी जाएंगी, कि तुम में सच्चाई है कि नहीं। यदि सच्चे न ठहरे तब तो फिरौन के जीवन की शपथ तुम निश्चय ही भेदिए समझे जाओगे।

17 तब उसने उन को तीन दिन तक बन्दीगृह में रखा।

18 तीसरे दिन यूसुफ ने उन से कहा, एक काम करो तब जीवित रहोगे; क्योंकि मैं परमेश्वर का भय मानता हूं;

19 यदि तुम सीधे मनुष्य हो, तो तुम सब भाइयों में से एक जन इस बन्दीगृह में बन्धुआ रहे; और तुम अपने घर वालों की भूख बुझाने के लिये अन्न ले जाओ।

20 और अपने छोटे भाई को मेरे पास ले आओ; इस प्रकार तुम्हारी बातें सच्ची ठहरेंगी, और तुम मार डाले न जाओगे। तब उन्होंने वैसा ही किया।

21 उन्होंने आपस में कहा, नि:स्न्देह हम अपने भाई के विषय में दोषी हैं, क्योंकि जब उसने हम से गिड़गिड़ा के बिनती की, तौभी हम ने यह देखकर, कि उसका जीवन कैसे संकट में पड़ा है, उसकी न सुनी; इसी कारण हम भी अब इस संकट में पड़े हैं।

22 रूबेन ने उन से कहा, क्या मैं ने तुम से न कहा था, कि लड़के के अपराधी मत बनो? परन्तु तुम ने न सुना: देखो, अब उसके लोहू का पलटा दिया जाता है।

23 यूसुफ की और उनकी बातचीत जो एक दुभाषिया के द्वारा होती थी; इस से उन को मालूम न हुआ कि वह उनकी बोली समझता है।

24 तब वह उनके पास से हटकर रोने लगा; फिर उनके पास लौटकर और उन से बातचीत करके उन में से शिमोन को छांट निकाला और उसके साम्हने बन्धुआ रखा।

25 तब यूसुफ ने आज्ञा दी, कि उनके बोरे अन्न से भरो और एक एक जन के बोरे में उसके रूपये को भी रख दो, फिर उन को मार्ग के लिये सीधा दो: सो उनके साथ ऐसा ही किया गया।

26 तब वे अपना अन्न अपने गदहों पर लादकर वहां से चल दिए।

27 सराय में जब एक ने अपने गदहे को चारा देने के लिये अपना बोरा खोला, तब उसका रूपया बोरे के मोहड़े पर रखा हुआ दिखलाई पड़ा।

28 तब उसने अपने भाइयों से कहा, मेरा रूपया तो फेर दिया गया है, देखो, वह मेरे बोरे में है; तब उनके जी में जी न रहा, और वे एक दूसरे की और भय से ताकने लगे, और बोले, परमेश्वर ने यह हम से क्या किया है?

29 और वे कनान देश में अपने पिता याकूब के पास आए, और अपना सारा वृत्तान्त उससे इस प्रकार वर्णन किया:

30 कि जो पुरूष उस देश का स्वामी है, उसने हम से कठोरता के साथ बातें कीं, और हम को देश के भेदिए कहा।

31 तब हम ने उससे कहा, हम सीधे लोग हैं, भेदिए नहीं।

32 हम बारह भाई एक ही पिता के पुत्र है, एक तो जाता रहा, परन्तु छोटा इस समय कनान देश में हमारे पिता के पास है।

33 तब उस पुरूष ने, जो उस देश का स्वामी है, हम से कहा, इस से मालूम हो जाएगा कि तुम सीधे मनुष्य हो; तुम अपने में से एक को मेरे पास छोड़ के अपने घर वालों की भूख बुझाने के लिये कुछ ले जाओ।

34 और अपने छोटे भाई को मेरे पास ले आओ। तब मुझे विश्वास हो जाएगा कि तुम भेदिए नहीं, सीधे लोग हो। फिर मैं तुम्हारे भाई को तुम्हें सौंप दूंगा, और तुम इस देश में लेन देन कर सकोगे।

35 यह कहकर वे अपने अपने बोरे से अन्न निकालने लगे, तब, क्या देखा, कि एक एक जन के रूपये की थैली उसी के बोरे में रखी है: तब रूपये की थैलियों को देखकर वे और उनका पिता बहुत डर गए।

36 तब उनके पिता याकूब ने उन से कहा, मुझ को तुम ने निर्वंश कर दिया, देखो, यूसुफ नहीं रहा, और शिमोन भी नहीं आया, और अब तुम बिन्यामीन को भी ले जाना चाहते हो: ये सब विपत्तियां मेरे ऊपर आ पड़ी हैं।

37 रूबेन ने अपने पिता से कहा, यदि मैं उसको तेरे पास न लाऊं, तो मेरे दोनों पुत्रों को मार डालना; तू उसको मेरे हाथ में सौंप दे, मैं उसे तेरे पास फिर पहुंचा दूंगा।

38 उसने कहा, मेरा पुत्र तुम्हारे संग न जाएगा; क्योंकि उसका भाई मर गया है, और वह अब अकेला रह गया: इसलिये जिस मार्ग से तुम जाओगे, उस में यदि उस पर कोई विपत्ति आ पड़े, तब तो तुम्हारे कारण मैं इस बुढ़ापे की अवस्था में शोक के साथ अधोलोक में उतर जाऊंगा॥

उत्पत्ति 43

1 और अकाल देश में और भी भयंकर होता गया।

2 जब वह अन्न जो वे मिस्र से ले आए थे समाप्त हो गया तब उनके पिता ने उन से कहा, फिर जा कर हमारे लिये थोड़ी सी भोजनवस्तु मोल ले आओ।

3 तब यहूदा ने उससे कहा, उस पुरूष ने हम को चितावनी देकर कहा, कि यदि तुम्हारा भाई तुम्हारे संग न आए, तो तुम मेरे सम्मुख न आने पाओगे।

4 इसलिये यदि तू हमारे भाई को हमारे संग भेजे, तब तो हम जा कर तेरे लिये भोजनवस्तु मोल ले आएंगे;

5 परन्तु यदि तू उसको न भेजे, तो हम न जाएंगे: क्योंकि उस पुरूष ने हम से कहा, कि यदि तुम्हारा भाई तुम्हारे संग न हो, तो तुम मेरे सम्मुख न आने पाओगे।

6 तब इस्राएल ने कहा, तुम ने उस पुरूष को यह बताकर कि हमारा एक और भाई है, क्यों मुझ से बुरा बर्ताव किया?

7 उन्होंने कहा, जब उस पुरूष ने हमारी और हमारे कुटुम्बियों की दशा को इस रीति पूछा, कि क्या तुम्हारा पिता अब तक जीवित है? क्या तुम्हारे कोई और भाई भी है? तब हम ने इन प्रश्नों के अनुसार उससे वर्णन किया; फिर हम क्या जानते थे कि वह कहेगा, कि अपने भाई को यहां ले आओ।

8 फिर यहूदा ने अपने पिता इस्राएल से कहा, उस लड़के को मेरे संग भेज दे, कि हम चले जाएं; इस से हम, और तू, और हमारे बालबच्चे मरने न पाएंगे, वरन जीवित रहेंगे।

9 मैं उसका जामिन होता हूं; मेरे ही हाथ से तू उसको फेर लेना: यदि मैं उसको तेरे पास पहुंचाकर साम्हने न खड़ाकर दूं, तब तो मैं सदा के लिये तेरा अपराधी ठहरूंगा।

10 यदि हम लोग विलम्ब न करते, तो अब तब दूसरी बार लौट आते।

11 तब उनके पिता इस्राएल ने उन से कहा, यदि सचमुच ऐसी ही बात है, तो यह करो; इस देश की उत्तम उत्तम वस्तुओं में से कुछ कुछ अपने बोरों में उस पुरूष के लिये भेंट ले जाओ: जैसे थोड़ा सा बलसान, और थोड़ा सा मधु, और कुछ सुगन्ध द्रव्य, और गन्धरस, पिस्ते, और बादाम।

12 फिर अपने अपने साथ दूना रूपया ले जाओ; और जो रूपया तुम्हारे बोरों के मुंह पर रखकर फेर दिया गया था, उसको भी लेते जाओ; कदाचित यह भूल से हुआ हो।

13 और अपने भाई को भी संग ले कर उस पुरूष के पास फिर जाओ,

14 और सर्वशक्तिमान ईश्वर उस पुरूष को तुम पर दयालु करेगा, जिस से कि वह तुम्हारे दूसरे भाई को और बिन्यामीन को भी आने दे: और यदि मैं निर्वंश हुआ तो होने दो।

15 तब उन मनुष्यों ने वह भेंट, और दूना रूपया, और बिन्यामीन को भी संग लिया, और चल दिए और मिस्र में पहुंचकर यूसुफ के साम्हने खड़े हुए।

16 उनके साथ बिन्यामीन को देखकर यूसुफ ने अपने घर के अधिकारी से कहा, उन मनुष्यों को घर में पहुंचा दो, और पशु मारके भोजन तैयार करो; क्योंकि वे लोग दोपहर को मेरे संग भोजन करेंगे।

17 तब वह अधिकारी पुरूष यूसुफ के कहने के अनुसार उन पुरूषों को यूसुफ के घर में ले गया।

18 जब वे यूसुफ के घर को पहुंचाए गए तब वे आपस में डर कर कहने लगे, कि जो रूपया पहिली बार हमारे बोरों में फेर दिया गया था, उसी के कारण हम भीतर पहुंचाए गए हैं; जिस से कि वह पुरूष हम पर टूट पड़े, और हमें वश में करके अपने दास बनाए, और हमारे गदहों को भी छीन ले।

19 तब वे यूसुफ के घर के अधिकारी के निकट जा कर घर के द्वार पर इस प्रकार कहने लगे,

20 कि हे हमारे प्रभु, जब हम पहिली बार अन्न मोल लेने को आए थे,

21 तब हम ने सराय में पहुंचकर अपने बोरों को खोला, तो क्या देखा, कि एक एक जन का पूरा पूरा रूपया उसके बोरे के मुंह में रखा है; इसलिये हम उसको अपने साथ फिर लेते आए हैं।

22 और दूसरा रूपया भी भोजनवस्तु मोल लेने के लिये लाए हैं; हम नहीं जानते कि हमारा रूपया हमारे बोरों में किस ने रख दिया था।

23 उसने कहा, तुम्हारा कुशल हो, मत डरो: तुम्हारा परमेश्वर, जो तुम्हारे पिता का भी परमेश्वर है, उसी ने तुम को तुम्हारे बोरों में धन दिया होगा, तुम्हारा रूपया तो मुझ को मिल गया था: फिर उसने शिमोन को निकाल कर उनके संग कर दिया।

24 तब उस जन ने उन मनुष्यों को यूसुफ के घर में ले जा कर जल दिया, तब उन्होंने अपने पांवों को धोया; फिर उसने उनके गदहों के लिये चारा दिया।

25 तब यह सुनकर, कि आज हम को यहीं भोजन करना होगा, उन्होंने यूसुफ के आने के समय तक, अर्थात दोपहर तक, उस भेंट को इकट्ठा कर रखा।

26 जब यूसुफ घर आया तब वे उस भेंट को, जो उनके हाथ में थी, उसके सम्मुख घर में ले गए, और भूमि पर गिरकर उसको दण्डवत किया।

27 उसने उनका कुशल पूछा, और कहा, क्या तुम्हारा बूढ़ा पिता, जिसकी तुम ने चर्चा की थी, कुशल से है? क्या वह अब तक जीवित है?

28 उन्होंने कहा, हां तेरा दास हमारा पिता कुशल से है और अब तक जीवित है; तब उन्होंने सिर झुका कर फिर दण्डवत किया।

29 तब उसने आंखे उठा कर और अपने सगे भाई बिन्यामीन को देखकर पूछा, क्या तुम्हारा वह छोटा भाई, जिसकी चर्चा तुम ने मुझ से की थी, यही है? फिर उसने कहा, हे मेरे पुत्र, परमेश्वर तुझ पर अनुग्रह करे।

30 तब अपने भाई के स्नेह से मन भर आने के कारण और यह सोचकर, कि मैं कहां जा कर रोऊं, यूसुफ फुर्ती से अपनी कोठरी में गया, और वहां रो पड़ा।

31 फिर अपना मुंह धोकर निकल आया, और अपने को शांत कर कहा, भोजन परोसो।

32 तब उन्होंने उसके लिये तो अलग, और भाइयों के लिये भी अलग, और जो मिस्री उसके संग खाते थे, उनके लिये भी अलग, भोजन परोसा; इसलिये कि मिस्री इब्रियों के साथ भोजन नहीं कर सकते, वरन मिस्री ऐसा करना घृणा समझते थे।

33 सो यूसुफ के भाई उसके साम्हने, बड़े बड़े पहिले, और छोटे छोटे पीछे, अपनी अपनी अवस्था के अनुसार, क्रम से बैठाए गए: यह देख वे विस्मित हो कर एक दूसरे की ओर देखने लगे।

34 तब यूसुफ अपने साम्हने से भोजन-वस्तुएं उठा उठाके उनके पास भेजने लगा, और बिन्यामीन को अपने भाइयों से पचगुणी अधिक भोजनवस्तु मिली। और उन्होंने उसके संग मनमाना खाया पिया।

उत्पत्ति 44

1 तब उसने अपने घर के अधिकारी को आज्ञा दी, कि इन मनुष्यों के बोरों में जितनी भोजनवस्तु समा सके उतनी भर दे, और एक एक जन के रूपये को उसके बोरे के मुंह पर रख दे।

2 और मेरा चांदी का कटोरा छोटे के बोरे के मुंह पर उसके अन्न के रूपये के साथ रख दे। यूसुफ की इस आज्ञा के अनुसार उसने किया।

3 बिहान को भोर होते ही वे मनुष्य अपने गदहों समेत विदा किए गए।

4 वे नगर से निकले ही थे, और दूर न जाने पाए थे, कि यूसुफ ने अपने घर के अधिकारी से कहा, उन मनुष्यों का पीछा कर, और उन को पाकर उन से कह, कि तुम ने भलाई की सन्ती बुराई क्यों की है?

5 क्या यह वह वस्तु नहीं जिस में मेरा स्वामी पीता है, और जिस से वह शकुन भी विचारा करता है? तुम ने यह जो किया है सो बुरा किया।

6 तब उसने उन्हें जा लिया, और ऐसी ही बातें उन से कहीं।

7 उन्होंने उससे कहा, हे हमारे प्रभु, तू ऐसी बातें क्यों कहता है? ऐसा काम करना तेरे दासों से दूर रहे।

8 देख जो रूपया हमारे बोरोंके मुंह पर निकला था, जब हम ने उसको कनान देश से ले आकर तुझे फेर दिया, तब, भला, तेरे स्वामी के घर में से हम कोई चांदी वा सोने की वस्तु क्योंकर चुरा सकते हैं?

9 तेरे दासों में से जिस किसी के पास वह निकले, वह मार डाला जाए, और हम भी अपने उस प्रभु के दास जो जाएं।

10 उसने कहा तुम्हारा ही कहना सही, जिसके पास वह निकले सो मेरा दास होगा; और तुम लोग निरपराध ठहरोगे।

11 इस पर वे फुर्ती से अपने अपने बोरे को उतार भूमि पर रखकर उन्हें खोलने लगे।

12 तब वह ढूंढ़ने लगा, और बड़े के बोरे से लेकर छोटे के बोरे तक खोज की: और कटोरा बिन्यामीन के बोरे में मिला।

13 तब उन्होंने अपने अपने वस्त्र फाड़े, और अपना अपना गदहा लादकर नगर को लौट गए।

14 जब यहूदा और उसके भाई यूसुफ के घर पर पहुंचे, और यूसुफ वहीं था, तब वे उसके साम्हने भूमि पर गिरे।

15 यूसुफ ने उन से कहा, तुम लोगों ने यह कैसा काम किया है? क्या तुम न जानते थे, कि मुझ सा मनुष्य शकुन विचार सकता है?

16 यहूदा ने कहा, हम लोग अपने प्रभु से क्या कहें? हम क्या कहकर अपने को निर्दोषी ठहराएं? परमेश्वर ने तेरे दासों के अधर्म को पकड़ लिया है: हम, और जिसके पास कटोरा निकला वह भी, हम सब के सब अपने प्रभु के दास ही हैं।

17 उसने कहा, ऐसा करना मुझ से दूर रहे: जिस जन के पास कटोरा निकला है, वही मेरा दास होगा; और तुम लोग अपने पिता के पास कुशल क्षेम से चले जाओ।

18 तब यहूदा उसके पास जा कर कहने लगा, हे मेरे प्रभु, तेरे दास को अपने प्रभु से एक बात कहने की आज्ञा हो, और तेरा कोप तेरे दास पर न भड़के; तू तो फिरौन के तुल्य है।

19 मेरे प्रभु ने अपने दासों से पूछा था, कि क्या तुम्हारे पिता वा भाई हैं?

20 और हम ने अपने प्रभु से कहा, हां, हमारा बूढ़ा पिता तो है, और उसके बुढ़ापे का एक छोटा सा बालक भी है, परन्तु उसका भाई मर गया है, इसलिये वह अब अपनी माता का अकेला ही रह गया है, और उसका पिता उससे स्नेह रखता है।

21 तब तू ने अपने दासों से कहा था, कि उसको मेरे पास ले आओ, जिस से मैं उसको देखूं।

22 तब हम ने अपने प्रभु से कहा था, कि वह लड़का अपने पिता को नहीं छोड़ सकता; नहीं तो उसका पिता मर जाएगा।

23 और तू ने अपने दासों से कहा, यदि तुम्हारा छोटा भाई तुम्हारे संग न आए, तो तुम मेरे सम्मुख फिर न आने पाओगे।

24 सो जब हम अपने पिता तेरे दास के पास गए, तब हम ने उससे अपने प्रभु की बातें कहीं।

25 तब हमारे पिता ने कहा, फिर जा कर हमारे लिये थोड़ी सी भोजनवस्तु मोल ले आओ।

26 हम ने कहा, हम नहीं जा सकते, हां, यदि हमारा छोटा भाई हमारे संग रहे, तब हम जाएंगे: क्योंकि यदि हमारा छोटा भाई हमारे संग न रहे, तो उस पुरूष के सम्मुख न जाने पाएंगे।

27 तब तेरे दास मेरे पिता ने हम से कहा, तुम तो जानते हो कि मेरी स्त्री से दो पुत्र उत्पन्न हुए।

28 और उन में से एक तो मुझे छोड़ ही गया, और मैं ने निश्चय कर लिया, कि वह फाड़ डाला गया होगा ; और तब से मैं उसका मुंह न देख पाया

29 सो यदि तुम इस को भी मेरी आंख की आड़ में ले जाओ, और कोई विपत्ति इस पर पड़े, तो तुम्हारे कारण मैं इस पक्के बाल की अवस्था में दु:ख के साथ अधोलोक में उतर जाऊंगा।

30 सो जब मैं अपने पिता तेरे दास के पास पहुंचूं, और यह लड़का संग न रहे, तब, उसका प्राण जो इसी पर अटका रहता है,

31 इस कारण, यह देखके कि लड़का नहीं है, वह तुरन्त ही मर जाएगा। तब तेरे दासों के कारण तेरा दास हमारा पिता, जो पक्के बालों की अवस्था का है, शोक के साथ अधोलोक में उतर जाएगा।

32 फिर तेरा दास अपने पिता के यहां यह कहके इस लड़के का जामिन हुआ है, कि यदि मैं इस को तेरे पास न पहुंचा दूं, तब तो मैं सदा के लिये तेरा अपराधी ठहरूंगा।

33 सो अब तेरा दास इस लड़के की सन्ती अपने प्रभु का दास हो कर रहने की आज्ञा पाए, और यह लड़का अपने भाइयों के संग जाने दिया जाए।

34 क्योंकि लड़के के बिना संग रहे मैं क्योंकर अपने पिता के पास जा सकूंगा; ऐसा न हो कि मेरे पिता पर जो दु:ख पड़ेगा वह मुझे देखना पड़े॥

उत्पत्ति 45

1 तब यूसुफ उन सब के साम्हने, जो उसके आस पास खड़े थे, अपने को और रोक न सका; और पुकार के कहा, मेरे आस पास से सब लोगों को बाहर कर दो। भाइयों के साम्हने अपने को प्रगट करने के समय यूसुफ के संग और कोई न रहा।

2 तब वह चिल्ला चिल्लाकर रोने लगा: और मिस्रियों ने सुना, और फिरौन के घर के लोगों को भी इसका समाचार मिला।

3 तब यूसुफ अपने भाइयों से कहने लगा, मैं यूसुफ हूं, क्या मेरा पिता अब तब जीवित है? इसका उत्तर उसके भाई न दे सके; क्योंकि वे उसके साम्हने घबरा गए थे।

4 फिर यूसुफ ने अपने भाइयों से कहा, मेरे निकट आओ। यह सुनकर वे निकट गए। फिर उसने कहा, मैं तुम्हारा भाई यूसुफ हूं, जिस को तुम ने मिस्र आनेहारों के हाथ बेच डाला था।

5 अब तुम लोग मत पछताओ, और तुम ने जो मुझे यहां बेच डाला, इस से उदास मत हो; क्योंकि परमेश्वर ने तुम्हारे प्राणों को बचाने के लिये मुझे आगे से भेज दिया है।

6 क्योंकि अब दो वर्ष से इस देश में अकाल है; और अब पांच वर्ष और ऐसे ही होंगे, कि उन में न तो हल चलेगा और न अन्न काटा जाएगा।

7 सो परमेश्वर ने मुझे तुम्हारे आगे इसी लिये भेजा, कि तुम पृथ्वी पर जीवित रहो, और तुम्हारे प्राणों के बचने से तुम्हारा वंश बढ़े।

8 इस रीति अब मुझ को यहां पर भेजने वाले तुम नहीं, परमेश्वर ही ठहरा: और उसी ने मुझे फिरौन का पिता सा, और उसके सारे घर का स्वामी, और सारे मिस्र देश का प्रभु ठहरा दिया है।

9 सो शीघ्र मेरे पिता के पास जा कर कहो, तेरा पुत्र यूसुफ इस प्रकार कहता है, कि परमेश्वर ने मुझे सारे मिस्र का स्वामी ठहराया है; इसलिये तू मेरे पास बिना विलम्ब किए चला आ।

10 और तेरा निवास गोशेन देश में होगा, और तू, बेटे, पोतों, भेड़-बकरियों, गाय-बैलों, और अपने सब कुछ समेत मेरे निकट रहेगा।

11 और अकाल के जो पांच वर्ष और होंगे, उन में मैं वहीं तेरा पालन पोषण करूंगा; ऐसा न हो कि तू, और तेरा घराना, वरन जितने तेरे हैं, सो भूखों मरें।

12 और तुम अपनी आंखों से देखते हो, और मेरा भाई बिन्यामीन भी अपनी आंखों से देखता है, कि जो हम से बातें कर रहा है सो यूसुफ है।

13 और तुम मेरे सब वैभव का, जो मिस्र में है और जो कुछ तुम ने देखा है, उस सब को मेरे पिता से वर्णन करना; और तुरन्त मेरे पिता को यहां ले आना।

14 और वह अपने भाई बिन्यामीन के गले से लिपट कर रोया; और बिन्यामीन भी उसके गले से लिपट कर रोया।

15 तब वह अपने सब भाइयों को चूम कर उन से मिल कर रोया: और इसके पश्चात उसके भाई उससे बातें करने लगे॥

16 इस बात की चर्चा, कि यूसुफ के भाई आए हैं, फिरौन के भवन तब पंहुच गई, और इस से फिरौन और उसके कर्मचारी प्रसन्न हुए।

17 सो फिरौन ने यूसुफ से कहा, अपने भाइयों से कह, कि एक काम करो, अपने पशुओं को लादकर कनान देश में चले जाओ।

18 और अपने पिता और अपने अपने घर के लोगों को ले कर मेरे पास आओ; और मिस्र देश में जो कुछ अच्छे से अच्छा है वह मैं तुम्हें दूंगा, और तुम्हें देश के उत्तम से उत्तम पदार्थ खाने को मिलेंगे।

19 और तुझे आज्ञा मिली है, तुम एक काम करो, कि मिस्र देश से अपने बालबच्चों और स्त्रियों के लिये गाडियां ले जाओ, और अपने पिता को ले आओ।

20 और अपनी सामग्री का मोह न करना; क्योंकि सारे मिस्र देश में जो कुछ अच्छे से अच्छा है सो तुम्हारा है।

21 और इस्राएल के पुत्रों ने वैसा ही किया। और यूसुफ ने फिरौन की मान के उन्हें गाडियां दी, और मार्ग के लिये सीधा भी दिया।

22 उन में से एक एक जन को तो उसने एक एक जोड़ा वस्त्र भी दिया; और बिन्यामीन को तीन सौ रूपे के टुकड़े और पांच जोड़े वस्त्र दिए।

23 और अपने पिता के पास उसने जो भेजा वह यह है, अर्थात मिस्र की अच्छी वस्तुओं से लदे हुए दस गदहे, और अन्न और रोटी और उसके पिता के मार्ग के लिये भोजनवस्तु से लदी हुई दस गदहियां।

24 और उसने अपने भाइयों को विदा किया, और वे चल दिए; और उसने उन से कहा, मार्ग में कहीं झगड़ा न करना।

25 मिस्र से चलकर वे कनान देश में अपने पिता याकूब के पास पहुंचे।

26 और उससे यह वर्णन किया, कि यूसुफ अब तक जीवित है, और सारे मिस्र देश पर प्रभुता वही करता है। पर उसने उनकी प्रतीति न की, और वह अपने आपे में न रहा।

27 तब उन्होंने अपने पिता याकूब से यूसुफ की सारी बातें, जो उसने उन से कहीं थी, कह दीं; जब उसने उन गाडिय़ों को देखा, जो यूसुफ ने उसके ले आने के लिये भेजीं थीं, तब उसका चित्त स्थिर हो गया।

28 और इस्राएल ने कहा, बस, मेरा पुत्र यूसुफ अब तक जीवित है: मैं अपनी मृत्यु से पहिले जा कर उसको देखूंगा॥